Sunday, January 8, 2017

ख्वाबों की सौदागरी है रियलिटी शो

- हेमंत पाल 
   एक वक़्त था जब टीवी पर मनोरंजन के लिए ख़बरें, पुराने फिल्में गाने, कॉमेडी शो और सप्ताह में एक फिल्म दिखाई जाती थी। रात को दस बजे टीवी के कार्यक्रम बंद हो जाते थे। लेकिन, आज टीवी चौबीसों घंटे मनोरंजन परोसता है। सीरियल, फिल्मों और फ़िल्मी गानों से ज्यादा टीवी पर देखे जाने वाले कार्यक्रम हैं रियलिटी शो! प्रचारित किया जाता है कि ये वास्तविक होते हैं! कहने को ये रियलिटी हों, पर सबकुछ पटकथा जैसा लगता है और होता भी है। एंकर की मस्ती, जजों की टिप्पणी और प्रतियोगियों के परफॉरमेंस सबकुछ पहले से तय होता है। रियलिटी शो की काल्पनिक दुनिया को दर्शक वास्तविक समझ लेते हैं और उसी में खो जाते हैं। 
    दरअसल, टीवी के परदे के ये रियलिटी शो प्रदर्शन का मंच मुहैया कराने वाला बाजार बन गए हैं। अब तो प्रतियोगियों को डांस और गायन और दूसरे हुनर सिखाने के लिए स्कूल भी खुल रहे हैं। रियलिटी शो में हिस्सा लेने की तैयारियों के बहाने खड़े हो रहे नए बाज़ार का दायरा शहरों से लेकर कस्बों तक फैल गया। बीते दस सालों में देशभर में हजारों स्कूल खुल चुके हैं। जहाँ रियलिटी शो के लिए प्रतियोगी तैयार किए जाते हैं। टीवी आज हर घर में है। युवा अपनी प्रतिभा को बड़े मंचों तक ले जाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें कोई सही राह दिखाने वाला नहीं! इस कारण सिखाने वालों की बाढ़ सी आ गई! वास्तव में तो ये रियलिटी शो ख्वाबों का कारोबार कर रहे हैं। इन कार्यक्रमों के जरिए मिलती लोकप्रियता और धन को भुनाने का खेल महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक चल रहा है। परेशानी सिर्फ इतनी है कि कई बार बच्चों व युवाओं को भ्रम में रखकर सिर्फ धंधा किया जा रहा है।
  बड़ा सवाल यहीं से खड़ा होता है कि क्या रियलिटी शो की तैयारियों के नाम पर सिर्फ कारोबार किया जा सकता है? क्या बच्चों के मासूम ख्वाबों का दोहन करना उचित है? और क्या सिर्फ सिखाकर किसी बच्चे को रियलिटी शो का विनर बनाया जा सकता है? इन सवालों का सीधा जवाब नहीं है। लेकिन, यह मानने वाले कम नहीं है कि तैयारियों के नाम पर न सिर्फ कारोबार हो रहा है बल्कि बच्चों और युवाओं को भरमाया जा रहा है। छोटे शहरों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन उसे सही दिशा नहीं मिल पाती। सिखाने वाले उन्हें दिशा दे सकते हैं, लेकिन हमेशा ऐसा होता नहीं है। कोई भी ट्रेनर कभी बेसुरे गायक से यह नहीं कहता कि तुम अपना वक्त बर्बाद मत करो! नाम  लोकप्रियता की चाह कच्ची उम्र में बच्चों को जीवन की राह से भटका देती हैं। वे सिर्फ और सिर्फ रियलिटी शो का हिस्सा बनने को बेकरार दिखते हैं, और जब उन्हें होश आता है, काफी देर हो चुकी होती है। इसमें उसके परिवार का भी कम दोषी नहीं है। 
  आज कई स्कूल कॉमेडी सिखाते हुए मिल जाएंगे। लेकिन, क्या कॉमेडी जैसी विधा सिखाई जा सकती है? फिर, टेलीविजन पर कॉमेडी के रियलिटी शो में हम जो देखते हैं,वह कई री-टेक के बाद हुई परफारमेंस होती है। डांस और गाने तक तो रियलिटी शो ठीक हैं, पर ऐसे शो के लिए प्रतियोगियों को पूरी तरह तैयार करना संभव नहीं है, जब तक प्रतियोगी में नैसर्गिक प्रतिभा न हो! क्योंकि, जब तक प्रतियोगी खुद सुर में न हो, उसे गाने की विधा नहीं सिखाई जा सकती! पर ये उन बच्चों के परिजनों को भी सोचना चाहिए जो बच्चों के जरिये खुद फैमस होने के सपने देखने लगते हैं, और कच्ची उम्र में ही अपने बच्चे का आत्मविश्वास तोड़ देते हैं!     
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