इंदौर लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ रही है। लेकिन, भाजपा ने इस बार यहाँ से सुमित्रा महाजन 'ताई' का टिकट 75 साल पार होने के फार्मूले के तहत काट दिया। इसलिए यहाँ से नए उम्मीदवार शंकर लालवानी को उम्मीदवार बनाया गया है। ऐसे 'ताई' का दायित्व बनता है कि वे भाजपा उम्मीदवार के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करें। हालांकि, 'ताई' ने ये जरूर कहा कि मैं शंकर के पीछे खड़ी हूं! लेकिन, उनकी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा! यह बात भी सामने आ रही है कि सुमित्रा महाजन खुद नहीं चाहती कि उनकी राजनीतिक विरासत पर कोई आसानी से कब्ज़ा जमा ले। ऐसे में भाजपा के लिए अपना गढ़ बचाना आसान नहीं है। उधर, कांग्रेस में इस बार कुछ ज्यादा ही उत्साह नजर आ रहा है। क्योंकि, संसदीय क्षेत्र की 8 में से 4 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं। इसके अलावा तीन मंत्री सज्जन वर्मा, तुलसी सिलावट और जीतू पटवारी भी दम लगा रहे हैं। क्योंकि, ये उनकी प्रतिष्ठा का मामला है। ऐसे में कहा नहीं जा सकता कि मतदाता किसे चुनता है और क्यों?
000
- हेमंत पाल
भाजपा ने इंदौर लोकसभा सीट से सिंधी उम्मीदवार शंकर लालवानी को टिकट दिया है। जबकि, कांग्रेस ने जैन समाज से जुड़े गुजराती पंकज संघवी को उनके सामने मैदान में उतारा! लेकिन, शंकर लालवानी का नाम घोषित होने पर पार्टी में ख़ुशी जाहिर करने वाले कम दिखे। उनकी उम्मीदवारी को पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की पसंद बताया जाता है। ये भी दावा किया जा रहा है कि लालवानी भाजपा की और से देश के अकेले सिंधी उम्मीदवार है। शायद पार्टी ने उन्हें सिंधी समाज को संतुष्ट करने के लिए मैदान में उतारा है। लालकृष्ण आडवानी का टिकट काटे जाने के बाद पार्टी के पास किसी सिंधी नेता को टिकट देने का दबाव था, जिसे इंदौर में देकर पूरा किया गया। आडवानी को टिकट नहीं दिए जाने से सिंधी समाज नाराज था और इंदौर के सिंधी समाज ने अपना विरोध भी दर्ज कराया था।
जब भाजपा ने सुमित्रा महाजन को टिकट न देकर इस सीट लटकाए रखा तो कांग्रेस को लगा कि भाजपा सुमित्रा महाजन की जगह इंदौर से किसी बड़े नाम को मैदान में उतार सकती है! लेकिन, जब शंकर लालवानी का नाम सामने आया तो कांग्रेस ने भी पंकज संघवी का नाम फायनल करने में देर नहीं की! पंकज संघवी इंदौर से पहले लोकसभा, विधानसभा और महापौर का चुनाव हार चुके हैं। लेकिन, फिलहाल के राजनीतिक समीकरणों में वे ताकतवर नजर आ रहे हैं।
इंदौर लोकसभा सीट कई राजनीतिक कारणों से बेहद खास है। 16वीं लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन इंदौर की लोकसभा सीट से ही चुनकर आई थी। शहर की जनता को 'ताई' से बेहद लगाव है। यही कारण है कि यहां के मतदाताओं ने उन्हें 8 बार सांसद बनाया! 1989 में वे यहां से पहली बार चुनाव लडी और फिर ये सीट उन्हीं की हो गई। 1989 से लगातार वो यहां से सांसद रहीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल को करीब साढ़े 4 लाख से ज्यादा वोटों से हराया था! जीत का ये अंतर देश में दस प्रमुख जीत में से एक था।
