Tuesday, July 17, 2018

30 लाख नए मतदाता बदलेंगे मध्यप्रदेश के सियासी समीकरण?


- हेमंत पाल 


   देश में इस समय बड़ी संख्या ऐसे मतदाताओं की हैं, जो उम्र के नजरिए से युवा हैं। युवा मतदाताओं के पीछे मान्यता यह कि इन्होंने राजनीति में उनकी भूमिका को नया विस्तार दिया है। ये भेड़चाल नहीं चलते और न नारों और वादों से प्रभावित होते हैं। इन मतदाताओं का अपना एक नजरिया, राजनीतिक सोच, प्रतिबद्धता और दृष्टिकोण होता है। उनकी इसी मान्यता के चलते युवा मतदाताओं में राजनीति की दिशा बदलने का आभास मिलता है। आज का युवा न तो परंपरा का गुलाम है, न पश्चिमी आधुनिकता का! हमारे यहाँ वर्ग, जाति, क्षेत्र और लिंग की तुलना में उम्र का पहलू चुनाव नतीजों पर ज्यादा असर डालता है! इस मामले में हमारा देश यूरोपीय देशों से अलग दिखाई देता है। पश्चिमी देशों में राजनीति जातियों के बजाए पीढ़ियों के संघर्ष के इर्द-गिर्द खड़ी होती है। दुनिया में भारत ही अकेला देश है, जिसका मतदाता इतना युवा है। अब देखना ये है कि मध्यप्रदेश में 30 लाख से ज्यादा नए मतदाता क्या रुख बताते हैं। क्योंकि, ये मतदाता जिधर झुकेंगे, नतीजों पलड़ा भी उधर ही झुकेगा!  
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   ध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की बिसात बिछ चुकी है। मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के दांव-पेंच चले जाने लगे हैं। राजनीतिक पार्टियों का सबसे ज्यादा ध्यान उन युवा मतदाताओं पर है, जिनकी उम्र 18 से 40 के बीच है। इन युवा मतदाताओं का झुकाव ही तय करेगा कि भाजपा की चौथी बार वापसी होगी या कांग्रेस को फिर सत्ता संभालने का मौका मिलेगा! इस सबमें युवाओं की बड़ी भूमिका होगी। इनका जिस पार्टी की तरफ झुकाव होगा, प्रदेश में सरकार उसी पार्टी की बनेगी। क्योंकि, प्रदेश के पांच करोड़ मतदाताओं में से आधी आबादी ऐसे मतदाताओं की है जिनकी उम्र 35 साल से कम है। 30 लाख युवा तो ऐसे हैं, जो इस बार पहली बार वोट डालेंगे। अभी ये भविष्य के गर्भ में है कि इन युवा मतदाताओं का रुख क्या रहेगा! ये किस पार्टी, किस नेता से प्रभावित होंगे, ये सब असमंजस में है! भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के नेता युवा मतदाताओं की ताकत को समझ रहे हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इन्हें भरमाने या रिझाने का प्रयास नहीं किया जा सकता! इस पीढ़ी की सोच परिष्कृत है। लेकिन, फिर भी भाजपा ने इन्हें रिझाने के लिए कोशिशें शुरू कर दी! आने वाले वक़्त में सरकारी नौकरियों में एक लाख नई नियुक्तियों की बात की जा रही है। जबकि, कांग्रेस ने भी इन्हें अपने पाले में लेने के लिए नए वादे किए हैं। 
  नए और युवा मतदाताओं में हर जाति, वर्ग और मजहब के शामिल हैं। इसलिए राजनीतिक पार्टियां चुनाव घोषणा पत्र में घिसे-पिटे वादों को किनारे करके युवा हित वाले ठोस और सार्थक वादों पर विचार कर रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस सहित प्रदेश में लगभग सभी प्रमुख दल घोषणा पत्र का स्वरूप बदलना, युवा जरूरतों के मुताबिक नीति बनाने और उन पर अमल करने की स्पष्ट घोषणा जैसी योजना पर काम कर रहे हैं, ताकि आने वाले विधानसभा चुनाव में वे युवाओं को रिझा सकें। 
  आँकड़ों के नजरिए से देखा जाए तो प्रदेश में मतदाताओं की संख्या 5 करोड़ 7 लाख से ज्यादा है। इनमें 2 करोड़ 24 लाख मतदाता 35 साल से कम उम्र के हैं। ये मतदाताओं की कुल संख्या का 44.10% है। स्वाभाविक है कि ये युवा मतदाता चुनावी वादों और घोषणाओं से प्रभावित नहीं होते! इनकी अपनी सोच और नजरिया है। सोशल मीडिया पर इनकी सशक्त मौजूदगी इन्हें सोच के मामले में इनकी मनःस्थिति को समृद्ध बनाती है। ये अपना सोच सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं करते, इसलिए इन्हें समझ पाना भी आसान नहीं है। ये सच और झूठ का फर्क जानते हैं और इन्हें पता है कि देश किस दिशा में जा रहा है। नोटबंदी से देश को क्या मिला और जीएसटी से बाजार की हालत में क्या बदलाव आया! ये वर्ग विकास दिखाने वाले आंकड़ों से प्रभावित नहीं होता, बल्कि उनका आंकलन करने की क्षमता रखता है। इनके पास तर्कशक्ति है और अपना पक्ष रखने का नजरिया भी! 
  प्रदेश में 18 साल की उम्र वाले मतदाताओं की संख्या 30 लाख 45 हज़ार है जो पहली बार वोट डालेंगे। ये 6.50% मतदाता चुनाव नतीजों को बदलने का माद्दा रखते हैं। ये खेल बिगाड़ने और बनाने की सामर्थ्य रखते हैं। समझा जा रहा है कि जब से इन मतदाताओं ने होश संभाला भाजपा को राज करते देखा है। ऐसी स्थिति में भाजपा को एन्टीइन्कम्बेंसी का खतरा ज्यादा है। क्योंकि, भाजपा नेताओं का अहं, बढ़ता भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और थोथी भाषणबाजी से ये वर्ग परेशान है! ये कांग्रेस को ज्यादा नहीं जानते! दिग्विजय सिंह के कथित कुशासन को इन्होने देखा नहीं, सिर्फ सुना है! ऐसे में इन 30 लाख से ज्यादा मतदाताओं का रुख काफी मायने रखता है। कांग्रेस के सामने बड़ा संकट इन मतदाताओं के सामने अपनी पहचान का है। इसमें शक नहीं कि ये ज्योतिरादित्य सिंधिया को ज्यादा जानते हैं और उनके व्यक्तित्व से प्रभावित भी हैं। कमलनाथ को ये बिलकुल नहीं जानते और न उनसे प्रभावित हैं। इनकी नजर में दिग्विजय सिंह की पहचान वही है, जो भाजपा ने बनाई है। लेकिन, नर्मदा परिक्रमा से इस पहचान में अंतर भी आया! उन्हें नहीं लगता कि दिग्विजय सिंह हिन्दू विरोधी, कुशासक और गलत बयानबाजी करने वाले नेता हैं। कई युवाओं ने सोशल मीडिया पर उन्होंने 6 महीने तक नर्मदा यात्रा को फॉलो भी किया है।
   प्रदेश में इस बार 18 से 40 साल तक के मतदाता ही चुनाव नतीजों को निर्णायक ढंग से प्रभावित करने की स्थिति में हैं। मतदाताओं की ये बड़ी संख्या ही वह भीड़ है, जो शिक्षा की भूख, बेहतर नौकरी की चाहत, महंगाई और सरकारी कर्मचारियों के रिटायरमेंट की उम्र दो साल बढ़ाए जाने से प्रदेश का भाजपा सरकार से नाराज है। मतदान केंद्र पर वोट डालने के लिए लगने वाली लाइन में हर छठा वोटर 18 से 40 साल के बीच का होगा। इन नए वोटरों को रिझाने के लिए राजनीतिक पार्टियों ने भी अपने एजेंडे में बदलाव किए हैं। मध्यप्रदेश में ही एक साल में 13 लाख से ज्यादा मतदाताओं की संख्या बढ़ी है। 8.10 करोड़ की आबादी वाले प्रदेश में 4.99 करोड़ आबादी मतदाता के रूप में दर्ज हैं। इसमें 13.15 लाख नए मतदाता हैं। ख़ास बात ये कि 45 जिलों में दर्ज होने वाले नए मतदाताओं में महिलाओं की संख्या ज्यादा है।
  प्रदेश की भाजपा सरकार ने चुनावी साल में युवा मतदाताओं को भरमाने के लिए फिर एक नया दांव चला है। घोषणा की गई कि आने वाले दिनों में सरकार एक लाख नई भर्तियां करेगी! प्रदेश में नए पदों के सृजन पर कोई रोक नहीं लगाई जाएगी। चौथी बार सरकार बनाने के लिए भाजपा युवाओं को साधने के लिए हर स्तर पर जतन कर रही है। वहीं कांग्रेस पार्टी ने भी इस बार सत्ता पाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी, लेकिन वो युवाओं को रिझाने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे लेकर खड़ा करने में चूक गई! ये कांग्रेस की राजनीतिक मज़बूरी हो सकती है, लेकिन इससे कांग्रेस को फ़ायदा होना तय था। जबकि, भाजपा को भी शायद समझ नहीं आ रहा कि वो ऐसा क्या करे कि युवा मतदाता उसके पाले में खड़े नजर आएं! 15 साल सरकार चलाने के दौरान ऐसे कई अवसर आए जब भाजपा नए मतदाताओं के लिए काम कर सकती थी! लेकिन, ऐसा नहीं हुआ! रिटायरमेंट की उम्र दो साल बढ़ाने का फैसला युवाओं को रास नहीं आ रहा! ये भाजपा को चुनाव में नुकसान दे सकता है। 
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