Sunday, May 19, 2019

कांटाजोड़ मुकाबले में फँसी भाजपा की साख!


धार लोकसभा सीट



 - हेमंत पाल

    इस आदिवासी सीट पर पिछले चुनाव में मोदी लहर का ख़ासा असर था। लेकिन, इस बार माहौल बदला हुआ है। विधानसभा चुनाव में जिले की 7 में से 6 सीटों पर कांग्रेस ने जीत का झंडा लहराया! यही कारण है कि भाजपा के सामने लोकसभा चुनाव कठिन चुनौती है। इस सीट पर आदिवासी वोट बाजी पलटने की स्थिति में हैं। क्योंकि, 8 में से 6 सीटें आदिवासी बहुल है। अलग-अलग इलाकों में यहाँ के सामाजिक समीकरण भी बदले हुए हैं। बदनावर इलाके में पाटीदार वोटर ज्यादा हैं, तो कुक्षी में आदिवासियों के अलावा जैन वोट नतीजे प्रभावित करने की स्थिति में हैं। ब्राह्मण, राजपूत और मुस्लिम वोटों का भी कुछ इलाकों में प्रभाव है।
  प्रदेश की आदिवासी बहुल वाली आरक्षित ये लोकसभा सीट लम्बे समय तक हिन्दू महासभा की सीट रही है! यही कारण है कि शुरूआती चुनाव में यहाँ से जनसंघ को जीत मिली। लेकिन, चुनावी समीकरणों के हिसाब से यहाँ कांग्रेस का कब्ज़ा ज्यादा समय तक रहा! इसलिए कांग्रेस के मुकाबले यहाँ भाजपा को थोड़ा कमजोर आंका जा रहा है। धार शहर ने भाजपा को कुशाभाई ठाकरे, कालूराम विरुलकर और विक्रम वर्मा जैसे नेता दिए जिन्होंने भाजपा को अपने शुरुआती काल में संवारा था। प्रदेश में जब भी भाजपा की सरकार रही, धार से किसी न किसी नेता को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व मिलता रहा! पिछले तीन चुनाव के नतीजों को देखें, तो यहां की जनता ने किसी एक पार्टी को लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार नहीं चुना! आदिवासी समुदाय पर कांग्रेस का काफी प्रभाव रहा है। 
   2014 के पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के दौरान भाजपा की सावित्री ठाकुर ने कांग्रेस के उमंग सिंघार को हराया था। वास्तव में पिछला चुनाव ऐसा था, जिसमें मोदी-लहर पर सवार होकर कई अपरिचित नेताओं ने चुनाव की वैतरणी पार कर ली थी। लेकिन, इस बार भाजपा की स्थिति उतनी सुखद और एकतरफा नहीं है। नरेंद्र मोदी के 5 साल के कार्यकाल में बहुत कुछ ऐसा घटा, जिसका जवाब इस बार भाजपा के उम्मीदवारों को देना पड़ रहा है। इस बार भाजपा ने छतरसिंह दरबार को और कांग्रेस ने दिनेश गिरेवाल को मैदान में उतारा है। आश्चर्य की बात ये कि दोनों ही पार्टियों ने जनभावनाओं की अनदेखी की। कांग्रेस के तीन बार के सांसद गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी की उम्मीदवारी करीब-करीब तय माना जा रहा था। लेकिन, पार्टी की आपसी गुटबाजी के कारण बेहद कमजोर उम्मीदवार दिनेश गिरेवाल को टिकट मिल गया! यही स्थिति भाजपा में भी रही, जब छतरसिंह दरबार को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया।      इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा! संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले 2 लाख से ज्यादा वोट मिले हैं। भाजपा के कमजोर दिखाई देने का एक बड़ा कारण ये भी है कि छतरसिंह दरबार को स्थानीय भाजपा के सभी गुटों का समर्थन नहीं है! इसलिए उनका पलड़ा हल्का नजर आ रहा है। जबकि, पार्टी हित में कांग्रेस के सभी धड़े एक हो गए! जिला कांग्रेस अध्यक्ष बालमुकुंद गौतम का कहना है कि धार जिले में कांग्रेस के नेताओं में कोई मतभेद नहीं है! व्यक्तिगत रूप से भले कुछ लोगों में वैचारिक मतभेद हों, पर पार्टी के लिए सभी एक हैं! जो प्रदर्शन हमने विधानसभा चुनाव में किया, उससे बेहतर नतीजा हम लोकसभा चुनाव में देंगे। इस लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की 8 सीटें आती हैं। सरदारपुर, मनावर, बदनावर, गंधवानी, धरमपुरी, महू (अंबेडकर नगर), कुक्षी और धार। 8 विधानसभा सीटों में से 6 पर कांग्रेस और 2 पर भाजपा का कब्जा है। 
  धार लोकसभा क्षेत्र का पहला चुनाव 1967 में हुआ था, तब यहाँ से जनसंघ के भारतसिंह चौहान चुनाव जीते थे। वे यहाँ से तीन बार लोकसभा चुनाव जीते। दो बार जनसंघ से और 1977 में भारतीय लोकदल से। लेकिन, 1980 में यहाँ पहली बार कांग्रेस के फतेहभानु सिंह ने चुनाव जीता। इसके बाद लगातार 3 लोकसभा चुनाव यहां पर कांग्रेस का कब्जा रहा! 1984 में प्रतापसिंह बघेल जीते तो सूरजभान सिंह 1989 और 1991 का चुनाव जीते! 1996 में धार लोकसभा से भाजपा के छतरसिंह ने कांग्रेस के सुरजभानु सोलंकी को हराया, जो शिवभानु सोलंकी के बेटे हैं। 1996 के चुनाव में जीत हांसिल करने वाली भाजपा को 1998 में हार का मुँह देखना पड़ा और कांग्रेस के गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी यहां के सांसद चुने गए। सालभर बाद 1999 में  हुए लोकसभा चुनाव में फिर कांग्रेस के राजूखेड़ी को जीत मिली। हारने के बाद भाजपा ने एक बार फिर इस सीट पर जीत हांसिल की। 2009 में कांग्रेस के गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी ने एक बार फिर इस सीट पर वापसी की और भाजपा के मुकाम सिंह को मात दी।  
  धार जिले की आबादी 25,47,730 है और 78.63% आबादी ग्रामीण इलाके में रहती है। 21.37% आबादी शहरी क्षेत्र में जो भाजपा प्रभाव में है। धार आदिवासी क्षेत्र में आता है और यहाँ 51.42% आबादी आदिवासी है। 7.66% आबादी अनुसूचित जाति की है। 2014 के चुनाव में यहां पर 16,68,441 मतदाता थे! जिनकी संख्या अब बढ़ गई है। आदिवासी इलाकों में आज भी कांग्रेस की जड़ें गहरी है! प्रदेश में कमलनाथ की सरकार बनने और किसानों की कर्जमाफी के बाद स्थिति में बदलाव आया है। कांग्रेस की 'न्याय' योजना भी अपना असर दिखा सकती है। इस कारण यहाँ कांग्रेस दमदार नजर आ रही है! अब देखना है कि धार में विधानसभा चुनाव वाले नतीजे दोहराए जाते हैं या कुछ बदलाव आता है!   
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