Tuesday, October 11, 2016

नए निवेशकों के लिए जाजम बिछी, पुराने गायब!


- हेमंत पाल 

 ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट के लिए इंदौर में लाल जाजम बिछने लगी है। पीले चांवल बंट गए। अफसरों की जमात निवेशकों और बड़े औद्योगिक घरानों के स्वागत के लिए तैयार हो रही है! यहाँ तक तो सब ठीक है, पर पुराने निवेशक भाग रहे हैं, इस तरफ किसी का ध्यान नहीं! बीते दो साल में मध्यप्रदेश के हाथ से हजारों करोड़ का निवेश निकल गया। उद्योग मंडल एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) के मुताबिक उद्योग लगने में देरी के कारण निवेश परियोजनाओं की लागत में 97 हजार करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हो गई! 
  मध्यप्रदेश में प्लानिंग के दौर से गुजरती 399 निवेश परियोजनाओं में 224 परियोजनाएं निर्धारित अवधि में पूरी नहीं हो सकी हैं या उनकी लागत बढ़ गई। इन 224 निवेश परियोजनाओं में से 134 की लागत में ज्यादा बढ़ोत्तरी हो गई। जबकि, शेष को पूरा होने में एक से लेकर चार साल तक की देर हुई! शासन की लेटलतीफी से कई बड़ी कंपनियों ने अपनी निवेश योजनाएं रद्द कर दी! 2012 की ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में 'सहारा' के सुब्रत राय ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान सामने मंच से प्रदेश में 18 हजार करोड़ के निवेश से दुग्ध परियोजना स्थापित करने की घोषणा की थी। लेकिन, बाद में सरकारी ढीलपोल के चलते 'सहारा' ने इस परियोजना को रद्द कर दिया। दुनिया में इसे ऐसी पहली परियोजना कहा गया था, जिसमें 5 मिलियन टन दूध का उत्पादन होना था। इससे करीब 35 हजार लोगों को स्थायी रोजगार मिलता! लेकिन, ये वादा भी धरातल पर नहीं उतरा! अब 'सहारा' खुद बेसहारा नजर आ रहा है, पर वो अपनी निवेश योजना को पहले ही रद्द कर चुका है। 
   बड़े रिटेल उद्योग समूह 'फ्यूचर ग्रुप' ने 25 हजार करोड़ रुपए के निवेश से फूड पार्क स्थापित करने के लिए एमओयू पर दस्तखत किए थे। इसमें 20 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार देने का वादा था! लेकिन, दो साल बाद भी यह परियोजना कागजों पर ही है। जानकारी के मुताबिक 'फ्यूचर ग्रुप' ने इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया! योजना के तहत विभिन्न शहरों में कौशल विकास केंद्र भी स्थापित करने की बात कही गई थी। देश के बड़े वाहन निर्माता 'महिंद्रा' ने भोपाल के पास बगोदा में 500 एकड़ जमीन पर ऑटोमोबाइल प्लांट लगाने का वादा किया था। कंपनी यहां 3 हज़ार करोड़ रुपए का निवेश करने वाली थी! लेकिन, सरकारी सुस्ती के कारण महेंद्रा ने निवेश का प्लान रद्द कर दिया। मार्च 2013 में इसी कंपनी ने पीथमपुर के पास बेटमा में भी जमीन की तलाश की थी। 
  इसराइल की दवा कंपनी 'टेवा' ने पीथमपुर के एसईज़ेड में 872 करोड़ रुपए के निवेश का करार किया था। एकेवीएन ने 2013 में 2.72 लाख वर्गमीटर जमीन का आवंटन भी कर दिया गया था। लेकिन, सरकारी दफ्तरों में लालफीताशाही के कारण कंपनी ने भी अपना इरादा बदल दिया। इसी तरह तीसरी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में जी-ग्रुप  सहयोगी कंपनी 'एस्सेल' ने चंबल के बीहड़ों में सर्विस सिटी बनाने का एलान किया था। इन बीहड़ों में 15 हजार हेक्टेयर में 35 हजार करोड़ की इस परियोजना से एक लाख लोगों को रोजगार देने की बात कही थी। लेकिन, आज तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। 
तीन समिट, नतीजा सिफर 
  निवेश बढ़ाने के लिए मध्यप्रदेश में अब तक तीन बड़ी ग्लोबल इंवेस्टर समिट हुई हैं। 2010 में खजुराहो में, 2012 व 2014 में इंदौर में! 2010 और 2012 की ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में निवेश को लेकर कई एमओयू हुए! लेकिन, इसमें से 10 फीसदी एमओयू भी जमीन पर नहीं उतरे! हर साल हो रही समिट से प्रदेश में निवेश का माहौल तो बना है। बड़े निवेशक रूचि भी दिखाने लगे हैं। लेकिन, उतना प्रतिफल दिखाई नहीं दे रहा! देश के औद्योगिक घरानों अंबानी, अडानी, जेपी ग्रुप, टाटा समूह, सहारा बार पतंजलि ने प्रदेश में निवेश की इच्छा जताई! टीसीएस और विप्रो के आने को इसी समिट की सफलताओं से जोडा जा रहा है। जबकि, कई संस्थान तो अपनी प्राथमिकताओं के कारण प्रदेश में आए! सरकार के बुलावे या 'समिट' से उनका कोई सरोकार नहीं है। 
 इंदौर में होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिए मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अफसरों ने दुनियाभर की यात्राएं की और इंवेस्टर्स को लुभाया! लेकिन, अभी तक हुई तीन समिट में निवेश के जो वादे उद्योगपतियों ने किए थे, उनका हश्र अच्छा नहीं रहा! इस बार की समिट से निवेश का दावा किस हद तक जमीन पर उतरेगा, यह कहा नहीं जा सकता! ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट का फायदा न मिलने का बड़ा कारण रोडमैप और समयबद्ध तैयारी का अभाव कहा जा सकता है। निवेश करने वाले उद्योगों को अपने प्रोजेक्ट की मंजूरी के लिए कई टेबलों के चक्कर लगाने को मजबूर होना पड़ता है। समिट से पहले पलक पांवड़े बिछाने वाली सरकार की असलियत बाद में अफसरशाही के रवैये से उजागर हो जाती है। यही कारण है कि निवेशक प्रदेश में रूचि दिखाने के बाद माहौल देखकर लौट जाते हैं। औद्योगिक समूहों ने सिंगल विंडो सिस्टम नहीं होने और सही जमीन नहीं मिलने से होने वाली अड़चनों के चलते दूसरे प्रदेशों की तरफ रूख कर लिया। इसके अलावा प्रदेश की नीतियां भी लचीली नहीं है। उद्योगों को मंजूरी के लिए काफी परेशानी आती है। लेकिन, जब सरकार ने निवेशकों को उनके घर जाकर आमंत्रित किया है, तो उनका स्वागत तो करना ही पड़ेगा! वही हो भी रहा है! 
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