हेमंत पाल
कहानी किसी भी फिल्म की जान होती है। कहानी ही फिल्म में रंग भी भरती है! लेकिन, उसी कहानी में यदि सटीक संवादों का तड़का लग जाए तो फिल्म की पहचान सालों तक बनी रहती है! लेकिन, अब फिल्मों में याद रह जाने लायक संवाद कम ही सुनाई देते हैं। आजादी से पहले जरूर कुछ फिल्में सिर्फ संवादों की वजह से ही चर्चित हुईं थीं! सोहराब मोदी की ‘पुकार’ व ‘सिकंदर’ ऐसी ही फ़िल्में थी! इन फिल्मों में दर्शक को देशप्रेम के प्रति उद्वलित करने की गजब की ताकत हुआ करती थी! बीआर चोपड़ा की ‘कानून’ व ‘इंसाफ का तराजू’ में संवादों से ही कानून की कमियों को उभारा गया था। कुछ फ़िल्में तो सिर्फ उनके संवादों के कारण ही आजतक याद की जाती हैं! ऐसी फिल्मों में मुगले आजम, शोले, दीवार हैं। पृथ्वीराज कपूर द्वारा 'मुगले आजम' में बोला गया संवाद 'सलीम की मोहब्बत तुम्हें मरने नहीं देगी और हम तुम्हें जीने नहीं देंगे!' ‘शोले’ का डायलॉग ‘तेरा क्या होगा कालिया’ और 'कितने आदमी थे', ‘दीवार’ का ‘मेरे पास मां है’ वो संवाद हैं जो सुनते ही फिल्म की याद दिलाते हैं! सहजता से बोले गए इन संवादों ने फिल्मों को कालजयी बनाने में खासा योगदान दिया!
अमिताभ बच्चन का फिल्म ‘डॉन’ का ये संवाद ‘डॉन का इंतजार तो ग्यारह मुल्कों की पुलिस कर रही है, लेकिन डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है!’ आज भी सुनाई देता है, तो आँखों के सामने अमिताभ का शातिर चरित्र घूम जाता है। शत्रुघ्न सिन्हा जब अपने केरियर के शिखर पर थे, तब 'कालीचरण' और ‘विश्वनाथ’ के संवाद गली-गली में सुनाई दे जाते थे! शाहरुख़ खान का ‘बाजीगर’ में बोला गया संवाद ‘कभी कभी कुछ जीतने के लिए कुछ हारना पड़ता है और हार के जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं’ फिल्म के पूरे कथानक का निचोड़ था! ऐसा ही सलमान खान का ‘वांटेड’ का संवाद था ‘एक बार जो मैंने कमिटमेंट कर दी, फिर तो मैं अपने आपकी भी नहीं सुनता।’ सन्नी देओल का 'दामिनी' का संवाद 'तारीख पर तारीख…' और 'यह ढाई किलो का हाथ किसी पर पड़ जाता है तो आदमी उठता नहीं, उठ जाता है!' दर्शक शायद ही कभी भूलें!
संवादों का जोरदार असर तभी अच्छा होता है, जब उसे उसी शिद्दत से बोलने वाला एक्टर भी मिले! तभी हर संवाद चरित्र की पहचान से जुड़ता भी है। राजकुमार, शत्रुघ्न सिन्हा और नाना पाटेकर के संवादों में अकड़ की झलक देखी गई! लेकिन, राजकुमार के 'पाकीजा' में बोले गए उनके एक संवाद ने उनकी पहचान ही बदल दी! वो संवाद था ‘आपके पैर देखे, बहुत हसीन हैं। इन्हें जमीन पर मत उतारिएगा मैले हो जाएंगे।’ इसी तरह रोमांटिक हीरो राजेश खन्ना के भी कुछ संवाद कालजयी तो बन गए! जैसे ‘आनंद’ का संवाद 'तुझे क्या आशीर्वाद दूं बहन, ये भी तो नहीं कह सकता कि मेरी उम्र तुझे लग जाए!' फिर ‘अमर प्रेम’ का संवाद ‘पुष्पा, आई हेट टियर्स!’ अजित, प्रेम चोपड़ा और अमरीश पुरी के बोले हर संवाद में क्रूरता का अंदाज था! प्रेम चोपड़ा का 'बॉबी' में बोला गया ये संवाद कितना सहज और सरल है 'प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा!' लेकिन, उनकी अदायगी की क्रूरता ने इसे यादगार बना दिया! ‘कालीचरण’ में अजित का संवाद ‘सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है’ और ‘मिस्टर इंडिया’ में अमरीश पुरी का ‘मोगैंबो खुश हुआ’ भी अपने अलग अंदाज की वजह से याद रहा!
यादगार संवाद सिर्फ हीरो के हिस्से में ही नहीं आए! कुछ हीरोइनों के संवाद भी दर्शक भूल नहीं पाए! जैसे ‘दबंग’ में सोनाक्षी सिन्हा का संवाद 'थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब प्यार से लगता है!’ ‘द डर्टी पिक्चर्स’ में विद्या बालन का ‘फिल्म तीन वजह से चलती है एंटरटेनमैंट, एंटरटेनमैंट और एंटरटेनमैंट और मैं एंटरटेनमैंट हूं’ लोकप्रिय हुआ। 'ओम शांति ओम' में दीपिका पादुकोण के संवाद 'एक चुटकी सिन्दूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू' से फिल्म में दीपिका के अंदाज का सहज पता लग जाता है। 'गैंगस्टर' में कंगना रनोट का संवाद 'सपनों को देखना और सपनों का पूरा हो जाना बहुत अलग बातें हैं!' लेकिन, फिल्मों के संवाद तभी कारगर होते हैं, जब फिल्म में दर्शकों को सिनेमाघर तक खींचने की ताकत हो!
--------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment