मध्यप्रदेश के नए चीफ सेक्रेटरी : बसंत प्रताप सिंह
- हेमंत पाल
सलमान खान ने 'दबंग' में काम करके अपने नाम के आगे फ़िल्मी दबंग होने का तमगा भले लगा लिया हो! पर, नौकरशाही में असली दबंग बसंत प्रताप सिंह को ही माना जाता है। प्रदेश के अगले मुख्य सचिव नियुक्त किए गए श्री सिंह प्रदेश उन चंद नौकरशाहों में गिने जाते हैं, जिनकी दबंगता उनकी प्रशासनिक कार्यशैली में नजर आती है। इस महत्वपूर्ण पद के लिए उनका चुना जाना ही, उनकी सबसे बड़ी योग्यता है।
उन्हें नौकरशाही और सरकार के बीच सामंजस्य बैठाने के लिए जाना जाता है। शायद इसी कार्यक्षमता के कारण उन्हें ये सबसे बड़ा ओहदा मिला है। वे सरकार की अपेक्षाओं पर पूरी तरह खरे उतरे, इसीलिए 1984 बैच के इस नौकरशाह का नाम तेजी से उभरकर सामने आया और नियुक्ति तक पहुंच! अब तक वे अपने हर कार्यकाल में श्रेष्ठ परफार्मेंस देते आए हैं। गृह विभाग में अपने कार्यकाल दौरान उन्होंने कई बड़े और सही फैसले लिए! श्री सिंह के बारे में कहा जाता है कि वे अपने मातहत हर छोटे, बड़े अधिकारी से एक जैसा व्यवहार रखने के लिए जाने जाते हैं। सहजता, सौम्यता, ईमानदारी के साथ उनकी दबंगता के उनके कई किस्से मशहूर है। एक घटना जो माधवराव सिंधिया से जुडी है, सभी पुराने अधिकारियों को याद है! बताते हैं कि बसंत प्रताप सिंह को जब ग्वालियर में कलेक्टर पदस्थ किया तो वे सौजन्य भेंट के लिए सिंधिया मिलने पहुंचे! मिलने का समय तय था! लेकिन, अफसरों से मिलने का 'महाराज' का अपना अंदाज था। श्री सिंह तो समय पर 'महल' पहुँच गए, पर 'महाराज' बहुत देर तक नहीं आए! कुछ देर इंतजार करने के बाद बसंत प्रताप सिंह को वहां रुकना नागवार गुजरा तो वे लौट गए! इसे सिंधिया ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया और श्री सिंह को ग्वालियर से हटना पड़ा!
इंदौर में कमिश्नर के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान बसंत प्रताप सिंह ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए! ऐसा ही एक निर्णय सहकारी गृह निर्माण संस्थाओं और भू-माफियाओं के बीच गठजोड़ उजागर करने वाला रहा! उनकी पहल पर ही कई सहकारी संस्थाओं के रिकॉर्ड खंगाले गए। इसी से सामने आया कि किस तरह सहकारी संस्थाओं ने कॉलोनियों की जमीन उनके सही धारकों बजाए जमीन के घोटालेबाजों को बेच दी! इस गठजोड़ ने कई संस्थाओं की असलियत सामने ला दी! इस मामले में आज भी कार्रवाई चल रही है। बसंत प्रताप सिंह की ही पहल से कई सही लोगों को भूखंड मिल सके हैं।
एक रिटायर्ड अधिकारी ने बताया कि बसंत प्रताप सिंह कभी किसी नेता के प्रभाव में आए हों, ऐसा कभी देखने में नहीं आया! यदि किसी नेता ने सही काम के लिए पहल की है, तो उसे टालते भी नहीं! लेकिन, दबाव में आकर काम करना बसंत प्रताप सिंह के स्वभाव में कभी नहीं रहा। राजनीति से जुड़े जो लोग श्री सिंह के इस स्वभाव और कार्यशैली से परिचित हैं, उनके काफी आत्मीय संबंध रहे हैं! जहाँ तक प्रशासनिक क्षमता की बात है, तो इसमें उनका कोई सानी नहीं! कई विपरीत परिस्थितियों में श्री सिंह ने अपनी जबरदस्त प्रशासनिक क्षमता दिखाई है। उनकी त्वरित निर्णय लेने की क्षमता का कई पुराने अधिकारियों ने उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि यदि कोई मामला सही और स्पष्ट है, तो वे उसे कभी टालने या दोबारा विचार करने में समय नहीं गंवाते!
श्री सिंह के साथ अभी तक जिसने भी काम किया है, उनमें से अधिकांश अधिकारी इस बात के लिए भी उनकी प्रशंसा करते हैं कि बसंत प्रताप सिंह में जबरदस्त टीम-स्प्रीट भावना है। हमेशा ही उनकी कार्यशैली चलने की नहीं, दौड़ने और दौड़ाने की है। वे बहुत जल्द अपने सहयोगियों की कार्य क्षमता परख लेते हैं और उसी के अनुरूप उन्हें काम सौंपते हैं। लेकिन, काम में लापरवाही और कामचोरी वे पसंद नहीं करते! वे चमचागिरी बी पसंद करते! यही कारण है कि उनके साथ वही अधिकारी और कर्मचारी काम सके हैं, जो उनकी तरह तत्पर, सजग और ईमानदार होते हैं!
उत्तरप्रदेश की ग्रामीण ठाकुर पारिवारिक पृष्ठभूमि से सिविल सेवा में आए बसंत प्रताप सिंह पूरी तरह जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं। उनकी पहचान खांटी ईमानदार अधिकारी के रूप में होती रही है। उनके पुराने सहयोगी बताते हैं कि वे प्रशासनिक रूप से सख्त होने के साथ कवि ह्रदय भी हैं। भाषा पर भी उनका बेहतरीन अधिकार है, जो उनके भाषण सुनने से ही पता चलता है। बसंत प्रताप सिंह कहते हैं कि मेरा गांव मेरे अंदर बसता है। इसलिए कि उनका बचपन गाँव में ही बीता। वे गाँव से आए हैं, इसलिए उनका गाँव के बारे में अलग ही सोच है। वे कहते हैं कि खाली वक़्त में मैं गाँव के विकास के बारे में सोचता हूं। प्रदेश सरकार की ग्रामीणों से संबंधित जितनी भी योजनाएं हैं, उनको क्रियान्वित करना मेरी प्राथमिकता होगी।
-----------------------------------------------------------------