राजनीति में कोई व्यक्ति कम बोलकर कैसे सफल हो सकता है, ये मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने पहले साल में साबित कर दिया। उनकी ये राजनीतिक अदा बहुत कुछ अर्जुन सिंह से मिलती जुलती है! वे भी कम बोलते थे और ख़ास बात ये कि उन्हें किसी ने अनावश्यक बोलते हुए भी नहीं सुना! कमलनाथ के पाँच साल के कार्यकाल का पहला साल चुनौतियों से भरा रहा! उपलब्धियों के नजरिए से इसे पूरी तरह तो नहीं, पर सफल तो कहा ही जा सकता! पहले साल ने सरकार का आत्मविश्वास तो बढ़ाया ही है, लोगों को ये भरोसा भी दिलाया कि मुख्यमंत्री अपने फैसलों के प्रति सख्त हैं। उधर, विपक्ष को भी ये लग गया कि असंतुलित बहुमत के मुहाने पर खड़ी इस सरकार को वे जितना कमजोर समझ रहे थे, वो उनका भ्रम था! राजनीति को समझने वाले जो जानकार कमजोर बहुमत देखकर कमलनाथ को जिस तरह आंक रहे थे, उन्होंने भी अपनी धारणा बदल ली होगी। मुख्यमंत्री ने अपने शुरूआती साल में कुछ ऐसे फैसले किए जिनसे उनके इरादे स्पष्ट होते हैं! माफियाओं के खिलाफ मुहिम, पार्टी में अंदरूनी असंतोष पर काबू और नौकरशाही की बिगड़ी चाल को उन्होंने सही करके अपनी सख्ती का अहसास भी करवा दिया।
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- हेमंत पाल
सालभर पहले कमलनाथ ने जब मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री का पद संभाला था, तब जानकारों का मानना था कि वे ज्यादा दिन सरकार नहीं चला सकेंगे! इस आशंका के पीछे उनके पास कई तर्क और तथ्य भी थे! सबसे ठोस आधार था, सरकार का बहुमत के मुहाने पर खड़े होना, पार्टी में आंतरिक गुटबाजी, कमलनाथ का प्रदेश की राजनीति का कम अनुभव, राज्य का खजाना खाली होना और सशक्त विपक्ष के रूप में सामने भाजपा का होना! बात सही भी थी, लेकिन सालभर बाद इस धारणा में बदलाव आ गया! झाबुआ जीतकर कांग्रेस ने अपनी ताकत तो बढ़ा ही ली, कमलनाथ ने पार्टी में गुटबाजी भी कम की। सबसे बड़ी बात ये कि वे अनर्गल बयानबाजी से बिल्कुल दूर रहे! उन्होंने कोई गैरवाजिब घोषणाएं नहीं की और विपक्ष के आरोपों जवाब न देकर उनका मुँह बंद कर दिया। वे कम जरूर बोलते हैं, लेकिन जब बोलते हैं तो उनके शब्द मिसाइल की तरह विपक्ष को ध्वस्त कर देते हैं! 'सरकार चलाने और मुँह चलाने में फर्क है' और 'हमारी विजन की सरकार है, टेलीविजन की नहीं' जैसे वाक्यों में उन्होंने बहुत कुछ कह दिया, जिसने विपक्ष की जुबान पर ताले डाल दिए!
अब ये माना जाने लगा है, कि मुख्यमंत्री के रूप में कमलनाथ के कामकाज की शैली में बदलाव आ रहा है! वे खामोश रहकर भी अपनी आक्रामकता का अहसास करा रहे हैं। पहले उन्होंने अपनी कूटनीति से पार्टी के अंदर की गुटबाजी को तो काबू में किया ही, पार्टी के ऐसे लोगों को भी अहसास करवा दिया कि वे कमजोर मुख्यमंत्री नहीं है! जो लोग ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके बीच खाई को खुदता हुआ देखना चाहते थे, वे मायूस हो गए! सिंधिया को राज्यसभा में भेजने की ख़बरों ने उन लोगों की बोलती बंद कर दी, जो इस जंग में पलीता लगने का इंतजार कर रहे थे! दिग्विजय सिंह और उनके रिश्तों को लेकर भी कुछ लोगों ने गलतफहमियां पैदा करने की कोशिश की थी! लेकिन, ऐसे लोगों की दाल नहीं गली! लक्ष्मण सिंह जैसे विघ्नसंतोषी कांग्रेसी विधायक भी अनर्गल बोलने के बाद अब बगले झांकने लगे हैं!
