राजनीति के अपने दायरे होते हैं, उन्हीं दायरों में शिद्दत से शिष्टाचार निभाया जाता है। वैचारिक विरोध के बावजूद राजनीति में निजी रिश्तों का हमेशा सम्मान किए जाने नज़ारे दिखाई देते हैं। कई उदाहरण हैं, जब चिर-विरोधी पार्टियों के नेताओं ने जरुरत पड़ने पर दोस्ती निभाई और उसे छुपाया भी नहीं! क्योंकि, ये जरुरी नहीं कि यदि दो नेता एक-दूसरे के राजनीतिक प्रतिद्वंदी हों, तो वे हमेशा ही टांग खिंचाई के मौके तलाशते रहें! व्यक्तिगत रूप से वे दोस्त हो सकते हैं। दोस्ती और शिष्टाचार का राजनीतिक प्रतिद्वंदिता से कोई वास्ता नहीं होता! हाल ही में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का इंदौर में सरेआम गले मिलने के प्रसंग को कई कोणों से देखा और विश्लेषित किया गया! इसके पीछे कारण तलाशने की भी कोशिश की गई! लेकिन, वास्तव में ये दो दोस्तों का सार्वजनिक मिलन ही था! ऐसे शिष्टाचार वाले प्रसंगों को हमेशा राजनीति नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए।
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- हेमंत पाल
इंदौर में 'स्वच्छता अभियान' का सर्वे चल रहा है। शहर की स्वच्छता को परखने शहरी विकास मंत्रालय की सांसदों वाली समिति का एक दल आया था! संयोग से वहाँ प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और भाजपा के राष्ट्रीय महसचिव कैलाश विजयवर्गीय भी मौजूद थे! जब दोनों ने एक-दूसरे को देखा तो गर्मजोशी से गले मिले और कुछ देर बात की! लेकिन, इसे न जाने क्यों अनोखी घटना की तरह देखा गया! सोशल मीडिया पर इन नेताओं का मिलन सुर्खी बन गया! दोनों नेताओं के एक-दूसरे के खिलाफ दिए गए बयानों को भी उछाला गया! लेकिन, इस घटना के पीछे कारण ढूंढने वाले शायद ये भूल गए कि सालों तक ये दोनों नेता प्रदेश की विधानसभा में एक साथ बैठ चुके हैं! फर्क इतना था कि दोनों की पार्टियाँ अलग-अलग थी।
कम लोग जानते होंगे कि कैलाश विजयवर्गीय और दिग्विजय सिंह के निजी रिश्ते बहुत अच्छे हैं! राजनीति को जाँचने-परखने वाले जानते भी हैं कि जब कैलाश विजवर्गीय इंदौर के महापौर थे, उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का पूरा सहयोग मिला! इसलिए कि उस दौर में इंदौर के विकास की जो अवधारणा कैलाश विजयवर्गीय की रही होगी, उसे मूर्तरूप तभी मिला, जब तत्कालीन सरकार ने उनका साथ दिया! सिर्फ इन दोनों नेताओं में ही अच्छी मित्रता नहीं है, इनके बेटे विधायक आकाश विजवर्गीय और मंत्री जयवर्धन सिंह की दोस्ती भी जगजाहिर है।
राजनीति की खासियत है कि कितना भी कट्टर विरोधी क्यों न हो, यदि वह सामने आए तो उससे प्रेम से ही मिलो। हमेशा होता भी यही आया है। दरअसल, इसे भारतीय राजनीति का नवाचार कहा जा सकता है, जो कुछ सालों में कुछ ज्यादा ही निभाया जाने लगा! मध्यप्रदेश ने तो यह परम्परा बरसों से कायम है। सालभर पहले जब कमलनाथ मुख्यमंत्री पद शपथ ले रहे थे, तब उस समारोह में निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी मौजूद थे! लोगों को याद होगा, कमलनाथ ने शिवराज सिंह को मंच पर बुलाया था जहाँ दोनों जोश के साथ गले मिले! ईद पर भी शिवराजसिंह चौहान और कमलनाथ भोपाल के ईदगाह पर गले मिलते लोगों को दिखाई दिए थे। कहा भी जाता है, कि राजनीति को दुश्मनी की तरह नहीं देखा जाना चाहिए! पार्टियां अलग हो सकती है, झंडों के रंग अलग हो सकते हैं! पर, कोई भी नेता आपस में दुश्मन नहीं होता!
अभी इस बात को ज्यादा वक़्त नहीं बीता, जब भाजपा के बड़े नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और
नगरीय प्रशासन मंत्री जयवर्धन सिंह की सागर के नजदीक गढ़ाकोटा के बस स्टैंड पर अचानक मुलाकात हुई थी! आधी रात को हुई इस मुलाक़ात को लेकर भी सियासत के गलियारों खूब में चर्चा शुरू हुई और चटखारे लेकर इस घटना का छिद्रान्वेषण किया गया। बात बीते अगस्त की है, जब गोपाल भार्गव कुछ लोगों के साथ अपने क्षेत्र गढ़ाकोटा के बस स्टैंड पर बैठे थे! तभी दमोह से लौटते जयवर्धन सिंह का काफिला वहां से गुजरा। जयवर्धन सिंह को गोपाल भार्गव बस स्टैंड पर बैठे नजर आए! उन्होंने अपना काफिला रुकवाया और उनके पास जा पहुंचे। बताते हैं कि उन्होंने गोपाल भार्गव के चरण छूकर आशीर्वाद भी लिया।
इस बात को सालभर नहीं हुआ, जब कांग्रेस के बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अचानक पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से मिलने भोपाल में उनके घर पहुँच गए थे। दोनों के बीच बंद कमरे में बहुत देर तक बातचीत हुई! लेकिन, उसके बाद अचानक प्रदेश की राजनीति काफी हद तक गरमा गई थी! मुलाकात के बाद दोनों नेताओं ने वहाँ मौजूद मीडिया से बात भी की। दोनों ने ही इसे सामान्य मुलाकात बताया! लेकिन, इसके बाद भी कई दिनों तक इसके मंतव्य तलाशे गए और बहुत कुछ ऐसे अनुमान तक लगाए गए। किंतु, सालभर बाद भी वो अनुमान सही साबित नहीं हुए! राजनीतिक संभावनाओं को देखते हुए नतीजे निकाले गए, पर किसी ने भी तब इसे शिष्टाचार मुलाकात नहीं माना, जो कि वास्तव में थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तो यहाँ तक कहा था कि मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूँ, जो रिश्तों में आजीवन कटुता लेकर चले! मैं रात गई, बात गई में विश्वास करता हूँ। ताजा मामला इंदौर एयरपोर्ट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया और गोपाल भार्गव के अचानक मिलने का भी है। इस मुद्दे पर सवाल पूछे जाने पर सिंधिया का कहना था कि खेल के मैदान में राजनीति नहीं होना चाहिए, पर राजनीति के मैदान में खेल भावना बहुत जरुरी है।
प्रदेश के खेल मंत्री जीतू पटवारी भी राजनीतिक शिष्टाचार निभाने में अव्वल माने जाते हैं। कुछ दिनों पहले वे जब इंदौर में थे, हमेशा की तरह सुबह साइकिल चलाते हुए पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के घर पहुंच गए थे! दोनों के बीच करीब आधे घंटे तक बातचीत हुई! बाद में चाय-नाश्ता करके पटवारी लौट आए! इस मुलाकात को भी सियासी चश्मे से देखकर कारण खोजे गए, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, जैसी संभावनाएं जताई गई थी! जीतू पटवारी ने सिर्फ इतना कहा था कि उनकी मुलाकात को राजनीति से जोड़कर नहीं देखा जाए! मेरे क्षेत्र में मराठी समाज के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं, उनकी समस्याओं के बारे में 'ताई' ने मुझे निर्देशित किया था, मैं उनसे वही बात करने आया था। बीते नवंबर में केंद्रीय खेल मंत्री किरण रिजिजू को भी जीतू पटवारी अपने इंदौर के बिजलपुर स्थित निवास पर लंच के लिए ले आए थे। दरअसल, केंद्रीय मंत्री एक स्विमिंग पुल का उद्घाटन करने उज्जैन आए थे। लेकिन, प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के निघन के कारण यह कार्यकम अचानक निरस्त कर दिया गया। इस कार्यक्रम में जीतू पटवारी भी उनके साथ थे। वापसी में पटवारी उन्हें लंच के लिए अपने साथ घर ले आए।
प्रदेश की राजनीति के पन्नों को पलटा जाए, तो पता चलता है कि पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और सुंदरलाल पटवा के बीच भी मधुर रिश्तों का दायरा बहुत बड़ा था। कहा तो यहाँ तक जाता है कि अर्जुन सिंह ने एक अधिकारी को ये जिम्मेदारी सौंप रखी थी कि सुंदरलाल पटवा के जो भी निजी काम हो, उन्हें प्राथमिकता से किया जाए! विधानसभा में इन दोनों ही नेताओं के बीच कई बार कटुता के प्रसंग भी देखे गए, पर निजी संबंध हमेशा अच्छे बने रहे। दिग्विजय सिंह और उनके कार्यकाल में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे विक्रम वर्मा भी अच्छे दोस्त रहे! यहाँ तक कि विक्रम वर्मा की बेटी को दिग्विजय सिंह अपनी बेटी की तरह ही मानते हैं! उस दौर में दोनों की दोस्ती पर कई बार टिप्पणी भी की गई! पर, जब भी कोई राजनीतिक प्रसंग आया, विक्रम वर्मा ने मुखरता से विरोध करने कोई कसर नहीं छोड़ी! इसका सीधा सा तात्पर्य है कि राजनीति को दुश्मनी की तरह देखने और आंकने वालों को रिश्तों की गर्माहट को महसूस करना चाहिए, क्योंकि यही 'राज-नीति' है!
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