Friday, October 28, 2016

सरकार के सामने अब बिके सपनों को सच करने की चुनौती


हेमंत पाल 

इंदौर में 'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' हो गई! दो दिन तक मध्यप्रदेश सरकार इन्वेस्टर्स के सामने पलक-पांवड़े बिछाए रही। लकदक इंतजामों के बीच देश और दुनिया के चार हज़ार से ज्यादा आमंत्रितों ने इसमें भाग लिया। 42 देशों के प्रतिनिधियों ने दो दिन तक मध्यप्रदेश सरकार की मेजबानी का लुत्फ़ उठाया। सभी ने सरकार की घोषणाओं को सुना, गुना और समझा! उद्योगपतियों ने भी अपने भविष्य के सपनों और सरकार की योजनाओं में सामंजस्य बैठाने की कोशिश की! मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने राजनीतिक क्षमता को किनारे करके अपना सेल्समैनशिप वाला हुनर जमकर दिखाया। कुछ उद्योगपतियों ने नए निवेश की पहल भी की! लेकिन, वास्तव में इस समिट से प्रदेश को क्या हांसिल हुआ, ये सच अभी सामने आना बाकी है। वादे तो खूब किए गए, लेकिन उन वादों को अभी धरातल पर उतारना है! सरकार को अपनी क्षमताओं और वादों की सच्चाई साबित करना है और उद्योगपतियों को अपने इन्वेस्टमेंट की! मुख्यमंत्री के सामने उससे भी बड़ी चुनौती नौकरशाहों को उन सपनों को पूरा करने के लिए तैयार करना है, जो इन्वेस्टर्स को सरकार ने इन दो दिनों में दिखाए हैं। आखिर सरकार ने इन्वेस्टर्स को सुविधाओं के जो सपने बेचे हैं, उन्हें सच करने की चुनौती भी तो सरकार ही ही है! 
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   मध्यप्रदेश सरकार की क्षमताओं और सुविधाओं की इससे अच्छी मार्केटिंग शायद नहीं हो सकती थी, जो मुख्यमंत्री ने 'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' के दो दिनों में की! मेजबानी में कोई कमी नहीं थी। उद्योगपतियों को हाथों-हाथ लिया गया। इस पूरे इवेंट में कहीं सरकार नजर नहीं आ रही थी! सबकुछ ऐसा था, जो इवेंट कंपनियां करती है। मुख्यमंत्री तो किसी इवेंट कंपनी के सीईओ के रोल में थे! उद्योगों के लिए प्रदेश में जुटाई गई सुविधाओं को किसी प्रोडक्ट की तरह परोसा गया! यही स्थिति उनकी मेजबानी में भी दिखाई दी! सबकुछ पांच सितारा था। अपने स्वागत भाषण में ही मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कर दिया था कि वे दो दिन यहीं हैं, पूरे 24 घंटे! कोई भी इन्वेस्टर कभी भी मुझसे मिल सकता है। जब मुख्यमंत्री का नजरिया ये रहा, तो नौकरशाह भी अपनी अफसरी किनारे रखकर इन्वेस्टर्स के सामने नत मस्तक रहे! मेहमान इन्वेस्टर्स की सुविधाओं के अलावा उनकी प्लानिंग को भी तवज्जो दी गई! लेकिन, समिट के बाद सरकार और उनके नौकरशाहों का रवैया कैसा रहता है, असल मुद्दे की बात ये है! क्योंकि, पिछले अनुभव बताते हैं कि इन्वेस्टर्स के लिए खिड़की के बजाए दरवाजे खोलने की बात करने वाली सरकार बाद में रोशनदान तक बंद कर देती है। जो नौकरशाह समिट के दौरान उद्योगपतियों के सामने बिछे जा रहे थे, वो उनसे मिलने तक को तैयार नहीं होते!      
   इन्वेस्टर्स के सामने सरकार ने प्रदेश की जो छवि परोसी है, निश्चित ही वो अतिश्योक्ति तो है! कुछ बातें बढा-चढ़ाकर दिखाई गई! बात चाहे बिजली की उपलब्धता की हो या भरपूर पानी की, दोनों का सच किसी से छुपा नहीं है! खपत से ज्यादा बिजली उत्पादन का मुख्यमंत्री का दावा प्रदेश के लोगों के गले नहीं उतरता! यदि वास्तव में प्रदेश में इतनी बिजली होती तो गाँव में आज भी घन्टों बिजली गायब नहीं रहती! किसानों को खेतों को पानी देने के लिए रातभर जागना नहीं पड़ता! शहरों में बिजली की कटौती नहीं होती! यही