भाजपा के डेढ़ दशक के राज में पगडंडी से उतर आई नौकरशाही को भी उन्होंने सुधारा! बिना राजनीतिक बदले जैसी कार्रवाई किए नौकरशाही में सुधार लाने की हरसंभव कोशिश भी की! इसका नतीजा ये रहा कि प्रदेश में सरकार के स्थिर होने के प्रति आत्मविश्वास बढ़ा! नाकारा सरकारी मशीनरी को दुरुस्त करने के लिए उन्होंने सेवाकाल के 20 साल और नौकरी के 50 साल पूरे करने वालों को अनिवार्य रूप से घर भेजने का फैसला किया गया! क्योंकि, सरकार चाहती है कि कर्मचारी और अधिकारी अपनी जिम्मेदारी को ठीक तरह से निभाएं। जो अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह हैं, उन्हें सेवा में रहने का अधिकार भी नहीं होना चाहिए! प्रदेश में निवेश को लेकर हुई समिट 'मेग्निफिशेंट एमपी' उनकी रणनीतिक सफलता का सबसे बड़ा उदहारण है। उन्होंने भाजपा के राज में करीब 75 करोड़ में हुई ऐसी ही समिट को 32 करोड़ में समेत दिया और वो भी ज्यादा सफलता के साथ!
माफिया सरगनाओं के खिलाफ प्रदेशभर में चली मुहिम ने आम लोगों के चेहरे पर ख़ुशी लाने का सबसे बड़ा काम किया। क्योंकि, आम लोग ऐसे माफियाओं को सींखचों के पीछे देखना चाहते थे, वही हुआ भी! ये मुहिम अपने कार्यकाल के पहले साल में ही छेड़ना कमलनाथ सरकार का सबसे हिम्मत वाला काम भी रहा! सरकार ने प्रदेशभर के हर तरह के अवैध धंधों में लिप्त माफिया सरगनाओं की कमर तोड़ने की शुरूआत की है। मिलावटखोरों के खिलाफ 'शुद्ध के लिए युद्ध' अभियान छेड़ा, जमीनों की लूट-खसोट करने वालों के कब्जे से जमीनें मुक्त कराई जा रही है। ऐसे सभी सफेदपोशों को निशाने पर लिया गया है, जो अवैध कारोबार करते हैं। इस कार्रवाई में न तो किसी के प्रभाव के आगे झुका गया और न अपनी पार्टी के लोगों को बख्शा गया।
ऐसे भाजपा नेताओं की भी कुंडली बनाई जा रही है, जो अनैतिक गलत गतिविधियों में लिप्त लोगों को संरक्षण देते हैं या जिनका खुद का ऐसा कारोबार है। सरकार की नजर उन लोगों पर भी है, जो राजनीतिक रसूख रखते हैं और अपने प्रभाव से गलत धंधों का कारोबार जमाए बैठे हैं। जिलों के प्रशासन से ऐसे लोगों के बारे में आंकड़े जुटाने को कहा गया है। इन लोगों पर कभी भी गाज गिर सकती है। कई भाजपा नेता हमेशा सरकार को अस्थिर करने की कोशिश में लगे रहते हैं। अब सरकार इस रणनीति पर भी काम कर रही है, कि इन पर कैसे लगाम लगाई जाए! रसूखदार नेताओं की उन कमजोर कड़ियों पर चोट की जाए, जहाँ वार करने से वे तिलमिलाएं! सरकार से जुड़े लोगों का ये भी मानना है कि जब विरोधी दल के नेताओं की सारी कारगुजारियों का ब्यौरा सरकार के पास होगा, तो ऐसे लोगों पर आसानी से लगाम लगाई जा सकेगी।
झाबुआ में हुए पहले विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस काे मिली बड़ी जीत ने भी मुख्यमंत्री कमलनाथ को मजबूती दी। उपचुनाव में कांग्रेस की जीत पर मुख्यमंत्री ने जनता का आभार जताते हुए कहा था कि हमारा आपका संबंध चुनावी नहीं, दिल से है। उन्होंने शिवराजसिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि वे घोषणा की राजनीति करते हैं, मैं घोषणाओं पर विश्वास नहीं करता। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि आपने कांग्रेस को चुनाव जिताकर अपना भविष्य सुरक्षित किया है। चुनाव के समय मैंने कहा था कि मैं आपसे दिल का संबंध बनाना चाहता हूं। यदि पिछली भाजपा सरकार ने यहां 15 सालों में कुछ काम किया होता, तो आपको मुझे इतने सारे आवेदन देने की जरूरत ही नहीं होती। हमने एक साल में अपनी नीति और नीयत से प्रदेश को आगे ले जाने का काम किया है। मुख्यमंत्री ने ये भी कहा था कि शिवराजसिंह हमेशा घोषणाएं करते थे। लेकिन, मैंने कहा कि मैं घोषणा नहीं करूंगा, जो करूंगा आपके सामने करूंगा। आपको निराश नहीं होने दूंगा। घोषणा करना बहुत आसान है, लेकिन उसे पूरा करना मुश्किल है। मैं घोषणा की राजनीति नहीं करता। ये बात काफी हद तक सही भी है! न तो कमलनाथ ने खुद कोई घोषणा की और न उनके मंत्रियों ने!
