Monday, October 3, 2016

संघ के तेवर से सहमी सरकार

हेमंत पाल 

    मध्यप्रदेश की राजनीति की अपनी अलग ही शैली है! यहाँ किसी पार्टी को सफलता अपनी ताकत पर नहीं मिलती! बल्कि, प्रतिद्वंदी पार्टी की कमजोरी उसे ताकतवर बनाती है! क्योंकि, प्रदेश की राजनीति दो पार्टियों पर केंद्रित है। प्रदेश में भाजपा को सत्ता इसलिए मिली थी, कि लोग दिग्विजयसिंह के एटीट्यूट से परेशान थे! 2003 में उनके इस बयान ने आग में घी का काम किया था कि चुनाव तो मैनेजमेंट से जीते जाते हैं! इसके बाद सत्ता में आई भाजपा! उमा भारती ने भाजपा को अच्छा स्टार्ट दिया, लेकिन उनका बड़बोलापन उनके ही गले पड़ गया! फिर तदर्थ मुख्यमंत्री बने बाबूलाल गौर, जिनकी अपनी कामचलाऊ कार्यशैली थी! पार्टी उनको ज्यादा नहीं झेल सकी और भी किनारे हो गए!  
  इसके बाद धूमकेतु की तरह शिवराज सिंह चौहान आए, जो तीसरे कार्यकाल में भी बने हुए हैं। मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री पद संभालने से पहले वे ऐसे किसी पद पर नहीं रहे! अभी तक के अपने 13 साल के कार्यकाल में शिवराज सिंह ने कई अच्छे काम किए! खासकर लड़कियों और महिलाओं के नई योजनाएं शुरू की, जिसका फ़ायदा भी उन तक भी पहुंचा और पार्टी का भी भला हुआ! लेकिन, प्रकृति का नियम है कि एक निर्धारित ऊंचाई के बाद व्यक्ति को नीचे उतारना पड़ता है। वही अब शिवराज सिंह के साथ हो रहा है! उनकी गाडी उतार पर है। लेकिन, उनके बिगड़ते ग्राफ का कारण वे खुद तो हैं ही! इसके अलावा और भी कई फैक्टर हैं! निरंकुश अफसरशाही, अकड़ते मंत्री, उद्दंड कार्यकर्ता और सरकारी दफ्तरों में बढ़ता भ्रष्टाचार शिवराज सिंह के लिए संकट बन गया है।    
  यही कारण है कि शिवराज-सरकार का चढ़ता ग्राफ अब लगातार नीचे खिसकने लगा! इसका सीधा फ़ायदा कांग्रेस को मिलता दिखाई दे रहा है। अभी तक छोटे बड़े सभी चुनावों में जीत से कोसों दूर रही कांग्रेस ने नगरीय निकाय चुनावों में जीत का स्वाद चखना शुरू कर दिया है। ये स्थिति किसी भी सरकार के लिए अच्छी नहीं होती! छोटे चुनाव से ही राजनीति की तासीर को समझ जाता है और यहाँ भाजपा का पिछड़ना उसके संभलने की चेतावनी है! भाजपा संगठन और सरकार पर नकेल डालकर रखने वाली आरएसएस ने पिछले दिनों चार भाजपा शासित राज्यों में अपना आंतरिक सर्वे करवाया था! ये राज्य थे महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश! इसमें सिर्फ राजस्थान ही एक राज्य है जहाँ भाजपा की स्थिति बेहतर है! बाकी तीनों राज्यों में पार्टी के हाथ से सत्ता दरकती दिखाई दी! बाकी तीन राज्य की चिंता छोड़, सिर्फ मध्यप्रदेश की बात की जाए तो भले ही सतह पर हालात सामान्य लग रहे हों, पर अंदर लावा खदबदा रहा है!   
   मध्यप्रदेश के बारे में जो आंतरिक रिपोर्ट संघ को मिली है, उसके मुताबिक फील्ड में सरकार के हालात ठीक नहीं हैं। यदि इसमें बड़ा सुधार नहीं किया गया तो 'मिशन-2018' फतह करना मुश्किल हो जाएगा। सर्वे का निष्कर्ष है कि जनता निचले स्तर के भ्रष्टाचार से परेशान है। सरकारी योजनाओं का ठीक से क्रियान्वयन नहीं हो रहा! घोषणाओं के बावजूद योजनाओं का फायदा वंचितों तक नहीं पहुंच रहा! बड़े अफसरों की मनमानी साफ नजर आ रही है। मंत्री और संगठन के लोग भी जनता की बातों को गंभीरता से नहीं लेते! सर्वे में सामने आया है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून व्यवस्था के बिगडे हालात लोगों को सबसे ज्यादा परेशान कर रहे हैं। संघ की हिदायत है कि लोगों की नाराजी के जो भी कारण हैं, उनपर काबू करने के प्रयास किए जाएँ! महात्मा गांधी, दलितों पर अत्याचार और गौरक्षा के मुद्दे को लेकर भी जनता नाखुश है। लेकिन, कोई सुधर हो सकेगा, इसमें संदेह है! इसलिए कि निरंकुश अफसरशाही और खुद को खुदा समझने वाले मंत्रियों के तेवर लोग देख रहे हैं! यदि उनमें बदलाव आता है, तो लोग समझ जाएंगे कि जो हो रहा है, वो सिर्फ नाटक है! ... और किसी भी नाटक का परदा गिरने में देर नहीं होती! आखिर पटाक्षेप तो होना ही है, फिर वो नाटक हो या राजनीति!    
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