Tuesday, May 14, 2019

मालवा-निमाड़ से अप्रत्याशित नतीजों का इंतजार कीजिए!


  जब पूरे देश में चुनाव की गर्मी ठंडी हो गई, तो मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ में मौसम और चुनाव की गर्मी एक साथ जोश पर है। यहाँ की 8 लोकसभा सीटों पर अंतिम हफ्ते में दोनों पार्टियों के सारे राजनीतिक दिग्गज भी जोर लगाएंगे! भाजपा उम्मीदवारों के लिए नरेंद्र मोदी ने खंडवा और इंदौर में सभाएं ले ली! जबकि, कांग्रेस के लिए राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी दोनों प्रचार कर गए! लेकिन, अभी भी आठों में से ज्यादातर सीटों के नतीजों पर सवालिया निशान लगे है! क्योंकि, दोनों पार्टियाँ सेबोटेज के संभावित खतरे से भयभीत है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया था! बाद में झाबुआ-रतलाम सीट कांग्रेस ने उपचुनाव में जीती थी! लेकिन, अब भाजपा के लिए 8 में से 7 सीट जीतना आसान नहीं लगता! कांग्रेस भी सेबोटेज के खतरे से मुक्त नहीं है! मालवा-निमाड़ में जिस तरह के हालात हैं, अप्रत्याशित नतीजों से इंकार नहीं किया जा सकता!        
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- हेमंत पाल

