Tuesday, December 24, 2019

परदे पर फिर लौटने लगी भव्यता!

- हेमंत पाल

   हिंदी सिनेमा की भव्यता का जब भी ज़िक्र होता है, तब उन फिल्मों का ज़िक्र होता है, जिन्होंने हिंदी सिनेमा की पहचान बदल दी! न सिर्फ देश में बल्कि पूरी दुनिया में जिस एक फिल्म का ज़िक्र आज भी किया जाता है, वो है 'मुगल-ए-आजम!' यह फिल्म इतिहास के मील का पत्थर है। खास बात ये कि जब 'मुगले आजम बनी थी, तब ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों का जमाना था। लेकिन, इस फिल्म के एक गीत को रंगीन फिल्माने शीश महल का सेट लगाया गया था! इस एक सेट को पूरा करने में दो साल लग गए थे। उसके बाद लम्बे समय तक ऐसी फ़िल्में नहीं आईं! क्योंकि, ऐसी फिल्मों के निर्माण पर अनाप-शनाप पैसा खर्च होता है और जिसकी वापसी की कोई गारंटी भी नहीं होती। लेकिन, पिछले कुछ सालों से फिल्मकारों का रुख फिर से ऐसी भव्य फ़िल्में बनाने की तरफ हुआ है। इसमें सबसे आगे रहे संजय लीला भंसाली जिन्होंने देवदास,  बाजीराव-मस्तानी और 'पद्मावत' जैसी भव्य फ़िल्में बनाई हैं। भंसाली की महँगी फिल्म ‘पद्मावत’ थी, जो मलिक मोहम्मद जायसी के महाकाव्य पर आधारित थी। यह फिल्म रानी पद्मावती के अलौकिक सौंदर्य और अल्लाउद्दीन खिलज़ी के आक्रमण पर आधारित थी। वे इतिहास से जुडी कुछ और फिल्मों की तैयारी है। 
     इसके बाद नंबर आता है आशुतोष गोवारीकर का जिन्होंने 'जोधा-अकबर' और 'मोहन जोदाड़ो' के बाद अब 'पानीपत' बनाने की हिम्मत की! कंगना रनोट की ‘मणिकर्णिका’ भी झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की शौर्यगाथा दिखाने वाली ऐतिहासिक फिल्म थी! लेकिन ये फिल्म उम्मीद के मुताबिक नहीं चली, क्योंकि कंगना ने खुद प्रमोट करने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों को बदल दिया था। अब, अजय देवगन ‘तानाजी’ नाम से ऐतिहासिक चरित्र वाली फिल्म कर रहे हैं। वहीं, अक्षय कुमार ‘पृथ्वीराज चौहान’ की वीरता का वर्णन करने वाले हैं। करण जौहर ‘तख़्त’ नाम से इतिहास को दोबारा गढ़ने की कोशिश में हैं। कुणाल कोहली ‘रामयुग’ और आमिर खान ‘महाभारत’ बनाने की तैयारी कर रहे हैं। नीरज पांडेय अजय देवगन को लेकर ‘चाणक्य’ पर काम कर रहे हैं! आशय यह कि सिनेमा में भव्यता पर फिर से खासा जोर दिया जाने लगा है। इसका काफी कुछ श्रेय ‘बाहुबली’ की सफलता को दिया जाना चाहिए, जिसने फिल्मकारों को एक नया फार्मूला दिया! इस सीरीज की दोनों फ़िल्में देश की कई भाषाओं में चली और पसंद की गई| यह अब तक के सिनेमा के इतिहास की सबसे महँगी एवं सबसे अधिक कमाई करनेवाली फिल्म भी साबित हुई। लेकिन, भव्यता का फार्मूला ‘ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान’ पर फिट नहीं बैठा और 300 करोड़ की लागत से बनी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धराशायी हो गई! 
    इतिहास को पढ़ने और उसे परदे पर देखने में फर्क होता है। जब इतिहास को फिल्मों में फंतासी अंदाज परदे पर उतारा जाता है, तो दर्शक रोमांचित होते हैं। फिल्मों का इतिहास बताता है कि अमूमन ये फार्मूला पसंद किया जाता है। खामोश फिल्मों के दौर में 1924 में बाबूराव पेंटर ने 'सति पद्मिनी' निर्देशित की थी। इसी कहानी को संजय लीला भंसाली ने बाद में 'पद्मावत' के रूप में बनाया! जब फिल्मों ने बोलना सीखा तो सोहराब मोदी ने पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा' बनाई, जो कॉस्ट्यूम ड्रामा ही थी! बाद में सोहराब मोदी ने ही पुकार, सिकंदर, पृथ्वी वल्लभ और झाँसी की रानी जैसी ऐतिहासिक फ़िल्में बनाई! 'झांसी की रानी' हिंदी फिल्म इतिहास की पहली टेक्नीकलर फिल्म थी। कमाल अमरोही ने 'रजिया सुलतान' बनाई, जो दिल्ली की शासक रज़िया की कहानी थी, जिसे गुलाम याकूत से प्रेम हो जाता है। इसी थीम पर 60 के दशक में निरुपा रॉय और कामरान लेकर भी फिल्म बनी थी! 'ताजमहल' में मुमताज़ महल और शाहजहाँ की अमर प्रेम कहानी थी! शाहजहाँ की बेटी 'जहाँआरा' पर भी फिल्म बन चुकी है।
  इतिहास की भव्यता का प्रदर्शन करने वाली ये फ़िल्में राजशाही तेवर, पुरातन इतिहास और मिथकीय चरित्रों में दर्शकों को बांधकर उन्हें सिनेमा हॉल तक खींचने में कामयाब होने की कोशिश करती हैं। देखा गया है कि ऐतिहासिक फिल्में समयकाल के परिवेश और किरदारों की वजह से स्वाभाविक तौर पर भव्य हो जाती हैं। उनके लिए महँगे और विशाल सेट के अलावा उस समय की पोशाकों, हथियारों की भी जरुरत पड़ती है। कई बार लेखकों की कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए वीएफएक्स तकनीक का जमकर उपयोग करना पड़ता है, जैसा 'बाहुबली' सीरीज की दोनों फिल्मों में हुआ! इन खर्चों से फिल्म की लागत भी काफी बढ़ जाती है। लेकिन, ये टोटके हर बार कामयाब नहीं होते और कई बार ऐसी भव्य फ़िल्में पिट जाती हैं। ‘अशोका’ और ‘मोहन जोदाडो’ भव्य होते हुए भी फ्लॉप हुई थीं। एक तथ्य यह भी है कि वीरों, राजाओं, योद्धाओं की शौर्यगाथा सुन-सुनकर दर्शक उबने लगते हैं।
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