- हेमंत पाल
मध्य प्रदेश सरकार ने प्रदेश में शराबबंदी की दिशा में कदम बढ़ाने शुरू कर दिए! कैबिनेट ने नई आबकारी नीति को मंजूरी भी दे दी। संकेत हैं कि सरकार शराबबंदी को लेकर कोई बड़ा फैसला भी ले सकती है। दरअसल, सरकार अब अपने उन्हीं क़दमों को पीछे खींच रही है, जो उसने कभी आगे बढ़ाए थे! सरकार ने कैबिनेट में भी जो फैसले लिए गए, वे तार्किक रूप से सही नहीं लगते! प्रदेश में यदि शराबबंदी फैसला किया जाता है, तो सरकार को सबसे पहले इसके साढ़े 8 हज़ार करोड़ के राजस्व के नुकसान की भरपाई का विकल्प ढूँढना होगा! नए कर लगाकर इसकी पूर्ति की जाती है तो सरकार को लोगों की नाराजी झेलना पड़ सकती है!
नई नीति में तय किया गया कि कोई नई शराब दुकान नहीं खुलेगी! नर्मदा नदी के किनारे की दुकानों को भी बंद किया जाएगा। नर्मदा के किनारे से 5 किमी के दायरे में शराब की दुकान नहीं रहेगी। बेहतर होता कि सरकार उमा भारती के कार्यकाल के समय लिए गए उन फैसलों का अध्ययन कर लेती, जिसमें उन्होंने उज्जैन, ओंकारेश्वर समेत प्रदेश के सभी धार्मिक शहरों को शराब से मुक्त रखने का निर्णय लिया था! आज के फैसले से उमा सरकार का फैसला कहीं ज्यादा सही दिखाई देता है। नेशनल हाई-वे के किनारे बनी शराब दुकानों को हाई-वे से 500 मीटर की दूर हटाने से भी समस्या हल नहीं होगी! ये दूरी ज्यादा होना थी, जिससे आसानी से शराब मिलना संभव न हो! हाई-वे पर बोर्ड लगाकर भी दुकानदार शराब के शौकीनों को आमंत्रित कर सकते है! उन्हें सरकार कैसे रोकेगी?
आज सरकार आंशिक शराबबंदी को लेकर नए नियम बना रही है। लेकिन, भाजपा सरकार के पिछले दो कार्यकालों में शराब की दुकानों की संख्या लगातार बढ़ाई गई! पूर्व वित्त मंत्री रहे राघवजी ने तो इसे राजस्व बढ़ाने का आसान फार्मूला ही मान लिया था। शराब की बिक्री बढ़ाने के लिए आउटलेट खोलने एवं शराब से वैट टैक्स कम करने के प्रस्ताव भी कैबिनेट में विचारार्थ रखे गए थे! 10 लाख से ज्यादा आयकर देने वालों को 100 बोतल शराब घर में रखने की छूट देने तक का प्रावधान किया गया! लेकिन, तब सामने आई नकारात्मक प्रतिक्रियाओं के बाद सरकार को अपने कदम खींचना पड़े! यदि सरकार वास्तव में शराबबंदी की तरफ कदम बढ़ा रही है तो शराब की दुकानें रात साढ़े 11 बजे तक खुली रखने की छूट क्यों दी गई? रेस्टोरेंटों में रात 12 बजे तक शराब परोसने का समय दिया गया! जबकि, राजस्थान और दिल्ली में शराब दुकानों के खुलने एवं बंद होने के बीच का समय घटाया गया है! सरकार ने हर साल 20 फीसदी बढ़ने वाले दुकान आवंटन शुल्क को भी घटाकर 15 फीसदी कर दिया गया!
शराब से जुड़े कैबिनेट के ताजा फैसलों से लगता नहीं कि इस विषय को गंभीरता से समझा भी गया! शराब दुकानों के बाहर 'मदिरापान हानिकारक है' के बोर्ड लगाने से जागरूकता आएगी, ये सोचना भी अपने आपको भ्रमित करना है। क्योंकि, यदि ऐसा होता तो सिगरेट की डिब्बी पर लिखी चेतावनी पढ़कर लोग कब से सिगरेट त्याग चुके होते! एक फैसला ये भी किया गया कि शराब दुकान मालिकों से उन शराबियों की लिस्ट मांगी जाएगी, जो आदतन शराबी हैं! ये बेहद हास्यास्पद लगता है। ये कैसे संभव होगा और क्या दुकानदार सभी शराब खरीदने वालों के नाम, पते दर्ज करेगा? शराब का किसी भी तरह का प्रचार प्रतिबंधित ही है, फिर भी प्रदेश सरकार ने फैसला किया कि मीडिया में शराब का प्रचार प्रतिबंधित किया जाएगा! वास्तव में प्रचार शराब का नहीं होता, बल्कि उसी ब्रांड नाम से किसी और उत्पाद जैसे सोडा या ग्लास का होता है! बेहतर होता कि सरकार 'शराब के ब्रांड' के प्रचार को प्रतिबंधित करती, जो नहीं किया गया! जो फैसले लिए गए वो सरकार की गंभीरता को तो नहीं, अधूरे होमवर्क को जरूर सामने लाते हैं।
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