 श्चिम मध्यप्रदेश के दो इलाके मालवा और निमाड़ की राजनीति की अपनी अलग ही कहानी है! इस इलाके की ज्यादा से ज्यादा सीटों पर झंडा फहराना भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए नाक का सवाल है। पिछले लोकसभा (2014) में तो भाजपा ने अपना जादू दिखा दिया था! मोदी लहर में सभी 8 सीटों पर कमल खिला! लेकिन, बाद में हुए उपचुनाव में आदिवासी सीट झाबुआ-रतलाम भाजपा के हाथ से निकल गई! लेकिन, इस बार कहीं कोई आँधी, तूफ़ान या लहर दिखाई नहीं दी! इस नजरिए से देखा जाए तो सभी सीटों पर अभी तक चुनाव की असली गर्मी नदारद है! इंदौर और उज्जैन जैसे बड़े शहरों में अभी तक धुआंधार जनसंपर्क तक दिखाई नहीं दिया! इसके दो कारण हैं। एक तो मौसम की गर्मी और दूसरा नापसंद उम्मीदवार के प्रति कार्यकर्ताओं की मायूसी! भाजपा ने 8 में से 6 नए चेहरे मैदान में उतारे हैं। जबकि, कांग्रेस ने झाबुआ में कांतिलाल भूरिया को तो फिर से टिकट दिया, पर 2-3 सीटों पर अप्रत्याशित चेहरों को टिकट देकर सेबोटेज का खतरा झेल लिया! दरअसल, कांग्रेस में सेबोटेज का खतरा इसलिए कम है कि पिछला चुनाव वो हर सीट पर हारी थी! खंडवा, खरगोन, देवास, उज्जैन, धार, मंदसौर और इंदौर में भाजपा का डंका बजा था!
  मालवा-निमाड़ क्षेत्र की 8 में से 5 सीटों पर भाजपा ने पिछला चुनाव जीते उम्मीदवारों को बदल दिया और एक सीट (देवास-शाजापुर) पर जीते मनोहर ऊंटवाल के विधायक बन जाने पर उनकी जगह महेंद्रसिंह सोलंकी को टिकट दिया! भाजपा को यही फैसला भारी पड़ रहा है। सरकारी नौकरी से इस्तीफ़ा देकर राजनीति में आए सोलंकी को देवास-शाजापुर के कार्यकर्ता पचा नहीं पा रहे। यही कारण है कि इस सीट को बचाने के लिए भाजपा परेशान है। पार्टी पदाधिकारियों की बैठक में उनके प्रति नाराजी की ख़बरें हैं। यहाँ टिकट के दावेदारों के अलावा स्थानीय नेता भी अपना असंतोष जाहिर करने से नहीं बच रहे! उनके सामने कांग्रेस ने कबीर के भजनों के लोकगायक प्रहलाद टिपानिया को उतारा है। टिपानिया की लोकप्रियता का कांग्रेस को फ़ायदा मिल रहा है। उनका पार्टी में कोई विरोध भी नहीं है! मतलब ये कि सेबोटेज का खतरा कांग्रेस में नहीं है! उज्जैन में भाजपा ने निवर्तमान सांसद चिंतामण मालवीय  हटाकर तराना से विधानसभा चुनाव हारे अनिल फिरोदिया को दांव पर लगाया, जो स्थानीय नेताओं की नाराजी की वजह बन गया! ऐसी स्थिति में काम का प्रदर्शन तो सब कर रहे हैं, पर वो संदेश मतदाताओं तक पहुंचेगा या नहीं, कहा नहीं जा सकता! कुछ ऐसे ही हालात कांग्रेस में भी लग रहे हैं! उम्मीद के विपरीत बाबूलाल मालवीय कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के गले नहीं उतर रहे! दोनों पार्टियों में खदबदाती नाराजी से किसे फ़ायदा होगा, ये कहना अभी मुश्किल है!
   भाजपा ने अपनी पहली लिस्ट में ही मंदसौर और खंडवा के निवर्तमान सांसदों सुधीर गुप्ता और नंदकुमार चौहान को टिकट देने का एलान कर दिया था! जबकि, इन दोनों के प्रति उनके इलाकों में पहले से ही असंतोष था! उनकी फिर उम्मीदवारी से पार्टी के कई नेता नाखुश हुए। वे प्रचार करने दिखावे के लिए घर से निकले, पर दिल से नहीं! इन दोनों सीटों पर ही भाजपा को कार्यकर्ताओं का असंतोष मुश्किल में डाल सकता है! कांग्रेस ने भी मंदसौर में मीनाक्षी नटराजन पर फिर भरोसा जताकर लगता है गलती की! ये फैसला स्थानीय कांग्रेसी नेताओं के गले नहीं उतर रहा! यहाँ कांग्रेस भी सेबोटेज से मुक्त नहीं है! उधर, खंडवा सीट से दोनों पार्टियों के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष आमने-सामने हैं। नंदकुमार चौहान को टिकट देना भाजपा के जरुरी था, पर यहाँ के नेता इससे खुश नहीं लगे! स्थानीय स्तर पर पार्टी का एक दमदार चिटनिस गुट निष्क्रिय दिख रहा है! उनके मुकाबले में खड़े अरुण यादव को भाजपा के इसी सेबोटेज से जीत का भरोसा है। कांग्रेस को निर्दलीय विधायक शेरा भैया का रवैया ठीक नहीं लग रहा! उन्होंने अपनी पत्नी को तो मुकाबले से हटा लिया, लेकिन भाजपा से उनकी नजदीकी कांग्रेस के लिए है।       
  खरगोन और धार आदिवासी सीटें हैं और दोनों जगह भाजपा ने उम्मीदवार बदल दिए! खरगोन में देवेंद्र पटेल और धार में छतरसिंह दरबार को उम्मीदवारी दी! खरगोन में तो ज्यादा नाराजी दिखाई नहीं दे रही, पर धार में माहौल कुछ ज्यादा ही गरम है! यहाँ भाजपा की गुटबाजी का आलम शिखर पर है। ऐसे में छतरसिंह की हार-जीत सेबोटेज ही तय करेगी। उधर, धार में कांग्रेस की स्थिति भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती! यहाँ तीन बार सांसद रहे गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी को टिकट मिलने के दावे किए जा रहे थे, पर गुटबाजी ने उनका पत्ता काट दिया! कांग्रेस ने दिनेश गिरेवाल को उम्मीदवार बनाया जो किसी के गले नहीं उतर रहा! दोनों तरफ असंतोष की आग बराबर लगी है! जिस पार्टी में कम सेबोटेज हुआ, उसकी जीत होगी! रतलाम-झाबुआ सीट पर कांग्रेस ने अपने चिरपरिचित उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया को फिर से मौका दिया है। जबकि, भाजपा ने एक रिटायर्ड अफसर गुमानसिंह डामोर जो झाबुआ विधायक भी हैं, उनको सामने उतारा है। वे झाबुआ के नहीं हैं, इसलिए स्थानीय नेता नाखुश हैं। कांग्रेस के सामने गुटबाजी जैसा कोई माहौल नहीं है। भाजपा में नाराजी का सबसे बड़ा कारण डामोर का बढ़ता कद है, जो सेबोटेज की वजह बन सकता है।
  इन सारे हालातों को देखकर मालवा-निमाड़ में भाजपा और कांग्रेस में से कोई भी जीत का दावा नहीं कर रहा! यही कारण है कि 23 मई के नतीजों को लेकर सबकी साँसे थमी हैं। कहा नहीं जा सकता कि चुनाव नतीजों का ऊंट किस करवट लुढ़क जाए! इसका कारण ये भी माना जा सकता है कि 2014 में भाजपा अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर चुकी है। सभी 8 सीटें भाजपा की झोली में गई थी! इससे अच्छे नतीजों की उम्मीद नहीं की जा सकती और न उन नतीजों की पुनरावृत्ति संभव है।
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