Sunday, January 5, 2020

कभी न भूलने वाली बेहतरीन कॉमेडी फिल्में

- हेमंत पाल

  हिंदी सिनेमा के हर दौर में कॉमेडी फिल्में बनती रही हैं। लेकिन, समय के साथ इनका स्टाईल और पैटर्न बदलता रहा। कॉमेडी फिल्म के रूप में देश की पहली कॉमेडी फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' को माना जा सकता है। इसके बाद समय-समय पर कॉमेडी फिल्में दर्शकों को गुदगुदाती रहीं। लेकिन, समय के साथ कॉमेडी का ट्रेंड बदला और दर्शकों की पसंद भी! 1958 में बनी किशोर कुमार की फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' में किशोर के साथ उनके दो भाई अशोक कुमार और अनूप कुमार ने भी काम किया था। यह फिल्‍म अपनी शैली की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसके विषय में ही हास्य समाहित था। इस फिल्म के पहले ‌फिल्मों में कॉमेडी होती थी, पर पूरी तरह कॉमेडी फिल्में नहीं बनी। यह एक तरह का पहला प्रयोग था, जो सफल रहा! इस फिल्म को कॉमेडी फिल्मों का ट्रेंड सेटर कहा जाता है। इसके बाद 1962 में आई फिल्म ‘हाफ टिकट’ में किशोर कुमार की एक्टिंग को लोग आज भी याद करते हैं।
    1968 में आई 'पडोसन' का कथानक भी हंसी-मजाक से भरा था। इस फिल्म के हर पात्र ने अपनी सहज कॉमेडी से दर्शकों को हंसने पर मजबूर किया। ये फिल्म में पडोसी लड़की को प्रभावित करने और उससे प्रेम करने की कोशिश को बेहद चटपटे अंदाज में कहा गया था। गाँव के गेटअप वाले भोले (सुनील दत्त) का दिल उनकी पड़ोसन बिंदू (सायरा बानो) पर आ जाता है। बिंदू को संगीत का शौक है, उसे संगीत सिखाने मास्टर जी बने महमूद रोज आते हैं। 1972 में आई 'बॉम्बे टू गोवा' अमिताभ बच्चन के अभिनय वाली फिल्म थी। ये फिल्म एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो एक हत्या की गवाह होने के बाद कश्मकश में है। बस में उसकी मुलाकात कंडक्टर अभिताभ बच्चन से होती है। यह एक ऐसी मजेदार सवारी बस होती है, जो भारत के विभिन्न धर्मों और मान्यताओं के लोगों को एक साथ लेकर शुरू होती है। अमिताभ बच्चन के साथ एक रोमांचक सफर और शानदार गानों के साथ यह फिल्म काफी पसंद की गई! 
  ऋषिकेश मुखर्जी की 1975 में आई 'चुपके-चुपके' को सिचुएशनल कॉमेडी की पहली फिल्म माना जा सकता है। इस फिल्म को देखते वक्त तो दर्शक हंसते ही हैं, बाद में भी फिल्म के दृश्‍य उन्हें गुदगुदाते हैं। फिल्म में धर्मेंद्र का एक नया रूप दिखाई दिया था। प्रो परिमल त्रिपाठी बने धर्मेंद्र अपनी स्टाईल से दर्शकों को हंसाते हैं। फिल्म का हास्य तब चरम पर पहुंचता है, जब अंग्रेजी के प्रो सुकुमार सिन्हा (अमिताभ बच्चन) परिमल त्रिपाठी बनकर जया बच्चन को बॉटनी पढ़ाते हैं। ऋषिकेश मुखर्जी की ही फिल्म 'गोलमाल' को भी बेस्ट कॉमेडी फिल्म माना जाता है। 1979 में आई इस फिल्म में अमोल पालेकर ने पहली बार अपनी संजीदा पहचान से बाहर निकलकर कॉमेडी की थी। अमोल पालेकर ने इस फिल्म में दो किरदार निभाए थे। राम प्रसाद और लक्ष्मण प्रसाद की यह भूमिकाएं अलग ही ढंग से दर्शकों को हंसातीं। एक ही व्यक्ति मूंछों के साथ अलग तरह से बर्ताव करता और बिना मूंछों के दूसरे तरह से। मजे की बात यह थी कि दोनों की ही अलग-अलग पहचान थी। इस फिल्म का हास्य मूंछ लगाकर अभिनय करने और मूंछ न होने के डर में छुपा है। सई परांजपे की 1981 में आई फिल्म 'चश्मे बद्दूर' भी ऐसी फिल्म थी, जिसे आज भी याद किया जाता है। ये दिल्ली के तीन बेराजगार नौजवानों की कहानी है। इन तीनों नौकरी के साथ प्रेमिका की भी जरुरत होती है। हास्य का ताना-बाना इसी दूसरी जरूरत के इर्द-गिर्द है। फिल्म में फारुख शेख, रवि वासवानी और राकेश बेदी के अलावा दीप्ति नवल भी थी।  
    गुलजार जैसे गंभीर फिल्मकार ने 1982 में 'अंगूर' बनाकर अपनी नई पहचान से दर्शकों को अवगत कराया था। यह कॉमेडी अंग्रेजी प्ले 'कॉमेडी ऑफ इरर' पर आधारित थी। फिल्म का हास्य दो जुड़वां जोड़ियों के हमशक्ल होने की वजह से गढ़ा गया था। यहां एक जैसे चेहरे वाले दो आदमियों की दो जोड़ियां होती हैं। संजीव कुमार नौकर बने देवेन वर्मा के साथ उसी शहर में पहुंच जाते हैं, जहां पहले से ही संजीव कुमार और देवेन वर्मा की एक जोड़ी पहले से रह रही होती है। 1983 की फिल्म 'जाने भी दो यारों' राजनीति, मीडिया और नौकरशाही की बुराइयों पर एक सटीक व्यंग्य था। फिल्म के निर्देशक कुंदन शाह गंभीर समस्याओं पर प्रकाश डालने में शानदार तरीके से कामयाब रहे। उत्कृष्ट कलाकारों जैसे नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, पंकज कपूर, सतीश शाह, सतीश कौशिक और नीना गुप्ता ने इस फिल्म में शानदार अभिनय किया है, जिसके कारण निर्देशक और अभिनेताओं को कुछ अवार्डों से भी सम्मानित किया गया। फिल्म को गति तब मिलती है जब नसीरुद्दीन शाह और रवि बसवानी द्वारा खींचे गए एक फोटो से एक व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है। यह लगातार कई ट्विस्टों और छलकपटों का कारण बनता है।
 1994 में आई 'अंदाज अपना अपना' उस दौर में आई थी, जब कॉमेडी फिल्में लगभग बंद हो गई थीं। राजकुमार संतोषी की यह फिल्म अपने अंदाज और कॉमेडी की परफेक्ट टाइमिंग से दर्शकों को हंसाती है। उस दौर के दो सुपर स्टार सलमान खान और आमिर खान एक साथ फिल्म में थे। 2000 में परदे पर आई प्रियदर्शन की फिल्म 'हेराफेरी' नए दौर की कॉमेडी को लेकर ट्रेंड सेटर फिल्म कही जा सकती है। इस फिल्म के बाद फिल्मकारों को जैसे कॉमेडी फिल्म बनाने का कोई नुस्‍खा मिल गया। प्रियदर्शन ने भी इसके बाद इस शैली की कई फिल्में बनाई। फिल्म में अक्षय कुमार, परेश रावल और सुनील शेट्टी मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म का हास्य नौसिखए लोगों द्वारा किडनैपिंग का एक अधकचरा प्लान बनाकर पैसे कमाने की मानसिकता से उपजता है। 2003 में आई फिल्म ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ एक बेहतरीन कॉमेडी फिल्म थी। इस फिल्म में संजय दत्त और अरशद वारसी की एक्टिंग को लोग आज भी याद करते हैं। तीन साल बाद 2006 में इसका सीक्वल 'लगे रहो मुन्नाभाई' भी आया जो खूब चला! 
   अनीस बज्मी की 2005 की फिल्म 'नो एंट्री' का हास्य शादी के बाद बनने वाले अफेयर की वजह से शुरू होता है। फिल्म के पात्र अफेयर तो कर लेते हैं, पर उसे सही तरीके से हैंडिल न कर पाने की वजह से उनकी हालत बेचारों जैसी हो जाती हैं। फिल्‍म में अनिल कपूर, सलमान खान और फरदीन खान की तिकड़ी है। डर-डरकर इश्क कर रहे नायक की भूमिका में अनिल कपूर खूब जचे हैं। इसी साल आई 'क्या कूल हैं हम' एक सेक्स कॉमेडी फिल्म थी। इसे पहली सेक्स कॉमेडी फिल्म भी कहा जाता है। फिल्म का हास्य द्विअर्थी संवादों से रचा गया था। फिल्म में द्विअर्थी स्टाईल वाले जो संवाद छुपकर बोले जाते थे, इस फिल्‍म में उनका सरेआम प्रयोग हुआ। संवाद के साथ फिल्म के दृश्यों में भी विषयगत सेक्स कॉमेडी थी। फिल्म के कई दृश्य वाकई हास्य पैदा करते हैं। युवाओं के बीच यह फिल्म खूब लोकप्रिय हुई। लोगों को गांंधीगीरी का पाठ पढ़ाने जैसे गंभीर विषय पर हास्य रचना आसान नहीं है, पर राजकुमार हीरानी ने ये कमाल कर दिखाया! 
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