कांग्रेस सरकार का पहला साल पूरा होने के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने 'विजन टू डिलेवरी रोड मैप 2020-2025' में अपने आने वाले चार साल के कार्यकाल के विजन के बारे में बताया। इस मौके पर भी उन्होंने एक सटीक बात ये भी कही कि 'हमारी विजन की सरकार है, टेलीविजन की नहीं। हमने पहले ही कहा था कि घोषणा नहीं करेंगे। हमें अपने लोगों का सटिर्फिकेट चाहिए। एक साल पहले खाली खजाना मिला था। हमने 365 दिन में 365 वायदे पूरे किए हैं। हमने एक-एक साल की कार्य योजना बनाई है। हम माफिया मुक्त प्रदेश बनाएंगे, जिससे विकास के हर बिंदु को छुआ जा सके। ये प्रदेश के हर व्यक्ति, किसान और महिला का सपना भी है। कमलनाथ ने अपने रोड मैप में पांच साल में 10 लाख नए रोजगार के अवसर पैदा करने की बात कही है। 3.50 लाख जॉब मैन्युफैक्चरिंग तो 1.50 लाख सर्विस सेक्टर से रोजगार सृजित किए जाएंगे। इसके अलावा पांच लाख नौकरियां पर्यटन क्षेत्र से दी जाएंगी। इन लक्ष्यों को हांसिल करने के लिए कमलनाथ खुद इस रोड मैप की मॉनिटरिंग करेंगे। लेकिन, पहले साल में ये दावा थोड़ा कमजोर नजर आया! क्योंकि, एक साल में प्रदेश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या 7 लाख बढ़कर लगभग 28 लाख हो गई है। करीब 34 हजार को रोजगार भी मिला! लेकिन, ये संख्या सरकार के लिए चुनौती तो है।
विपक्ष की ताकत बनने की कोशिश में भी शिवराजसिंह चौहान कमलनाथ के खिलाफ फिर हल्की भाषा का इस्तेमाल करने से नहीं चूके! उन्होंने कहा कि 'टाइगर अभी जिंदा है!' 15 साल तक प्रदेश की सत्ता पर राज करने के बाद भाजपा जब पिछले साल सत्ता से बाहर हुई थी, तब मुख्यमंत्री निवास को खाली करने से पहले लोगों को संबोधित करते हुए शिवराज सिंह ने यही कहा था कि 'टाइगर अभी जिंदा है।' उस समय इस बात को गंभीरता से नहीं लिया गया था! लेकिन, पूरे साल शिवराज सिंह ने सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा! आज वे विपक्ष के बड़े चेहरे के रूप में स्थापित होने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन, यदि उन्हें वास्तव में कमलनाथ की घेराबंदी करना है, तो तथ्यात्मक आधार के साथ भाषा की गंभीरता भी रखना होगी! क्योंकि, लोग अब उलजुलूल बयानबाजी से ऊब चुके हैं! उन्हें कम बोलने और ज्यादा काम करने वाला नेता चाहिए, जिसमें कमलनाथ काफी हद तक सही साबित होते दिखाई दे रहे हैं!
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