Friday, October 14, 2016

'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' या बेनतीजा भव्य सरकारी इवेंट?


हेमंत पाल 

   मध्यप्रदेश सरकार के सामने फ़िलहाल 'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' से बड़ा कोई काम नहीं है। प्रदेश सरकार से लगाकर इंदौर समेत कई जिलों का प्रशासन इस 'इवेंट' को सफल बनाने में लगा है! निवेशकों के स्वागत सत्कार, इंतजाम और आयोजन की भव्यता के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है! देश, विदेश के निवेशकों को लुभाने के लिए अफसरों और नेताओं की यात्राओं पर समिट से पहले ही करोड़ों रुपए फूंके जा चुके हैं। निवेशकों को दिखाने के लिए मध्यप्रदेश का चेहरा झाड़ पौंछकर चमकाया जा रहा है। पूरे आयोजन का मूल मकसद निवेशकों को ये समझाना है कि प्रदेश में निवेश की अपार संभावनाएं हैं। लेकिन, इस मकसद को किनारे करके इसे सिर्फ भव्य सरकारी इवेंट की तरह आयोजित किया जा रहा है। पूरी नौकरशाही भी अपने हिस्से का मक्खन निकालने के लिए छाछ मथने में लगी है। अभी तक हुई 'इन्वेस्टर्स मीट' और 'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' से प्रदेश को कितना निवेश हांसिल हुआ, यदि इसकी जमीनी हकीकत आंक ली जाए तो सारा सच सामने आ जाएगा कि ये सिर्फ छलावा है। न तो निवेशक मध्यप्रदेश में निवेश को लेकर गंभीर है और न सरकार वास्तव में आयोजन से कुछ पाना चाहती है। समिट के बाद सरकार और अफसर ऐसे निश्चिंत दिखाई देते हैं, जैसे बेटी की शादी निपटने के बाद पिता चैन सांस लेता है! जबकि, वास्तव में ये आयोजन एक बड़े अभियान की शुरुवात है, अंत नहीं!       