1957 में यहाँ पहली बार लोकसभा का चुनाव हुआ था, जिसमें कांग्रेस के कन्हैयालाल खादीवाला को जीत मिली थी। 1962 में मजदूर नेता होमी दाजी 6293 मतों से जीते थे। आपातकाल के बाद 1977 में इस सीट से कल्याण जैन को जीत हांसिल हुई। इसके बाद दो बार कांग्रेस यहाँ से जीती। लेकिन, जब 1989 में यहाँ से भाजपा ने सुमित्रा महाजन को मौका दिया, तो ये सीट उनकी हो गई! 1989 में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी को हराया था। जबकि, इससे पहले 'ताई' विधानसभा चुनाव हार चुकी थीं। इससे पहले वे 1982 में इंदौर नगर निगम की पार्षद रह चुकीं थीं। इंदौर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं। इंदौर के क्षेत्र क्रमांक 1 से 5, राऊ, सांवेर और देपालपुर! फिलहाल यहाँ की 8 में 4 सीटें कांग्रेस और 4 भाजपा के पास है। यानी टक्कर बराबरी की है।
इंदौर से 1989 के बाद पहली बार कांग्रेस को यहाँ से जीत की उम्मीद में नजर आ रही है। क्योंकि, भाजपा के टिकट की घोषणा के साथ ही इस लोकसभा क्षेत्र में समीकरण बदल गए। सुमित्रा महाजन के चुनाव मैदान से बाहर होने के बाद कई दावेदारियां सामने आई! लेकिन, जब अपेक्षाकृत कमजोर नेता शंकर लालवानी को टिकट दिया गया, तो भाजपा में खींचतान नजर आने लगी! अभी जो नेता प्रचार अभियान से जुड़े हैं, वे दिल से सक्रिय नहीं हैं। जबकि, कांग्रेस में ये माहौल नजर नहीं आ रहा! इसका कारण ये भी है कि कांग्रेस में दावेदार कम थे और जो थे उन्हें भी टिकट न मिलने का मलाल भी नहीं है।
2011 की जनगणना के मुताबिक इंदौर की जनसंख्या 34,76,667 है. यहां की ज्यादातर आबादी शहरी क्षेत्र में रहती ही. इंदौर की 82.21 फीसदी आबादी शहरी और 17.79 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है. यहां की 16.75% आबादी अनुसूचित जाति की है, जबकि 4.21% अनुसूचित जनजाति के लोगों की। यहां इस बार 24 लाख से ज्यादा मतदाता हैं।
चुनावी समीकरणों को देखा जाए तो शंकर लालवानी ने पार्षद, नगर निगम की कई समितियों और इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) के दो बार अध्यक्ष रहते हुए भी अपनी कोई टीम नहीं बनाई! पार्टी कार्यकर्ताओं से भी उनके रिश्ते इतने मधुर नहीं रहे कि चुनाव जिताने के लिए सब जुट जाएं! यहाँ तक कि टिकट मिलने के बाद भी उन्होंने शहर के पार्टी क्षत्रपों को जोड़ने की कोशिश नहीं की! यही कारण है कि उनके आसपास जो भी लोग नजर आ रहे हैं, वो मुँह दिखाई कि रस्म ही ज्यादा निभा रहे हैं। जमीनी राजनीति से लालवानी का वैसे भी दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा! ऐसी स्थिति में इंदौर लोकसभा के लिए उन्हें गांवों से बढ़त मिलना मुश्किल है। इसलिए भी कि लोकसभा क्षेत्र के दो विधानसभा क्षेत्र सांवेर और देपालपुर ग्रामीण हैं और दोनों ही सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं। भाजपा में संभावित सेबोटेज की चर्चा इतनी ज्यादा है कि पार्टी के संगठन मंत्री रामलाल को 23 मई तक के लिए इंदौर में डेरा डालना पड़ा! यानी भाजपा में सबकुछ उतना सामान्य नहीं है, जितना दिखाने की कोशिश की जा रही है!
------------------------------ -------------------------
No comments:
Post a Comment