स्थिति पानी को लेकर भी है! पानी को लेकर पीथमपुर के उद्योगों को 4 महीने तक किस तरह जूझना पड़ता है, ये वहां के उद्योगपतियों को भी पता है। इसलिए नए इन्वेस्टर्स इस सबसे अनजान होंगे, ये नहीं समझा जा सकता! जहाँ तक जमीन की उपलब्धता की बात है, इस प्रक्रिया को जितना आसान बताया गया, वैसा होगा नहीं! आज हर इन्वेस्टर्स को इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर के नजदीक जमीन चाहिए! क्योंकि, महानगरीय सुविधाओं को वे जानते हैं। इसमें भी उद्योगपतियों पहली पसंद इंदौर है! लेकिन, इंदौर के आसपास उन्हीं उद्योगपतियों को जमीन मिलती है, जो सरकार पर प्रभाव डालने में कामयाब हो जाते हैं। एकेवीएन के पास पीथमपुर में करीब 1200 एकड़ जमीन है। माचल, महू के पास खंडवा, उज्जैनी में 150-150 एकड़ के साथ ही धामनोद व धार के हातोद में 1200-1200 एकड़ जमीन है। लेकिन, ये उन्हीं को मिलेगी जिनके पास कोई बड़ा राजनीतिक प्रभाव होगा।  
   ज्यादा जमीन लेने के मामले में बाबा रामदेव इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, जिनके 'पतंजलि' प्रोजेक्ट को जमीन देने के लिए सरकार बिछी-बिछी सी दिखी! रामदेव ने अपने भाषण में सरकार को एक तरह से धमका ही दिया! 'हमें सरकार ने 45 एकड़ जमीन दी है, इतने में तो हम कबड्डी खेलते हैं!' बाबा रामदेव की इस बात के अपने इशारे थे। 'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' के मंच से रामदेव ने यह बोलकर सुर्खियां बटोर ली। इसके बाद असर ये हुआ कि सरकार 'पतंजलि' को ज्यादा जमीन देने को तैयार हो गई!   रामदेव पीथमपुर में फूड प्रोसेसिंग यूनिट और आयुर्वेदिक दवा का प्लांट लगाना चाहते हैं। बाबा और उनके सहयोगी बालकृष्ण आवंटित जमीन देख भी चुके हैं। एकेवीएन ने तो जमीन खोजने का काम भी शुरू कर दिया। सवाल उठता है कि क्या ऐसा रवैया क्या सरकार सभी इन्वेस्टर्स के साथ रख सकेगी? 
  सरकार का ये इवेंट इस मायने में तो काफी हद तक सफल रहा कि इन्वेस्टर्स को मध्यप्रदेश में काफी संभावनाएं दिखाई दी! बिजली, पानी को लेकर सरकार के दावों में कुछ मिलावट हो सकती है! पर यहाँ उद्योगों के लिए माहौल काफी हद तक बेहतर है। यहाँ कानून व्यवस्था को लेकर कोई बड़ी समस्या नहीं है। जबकि, जहाँ औद्योगिक इलाका बसता है, वहां विघ्नसंतोषी पनपने लगते हैं! जिस यूनियनबाजी से उद्योगपति हमेशा परेशान रहते हैं, उस तरह की समस्या नहीं के बराबर है। मुख्यमंत्री ने भी अपने भाषण में भी उल्लेख किया कि 'चाहे जो मज़बूरी हो, हमारी मांगे पूरी हो!' जैसी समस्या मध्यप्रदेश में नहीं है। लेकिन, सबसे बड़ा मसला है कि समिट के दौरान जो सकारात्मकता मुख्यमंत्री के साथ नौकरशाहों ने दिखाई, क्या वो आगे भी नजर आएगी? इसमें संदेह बरक़रार है! क्योंकि, उधोगपतियों और इन्वेस्टर्स को सबसे ज्यादा जूझना ही अफसरशाही से पड़ता है!          
  ये पूरा आयोजन राजनीति से परे था, पर राजनीति से जुड़े सवाल तो फिर भी उठे! इन्वेस्टर्स समिट में पूर्व उद्योग मंत्री और फिलहाल भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की गैर मौजूदगी पर खुसुर-पुसुर भी हुई! इंदौर की प्रथम नागरिक महापौर मालिनी गौड़ को भी तवज्जो न देने पर उंगली उठाई गई! बात यहाँ तक उठी कि सीधे मुख्यमंत्री से सवाल किए गए! शिवराजसिंह चौहान ने भी दोनों नेताओं की वरिष्ठता और व्यस्तता को आयोजन से बड़ा बताते हुए, सवालों को किनारे करने की कोशिश की! फिर भी बात निकली थी, तो उसका दूर तलक तो जाना ही था! 
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