  मध्यप्रदेश में निवेश बढ़ाने और नए उद्योगों की स्थापना की कोशिशों के तहत अब तक तीन 'ग्लोबल इंवेस्टर समिट' हो चुकी हैं। 2010 में खजुराहो में और 2012 व 2014 में इंदौर में! चौथी समिट इंदौर में होने जा रही है! जिसके लिए मंडप सज चुका है। निवेशकों को दूल्हा समझकर अगवानी के लिए अफसर फर्शी सलाम करने को तैयार खड़े हैं! लेकिन, इस भव्यता का नतीजा क्या होगा, ये अभी से तय है! करोड़ों, अरबों के निवेश की घोषणा करने वाले निवेशक सरकारी खातिरदारी के बाद लौटकर मुँह दिखाने भी नहीं आएंगे! 2010 और 2012 की ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में बड़े पैमाने पर निवेश के एमओयू हुए थे! सरकार भी उत्साहित हुई कि उनकी योजना सफल हुई! लेकिन, इन एमओयू में से 10 फीसदी भी आकार नहीं नहीं ले सके। 2014 में हुई आखरी 'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' में भी 6.89 लाख करोड़ रूपए के निवेश का वादा उद्योगपतियों ने किया था। लेकिन, ये दावा भी झूठ निकला। इस तरह की समिट का फायदा न मिलने का सबसे बड़ा कारण है सरकार के पास निवेशकों के लिए सही रोडमैप न होना और समयबद्ध तैयारी का अभाव! 
 प्रदेश में निवेश के लिए इच्छा जताने वाले और एमओयू साइन करने वाले उद्योगपतियों को एमओयू के बाद की कार्रवाई के लिए लालफीताशाही के चंगुल में फंसना पड़ता है। इन्वेस्टर्स समिट के वक़्त जो अफसर उनकी अगवानी करते नजर आते हैं, वही उनपर रौब गांठने लगते हैं। नतीजा ये होता नौकरशाहों की इच्छाशक्ति में कमी  देखकर निवेशक प्रदेश में रूचि दिखाने बावजूद लौटने पर मजबूर हो जाते हैं। कई बड़े उद्योग समूहों ने तो 'सिंगल विंडो सिस्टम' न होने और जमीन मिलने में सरकारी अड़चनों के कारण दूसरे प्रदेशों की तरफ रूख कर लिया। निवेशकों के लिए प्रदेश की नीतियां भी दूसरे प्रदेशों के मुकाबले बेहद उलझन वाली हैं। यहां उद्योगों की मंजूरी के लिए शर्ते भी कठिन है! लेकिन, सबसे ज्यादा मुश्किल है अफसरशाही से निजात पाना, जो बिल्कुल बेकाबू हो चुकी है। 
  'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' के प्रति सरकार की असली गंभीरता को लेकर हमेशा ही संदेह किया जाता है और सवाल उठाए जाते हैं। जबकि, मुख्यमंत्री ने निवेशकों को आमंत्रित करने के लिए अफसरों के साथ कई देशों की यात्राएं की! इवेंट को भव्य बनाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी! फिर भी सवालों की कमी नहीं है। इसलिए कि इतने बड़े आयोजन के बावजूद कोई सार्थक नतीजा सामने नहीं आता! जब भी इन इवेंट को लेकर कहीं पूछताछ होती है, जवाब में लीपापोती की जाती है। कोलारस (शिवपुरी) के विधायक रामसिंह यादव ने विधानसभा में पिछले दिनों 'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' पर हुए खर्च, उपलब्धियों और आयोजकों को लेकर एक सवाल किया था! इसके जवाब में कहा गया कि मध्यप्रदेश में नए उद्योगों के लिए वाणिज्य, उद्योग एवं रोजगार विभाग ने अप्रैल 2014 से जून 2016 के बीच देश-विदेश में सेमिनार, इवेंट व ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया। इन पर 2182.89 लाख रुपए खर्च हुए! जबकि, समिट में कोई एमओयू साइन नहीं किया गया। इंदौर समिट के लिए कैबिनेट की मंजूरी के बाद सीआईआई को शामिल किया गया! दो अन्य एजेंसियों का चयन ओपन टेंडर के आधार पर किया गया! इस राशि के खर्च के बाद भी प्रदेश में निवेश का रिजल्ट शून्य है। तीन सालों में यहां आने वाले किसी उद्योग के प्रतिनिधि ने एमओयू नहीं किया है।   
   इंदौर में हुई अंतिम 'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' में अकेले इंदौर एकेवीएन और जिला उद्योग व्यापार केंद्र को लगभग 500 प्रस्ताव मिले थे। जिसमें से एकेवीएन को 79 और बाकी जिला उद्योग के खाते में आए थे। मगर इन्वेस्टर्स समिट के बाद भी बड़े निवेशकों ने रुचि नहीं दिखाई। 'ट्राइफेक' से लेकर 'एकेवीएन' ने निवेशकों से कई बार संपर्क की कोशिश की! ईमेल, मैसेज और फोन के जरिये संपर्क किया, मगर उन्होंने जवाब तक नहीं दिया। इस बार उद्योग मंत्री ने निर्देश दिए हैं कि पिछली ग्लोबल मीट का रिकॉर्ड निकाला जाए। इस बार ऐसे निवेशकों की लिस्ट बनाई गई है, जो हर ग्लोबल समिट में निवेश करने का वादा तो करते हैं, मगर निभाते नहीं! 
  इंदौर में होने वाली ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट के लिए सरकार ने एक बार फिर निवेशकों के लिए पलक पांवड़े बिछा रखे हैं। देश विदेश में मुख्यमंत्री समेत प्रदेश के मंत्री और अफसर दौरे कर चुके हैं। पर, इस समिट के पहले भाजपा के दो विधायक जो मंत्री रह चुके हैं, ने सरकार की कथित सफलता की पोल खोल दी। बाबूलाल गौर और कैलाश चावला ने 'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' पर जो सवाल खड़े किए, उससे उद्योग विभाग के अफसर घेरे में हैं। इन दोनों विधायकों को उद्योग विभाग के अफसरों ने दो साल पहले हुई समिट के खर्च की जो जानकारी दी है, उस राशि में 8 करोड़ रुपए का फर्क है। गौर को दी जानकारी में 22 करोड़ रुपए और चावला को 14 करोड़ खर्च बताया गया। कैलाश चावला ने 2013 से अब तक हुए इन्वेस्टर्स समिट की जानकारी और खर्च के बारे में जानकारी मांगी तो सरकार ने उन्हें भी इंदौर समिट में आने वालों की संख्या 3500 ही बताई! कोई एमओयू नहीं होने की भी सूचना दी। समिट के खर्च का ब्यौरा भी 14.28 करोड़ रुपए बताया गया। यह भी बताया गया कि एक भी निवेशक ने न तो जमीन मांगी, न उद्योग लगाने के लिए आगे आए। 
 बाबूलाल गौर को दी जानकारी के मुताबिक इंदौर में 2014 में अक्टूबर में तीन दिनों तक हुई 'ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट' में 3500 से अधिक प्रतिनिधि शामिल हुए। समिट का खर्च उठाने का काम जिन कम्पनियों को दिया गया, उसमें भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने 16.91 करोड़, जेडब्ल्यूटी ने 2.37 करोड़ तथा अंसर्ट एंड यंग (ईएंडवाय) ने 2.25 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। समिट के प्रचार प्रसार पर अखबारों, न्यूज चैनलों पर 1 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। जोड़ लगाया जाए तो यह राशि 22.50 करोड़ रुपए से अधिक होती है। आखिर दोनों विधायकों को दी गई जानकारी में 8 करोड़ का अंतर कैसे आया? इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि इस आयोजन में पैसों की अफरा-तफरी किस हद तक होती होगी!  
    इस बात से इंकार नहीं कि इस पूरे इवेंट की कमान हमेशा अफसरों के हाथ में ही होती है। वही सब कुछ तय करते हैं कि मुख्यमंत्री को कैसे खुश करना है और अपने नंबर बढ़वाना है! उन्हें सब फार्मूले पता है। यही वजह है कि प्रदेश की सुस्त अफसरशाही 'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' के दौरान कुछ ज्यादा ही सक्रिय दिखाई देती है। उद्योगपतियों से मुख्यमंत्री की तारीफे करवाकर भी वे खुश हो लेते हैं। अधिकारी ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि यदि मध्यप्रदेश में उद्योग लगाना आसान हो गया तो उनको कौन पूछेगा! सारी गफलत और लेटलतीफी का कारण भी यही है। 
------------------------------------------------------------------------------

No comments: