Tuesday, January 14, 2020

भूमाफिया ही नहीं, सूदखोरों का माफिया भी सक्रिय!

साठ के दशक में एक फिल्म आई थी 'मदर इंडिया' इसमें गाँव का सूदखोर सुक्खीलाल विधवा नर्गिस से कहता है 'तेरे गहने का तो तू मूल नहीं चुका पाई, अब तेरी उम्र ब्याज लौटाने की भी नहीं रही। जमीन मेरे नाम कर दे.. सब ठीक हो जाएगा।' वो तो फिल्म थी! लेकिन, आज  सुक्खिलाल जैसे हज़ारों सूदखोरों ने छोटे व्यापारियों और किसानों का जीना हराम कर रखा है! समय भले बदल गया हो, किंतु फिल्मी सूदखोर किरदारों की तरह हर गाँव और शहर में असली सूदखोरों की दहशत है। वे फ़िल्मी खलनायक की तरह लोगों के जीवन में दहशत फैला रहे हैं। इनकी प्रताड़ना से आकर लोग अकसर आत्महत्या करने तक को मजबूर हो जाते हैं। पुलिस के पास सूदखोरों के खिलाफ लगातार शिकायतें पहुंचती हैं। लेकिन, उनका कुछ नहीं बिगड़ता। इनके दबदबे के सामने पुलिस और प्रशासन भी दब जाता है। प्रदेश में ये ऐसा माफिया है, जो इनके चंगुल में फंसे लोगों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर देता है।
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- हेमंत पाल

   हर से लेकर गांवों में ब्याज पर कर्ज देने वालों की कमी नहीं है। लोग सोने-चांदी के जेवर, मकान और जमीन सूदखोरों के यहां गिरवी रखकर उनके तय मनमाने ब्याज पर लाखों रुपए का कर्ज ले रहे हैं। लेकिन, प्रशासन और पुलिस के पास यह जानकारी नहीं है कि जिले व शहर में पंजीकृत कितने सूदखोर हैं। वे कितने प्रतिशत ब्याज पर लोगों को कर्ज देते हैं। कर्ज लौटाने की शर्त और नियम क्या है। सूदखोरों का धंधा हर गाँव और शहर में बेख़ौफ़ चल रहा है। इनके शिकंजे में शहर के कई बड़े बिल्डर और उद्योगपति फंसे हुए हैं। इनकी वसूली के सबसे खौफनाक हथकंडे सुरक्षा संस्थानों के आसपास तक देखने मिलते हैं। पुलिस और प्रशासन भले ही मुहिम चलाकर सूदखोरों पर शिकंजा कसने का दावा करता हो, लेकिन हकीकत इसके ठीक विपरीत है। 
   पिछले दिनों इंदौर में एक छोटे सब्जी व्यापारी ने सूदखोरों से परेशान होकर जान दे दी। उसके पास से एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें चार सूदखोरों पर आरोप लगाया गया है। उसने अलग-अलग लोगों 5-6 लाख रुपए ब्याज पर लिए थे। 8 साल में वह पूरा मूलधन और उसका ब्याज भी दे चुका था। उसके बाद भी सूदखोर उससे ब्याज व आधे रुपए और मांग रहे थे। उसे धमकी दी जाती थी कि घर के किसी भी सदस्य को किडनेप कर लेंगे। जबलपुर में भी एक व्यक्ति ने सूदखोरों से परेशान होकर आत्महत्या करने की कोशिश की। क्योंकि, कर्ज चुकाने  बावजूद सूदखोर उस पर कर्ज लौटाने के लिए उस पर कई तरह का दबाव बना रहे थे। रुपया न देने पर परिवार को जान से मारने की धमकी दे रहे थे। नीमच में सूदखोर के आंतक से प्रताडित होकर एक नौजवान ने सल्‍फास खाकर आत्‍महत्‍या करने की कोशिश की, जिसे गंभीर हालत में अस्‍पताल में भर्ती कराया गया। ऐसे ही सूदखोरों से प्रताड़ित होकर नीमच में ही एक किसान ने अपना वीडियो बनाकर आत्‍महत्‍या कर ली थी।
   किसान और व्यापारी बैंक कर्ज के कारण आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं होते! वे सबसे ज्यादा सूदखोरों से परेशान होते हैं। वे ज्यादा ब्याज पर तो कर्ज देते ही हैं, बदले में खाली चेक, खेत और संपत्ति के कागजात तक बंधक बनाकर अपने पास रख लेते हैं। प्रदेश में छोटे व्यापारियों किसानों की ख़ुदकुशी का एक बड़ा कारण ये भी है। भूमाफिया समेत सभी माफियाओं पर नियंत्रण पाने के लिए सख्त कार्रवाई करने वाली कमलनाथ सरकार को प्रदेश के 'साहूकारी कानून' को भी सख्त बनाकर इससे प्रभावित लोगों को राहत देना चाहिए! शिवराज-सरकार तो घोषणा के बावजूद दबाव में आकर कोई कार्रवाई नहीं कर सकी थी! राजनीतिक पार्टियों के सामने किसानों की कर्जमाफी हमेशा ही एक मुद्दा बनती रही है। ज्यादातर  राजनीतिक दल इसकी भी वकालत करते हैं। लेकिन, किसी के पास इस समस्या का कोई स्थायी निराकरण नहीं है। 
   वास्तव में यदि ऐसा होता, तो 2008 की 60 हजार करोड़ रुपए से ज़्यादा की किसानों की कर्ज़ माफ़ी के बाद ख़ुदकुशी की घटनाएं बंद हो जाना थी, पर ऐसा नहीं हुआ! इस समस्या का हल किसानों की आय बढ़ाने में है, न कि कर्ज़ माफ़ी में! लेकिन, सरकार शायद अभी इस दिशा में कुछ सोचा नहीं रही है। मध्यप्रदेश ने पिछले कुछ सालों में कृषि में अभूतपूर्व प्रगति की है, तो फिर राज्य के किसान क़र्ज़ में क्यों हैं और वे ख़ुदकुशी क्यों कर रहे हैं? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है! अब ये कमलनाथ सरकार की जिम्मेदारी है कि वो किसानों के बैंक कर्ज माफ़ करने की वाह-वाही लूटने के बाद अब साहूकारों की गर्दन पर हाथ रखे! क्योंकि, जब तक किसानों और व्यापारियों को साहूकारों से मुक्ति नहीं मिलेगी, वे तनाव में रहेंगे और आत्महत्या के लिए मजबूर भी होंगे।
   बैंक से कर्ज लेने के अलावा सूदखोरों से भी कर्ज लेना किसानों और छोटे व्यापारियों की मज़बूरी है। साल में कम से कम दो बार ऐसे मौके आते हैं, जब उन्हें इन सूदखोरों के चंगुल में फंसना पड़ता है। इसी वक़्त का फ़ायदा उठाकर सूदखोर 8 से 12 फीसदी ब्याज पर कर्ज देते हैं। कर्ज देने के साथ ही वे अपना ब्याज भी काट लेते हैं। ब्याज पर रुपए देने के बदले किसान की जमीन, मकान की रजिस्ट्री, वाहन, सोने-चांदी के जेवर तक अपने पास रख लेते हैं। इसके बाद तय समय पर रुपए नहीं लौटाने पर पेनल्टी लगाई जाती है। पेनल्टी 10 से 25 फीसदी तक वसूली जाती है। जो रुपए नहीं देता उसकी उसकी जमीन, मकान, वाहन तक ये सूदखोर हड़प लेते हैं। उसे बेइज्जत भी किया जाता है। ऐसे में ब्याज लेने वाला व्यक्ति प्रताड़ित होने लगता है। उसके घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है और वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है। ब्याज पर रुपए देने के साथ ही हुंडी-चिट्ठी का कारोबार भी किसानों से किया जाता है। इसमें ब्याज पर रुपए देने के बाद चिट्ठियों से हिसाब-किताब रखा जाता है। ये भी देखा गया है कि ये सूदखोर गुंडों को कर्जदार के सारे कागजात बेच देते हैं! इसके बाद गुंडों की गैंग कर्जदार से मनमर्जी की वसूली का तगादा करने लगती है! ऐसे में न तो पुलिस कुछ कर पाती है, न प्रशासन को ही भनक लगती है।
    बड़े सूदखोर योजनाबद्ध तरीके से अवैध कारोबार चलाते हैं। सूदखोर पहले ही ब्याज काटकर कर्ज देते हैं। कर्ज देने से पहले कर्ज लेने वाले से हस्ताक्षर वाला ब्लैंक चेक या स्टांप ले लेते हैं। फिर 8 से 12 फीसदी मासिक ब्याज पर कर्ज दिया जाता है। इसके बाद मूल रकम के साथ ही ब्याज वसूली का खेल शुरू हो जाता है। मूल रकम से दो से तीन गुना से अधिक रकम कर्जदार ब्याज में चुका भी देता है, लेकिन उस पर कर्जा बरकरार रहता है। सूदखोरों की तरफ से वसूली के लिए प्रताड़ित तक किया जाता है। गुंडे बदमाशों तक की मदद तक ली जाती है। सूदखोरों की कोशिश होती है कि कर्जदार रकम चुकाने में असमर्थ हो जाए। जब वे अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं तो हस्ताक्षर वाले ब्लैंक चेक या कोरे स्टांप से ब्लैकमेलिंग का खेल शुरू हो जाता है। चेक में मनमानी रकम भरकर या तो बाउंस कराकर मुकदमा दर्ज करा दिया जाता है या फिर स्टांप के सहारे कर्जदार की संपत्ति पर कब्जा कर लिया जाता है। संगठित रूप से सक्रिय सूदखोरों का पेट भरता रहता है और कर्जदार अपना सबकुछ गंवा बैठता है।
   देखा गया है कि बेहद जरूरत के वक़्त ही व्यक्ति सूदखोर से कर्ज लेता है। इसलिए उस पर कर्ज चुकाने का खासा दबाव रहता है। कर्जदार तो पूरी रकम चुकाना चाहता है, मगर ब्याज की रकम इतनी बढ़ती जाती है कि उसकी कमाई इसे चुकाने में ही चली जाती है। सिर पर कर्ज होने की वजह से वह पुलिस प्रशासन से शिकायत करने का जोखिम उठाने से भी कतराता है। ऊपर से सूदखारों का रसूख भी उनको ऐसा करने से रोक देता है। कई सूदखोर छोटे दुकानदारों को ब्याज की किश्त पर उधार देते हैं। दस हजार रुपए का कर्ज चुकाने के लिए सौ दिन का वक्त दिया जाता है। रोज 130 रुपए की किस्त जमा करनी पड़ती है। अगर एक दिन किसी कारण किस्त नहीं दी तो 50 रुपए ब्याज चढ़ जाता है। अगर दूसरे दिन किस्त जमा नहीं कर पाया तो ब्याज की राशि दोगुनी हो जाती है। यह ब्याज सहित किस्त तो रकम के अनुसार तय होती है।
  प्रदेश में छोटे व्यापारी और किसान सूदखोरों से बहुत परेशान हैं। इसी से परेशान होकर वे मजबूर होकर ख़ुदकुशी कर लेते हैं। शिवराज सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में 'साहूकारी कानून' में बदलाव करने की घोषणा भी की थी! लेकिन, इन्हीं साहूकारों के दबाव में ये घोषणा पूरी नहीं हो पाई! साल 2010-11 में भी प्रदेश में ऐसे ही हालात बने थे, जब सूदखोरी के चलते 89 किसानों की आत्महत्या की थी। तब, शिवराज-सरकार ने स्वीकारा था, कि किसानों की ख़ुदकुशी का कारण सूदखोरी है। किसानों की ख़ुदकुशी पर जब हंगामा हुआ तो शिवराजसिंह चौहान ने 15 जनवरी 2011 को 'साहूकारी कानून' में बदलाव की घोषणा की। उन्होंने राजस्व विभाग को संशोधन का ड्राफ्ट जल्द तैयार करने के निर्देश भी दिए थे। विभाग को कानून में संशोधन का ड्राफ्ट तैयार करने में 4 साल लगे। दो बार ये ड्राफ्ट मुख्यमंत्री के सामने रखा गया, लेकिन अंतिम फैसला नहीं हुआ। इसके बाद 8 सितंबर 2015 को मुख्यमंत्री सचिवालय से प्रक्रिया को यथास्थिति रखने के निर्देश आ गए। तब से इस कानून में बदलाव की फाइल अलमारी में ही बंद है। कमलनाथ सरकार को चाहिए कि उस फाइल को नए सिरे से जांचे और साहूकारी माफिया को भी काबू में करे।
  'साहूकारी कानून' में प्रस्तावित बदलाव के तहत ब्याज पर लेन-देन करने वाले सूदखोरों को लाइसेंस देने और गैर-लाइसेंसी सूदखोरों द्वारा दिए गए कर्ज को शून्य घोषित करने का प्रावधान रखा गया था। सूदखोरों द्वारा दिए जाने वाले खेतीहर कर्ज की ब्याज दर का निर्धारण भी किया जाना था, ताकि सूदखोर मनमाने तरीके से ब्याज न वसूल सकें। प्रदेश के तत्कालीन गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता ने किसानों की ख़ुदकुशी से संबंधित आंकड़े भी विधानसभा के सामने रखे थे। इस रिपोर्ट के मुताबिक 6 नवंबर 2010 से 20 फरवरी 2011 के बीच 89 किसान और 47 कृषि श्रमिक ने सूदखोरों के कारण ही ख़ुदकुशी की। वहीं 58 मामले ख़ुदकुशी की कोशिश के भी दर्ज हुए। 2010 में सरकार ने किसानों द्वारा की गई ख़ुदकुशी के मामलों की जांच कराई गई थी। जांच में पता चला था कि फसल खराब होने के कारण किसान कर्ज नहीं लौटा पा रहे हैं। किसानों ने बैंकों के अलावा सूदखोरों से भी 2 से 6 फीसदी ब्याज पर कर्ज ले रखा था, जिसकी वसूली के लिए सूदखोर लगातार तकादा लगा रहे थे।
      मानवाधिकार आयोग ने भी मध्यप्रदेश में किसानों की ख़ुदकुशी के बढ़ने मामलों पर टीम का गठन किया था। इस टीम ने जाँच के बाद आयोग को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें खुलासा हुआ कि प्रदेश में व्यापारियों और किसानों की आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण सूदखोर ही हैं। इनके दबाव में ही ये लोग ख़ुदकुशी करते हैं। आयोग ने शिवराज सरकार के राजस्व विभाग को भी ये जाँच सौंपी थी। इस रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा था कि प्रदेश सरकार साहूकारी कानून का पालन कराने में नाकाम साबित हुई है। क़रीब 9 साल पहले 'कृषि लागत एवं मूल्य आयोग' (सीएसीपी) ने पंजाब में कुछ घटनाओं के आधार पर किसानों की ख़ुदकुशी की वजह जानने की कोशिश की थी। इसमें भी सबसे बड़ी वजह किसानों पर बढ़ता कर्ज़ और उनकी छोटी होती जोत बताई गई। साथ ही मंडियों में बैठे साहूकारों द्वारा वसूली जाने वाली ब्याज की ऊंची दरें बताई गई थीं। लेकिन, यह रिपोर्ट भी सरकारी दफ़्तरों में दबकर रह गई! असल में खेती की बढ़ती लागत और कृषि उत्पादों की गिरती क़ीमत किसानों की निराशा की सबसे बड़ी वजह है।
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