Friday, January 20, 2017

सरकार को नहीं पता 'आनंद' और 'सुविधा' का अंतर?

- हेमंत पाल 

  मध्यप्रदेश में अब कोई दुखी नहीं होगा, लोग हमेशा खुश रहेंगे! दिल से खुश नहीं भी होंगे, तो खुश रहने या दिखाने की आदत तो डालना होगी! कम से कम चेहरे पर दिखाना तो होगा ही कि वे खुश भी हैं और खुशहाल भी! इसलिए कि सरकार यही चाहती है। सरकार ने सप्ताहभर का 'आनंद उत्सव' भी इसीलिए मना लिया! भूटान ने 1972 में 'हैप्पीनेस इंडेक्स' का मॉडल बनाया था! वहाँ जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) के बजाए लोगों की खुशियों को देश की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस मॉडल से प्रभावित होकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी 'आनंद विभाग' बनाना तय किया और बना भी दिया। कहा गया कि इस विभाग के जरिए लोगों को जीवन से तनाव दूर करने और खुश रहने के उपाय बताए जाएंगे। लेकिन, जो किया जा रहा है, उससे सरकार का मकसद स्पष्ट नहीं हो रहा! गरीबों को पुराने कपडे बाँट देने से उनकी जरूरत तो पूरी हो जाएगी, पर वे खुश हो जाएंगे ये सरकार का भ्रम है! लगता है 'आनंद' और 'सुविधा' के फर्क को ठीक से समझा नहीं गया! 'आनंद' किसी को दिया नहीं जा सकता, ये अंदर से उपजता है! उसे खोजनाभर होता है। सरकार के 'आनंद' की परिभाषा में यही खोट नजर आ रही है! लोगों के अभाव की पूर्ति कर देने से वो व्यक्ति सुखी तो हो सकता है, पर आनंदित नहीं! 'आनंद' कभी खो नहीं सकता, इसलिए वह पाया ही नहीं जा सकता! वह तो मौजूद है, उसे केवल जाना जाता है।
   मध्य प्रदेश में नए बने आनंद विभाग के तहत सप्ताहभर का 'आनंद उत्सव' मनाया गया! उत्सव की शुरुवात पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा कि सरकार का लक्ष्य लोगों के जीवन में खुशियां लाना है। सभी को घर और शिक्षा देना सरकार की प्राथमिकता है। मुख्यमंत्री ने ये भी कहा कि जो आनंद फकीरी में है, वो अमीरी में कहाँ? लोग आँसू बहाते रहें और सरकार चलती रहे तो ऐसी सरकार चलाने का क्या मतलब है? धन, दौलत, पद या प्रतिष्ठा से आनंद नहीं आता, बल्कि सकारात्मक सोच से जीवन में आनंद भरता है। मुख्यमंत्री के मुताबिक जियें तो आनंद से जियें और लोग एक दूसरे के काम आएं। सरकार के मुखिया होने के नाते मुख्यमंत्री के विचार बहुत अच्छे हैं! लेकिन, 'आनंद' और 'सुख' में सरकार कहीं न कहीं भ्रम में है। आनंद की अनुभूति बाहर से नहीं होती, ये अन्तर्निहित है। इसलिए सुविधाभोगी सुख को आनंद नहीं समझा जाना चाहिए। 'आनंद' और 'सुख' में बड़ा अंतर है। अभाव के कारण दुख होना स्वाभाविक है, पर सुख होने पर आनंद की अनुभूति होगी, ये नहीं कहा जा सकता! आनंद का सही मतलब है जहाँ बाहर की कोई भी प्रतिक्रिया हमें प्रभावित नहीं करे, न दुख का न सुख का! सुख और दुख बाहर से आई हुई अनुभूतियां हैं। 'आनंद' वह अनुभूति है जिसमें कुछ भी बाहर से नहीं आता। 'आनंद' बाहर का अनुभव न होकर स्वयं का अनुभव है।
   मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब इस विभाग के प्रारूप को सामने रखा था, तब उनका कहना था कि मनुष्य के जीवन में भौतिक खुशहाली और समृद्धि से आनंद नहीं आ सकता। इस विभाग का मकसद लोगों को निराशा में आत्महत्या जैसे कदम उठाने से रोकना है, ताकि सकारात्मकता बनी रहे। लोगों के जीवन में खुशियां लाने के लिए योग, ध्यान, सांस्कृतिक आयोजन जैसे सभी उपाय किए जाएंगें। सबसे पहले शहरों में रहने वाले बच्चों पर प्रयोग किया जाएगा! इसके तहत छात्रों को खुश रखने के लिए योग, ध्यान और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा! लेकिन, जो हुआ उसमें ऐसी कोई कोशिश नजर नहीं आई! सरकार की इस घोषणा से एक उम्मीद जागी थी। किंतु, शुरुआती कदम असरदार नहीं दिखा! सिर्फ आनंद विभाग बना देने से ही खुशहाली आ जाती और सरकारी विभागों के कामकाज इतने ही असरदार होते, तो महिला एवं बाल कल्याण विभाग का मकसद अभी तक पूरा हो चुका होता! ग्रामीण विकास तो अब तक का नया अध्याय लिख चुका होता! शिक्षा, स्वास्थ्य और गृह विभागों से किसी को कोई शिकायत ही नहीं होती! कृषि विभाग किसानों के वारे-न्यारे कर चुका होता! लेकिन, अब तक ऐसा कुछ हुआ है न होगा और न ऐसे कोई आसार ही हैं! न महिलाओं और बच्चों का जीवन स्तर सुधरा और न ग्रामीण विकास की दिशा में कोई ठोस काम हुआ! सरकारी स्कूलों और सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा सब जानते हैं। 
  जिस प्रदेश की सरकार पर 82 हजार 261 करोड़ 50 लाख रुपए का कर्ज हो! मौजूदा समय में हर व्यक्ति करीब साढ़े 15 हजार रुपए का कर्जदार हो, वो 'आनंद' महसूस कैसे कर सकता है? जो सरकार लोगों को आनंदित करने के लिए अलग विभाग खोलकर बैठी है वहाँ अपराधों का ग्राफ भी आसमान छू रहा है! पिछले साल ही महिलाओं से जुड़े अपराधों में करीब सात प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है। प्रदेश में हर साल महिला अपराधों पर अंकुश लगाने के प्रयास किए जाते हैं। महिलाओं की सुरक्षा और योजनाओं पर सरकार करोड़ों रुपए बहाती है। लेकिन, जमीनी हकीकत अलग है। 2015 में जनवरी से जून तक कुल 24,233 महिला अपराध हुए, जबकि 2016 की उसी अवधि में 25,860 अपराध दर्ज किए गए। हत्या के प्रयासों में 16 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई। साधारण मारपीट, छेड़छाड़, अपहरण, दहेज हत्या, दहेज प्रताड़ना, आगजनी, धमकी, मानव तस्करी और बाल अपराध की घटनाओं का आंकड़ा भी लगातार बढ़ रहा है। इसके बावजूद कोई आनंद का अनुभव कैसे कर सकता है!
  लोगों के जीवन में खुशहाली लाने का काम सरकार का है, ये नितांत सत्य है! लेकिन, गरीबों को पुराने कपडे बाँट देने, उनकी जरूरतों का सामान दे देने या उनके साथ थोड़ी देर पतंग उड़ा लेने से किसी को 'आनंद' की अनुभूति हो जाएगी, ये कैसे संभव है! सिर्फ गरीब को ही आनंद जरुरत है, सरकार का ये सोच भी सही नहीं कहा जा सकता! बेहतर होता कि सरकार ये प्रयोग करने से पहले अपने दायित्व के प्रति भी गंभीरता दिखाती, इसके बाद ही ये कोशिश शुरू करती! आज मध्यप्रदेश में रहने वाला हर अमीर और गरीब व्यक्ति भ्रष्टाचार, महंगाई, बिजली, पानी, बेरोजगारी और नौकरशाही से त्रस्त है। जब तक सरकार इन समस्याओं से निजात नहीं दिला सकती 'आनंद विभाग' जैसे प्रयोगों की कोई जरुरत नहीं हैं। गुदगुदाकर किसी को थोड़ी देर तो हंसाया जा सकता है। पर, ये दिल से निकली ख़ुशी नहीं होगी! यदि सरकार लोगों को निजी जीवन में ख़ुशी देना चाहती है, तो उसे पहले अपने विभागों को उनकी जिम्मेदारी के प्रति कसना होगा! इसके बाद लोगों की निजी जिंदगी में झांककर दुःख दूर करने की कोशिश करना चाहिए!  
   साथ में मॉर्निंग वॉक करने वाले लोग अपना तनाव दूर करने के लिए कई बार साथ खड़े होकर बेवजह हंस लेते हैं! चुटकुले सुनकर भी हंसी आ जाती है, गुदगुदी भी हंसाती है! पर, ये सब कहीं से भी 'आनंद' नहीं होता! क्योंकि, ये क्षणिक है। शायद उसी तरह सरकार को लगा होगा कि वो भी लोगों को गुदगुदाकर हंसने के लिए मजबूर कर सकती है! जिन लोगों के जीवन में तनाव है, अभाव है और हर वक़्त चिंता है। उनको 'आनंद' देने में सरकार को बरसों लग जाएंगे! वाहवाही के लिए सरकार सप्ताहभर का उत्सव मनाकर अपनी सफलता का जश्न मना ले, पर इससे कोई आनंदित हुआ होगा, ऐसा नहीं लगता! इसलिए कि खुशहाली का समृद्धता से कोई वास्ता नहीं होता! कुछ लोग तो अभाव को अपनी नियति समझकर भी खुश रहते हैं! उनके लिए सरकारी सुविधाएं उनके लिए कोई मायने नहीं रखती! 
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