Friday, October 7, 2016

सीमा लांघने लगी पुलिस की ज्यादती और अभद्रता!

- हेमंत पाल 

     मध्यप्रदेश के भाजपा संगठन और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बीच पिछले दिनों समन्यवय बैठक हुई थी! इस बैठक में अफसरशाही की ज्यादतियों को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने जो टिप्पणी थी, वो सही साबित हुई! पुलिस वास्तव में ज्यादती करती है, ये बात छुपी नहीं रही! बात चाहे बालाघाट जिले में संघ प्रचारक के साथ पुलिस की मारपीट की हो या फिर खुद कैलाश विजयवर्गीय के निजी सचिव के साथ अभद्रता की! सिर्फ यही वे घटनाएं नहीं हैं जो पुलिसिया अंदाज बताती है! पुलिस जब रसूखदार लोगों के साथ इस तरह पेश आती है, तो आम लोगों के साथ उसका व्यवहार कैसा होगा? पुलिस की खाकी वर्दी समाज में ख़ौफ़ का पर्याय बनती जा रही है! लोग तो अपनी सही शिकायत लेकर भी थाने जाने से घबराते हैं! आखिर समाज में पुलिस के प्रति बने इस भय वाले माहौल में सुधार कैसे आएगा, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है! क्योंकि, ऊपर से लेकर नीचे तक पुलिस का चरित्र एक जैसा है! नेशनल क्राइम ब्यूरो के नजरिये से देखा जाए तो 2015 में ही मध्यप्रदेश पुलिस के खिलाफ देश में सर्वाधिक 10089 शिकायतें सामने आई। लेकिन, सिर्फ 84 पुलिसवालों के खिलाफ ही मामले दर्ज किए गए और 88 पुलिसवालों की गिरफ़्तारी हुई!  
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  समाज में पुलिस ज्यादती के किस्सों की कमी नहीं है। जब भी कहीं ये जिक्र छिड़ता है, हर व्यक्ति के पास पुलिस के व्यवहार के खिलाफ बोलने के लिए बहुत कुछ होता है। क्योंकि, पुलिस का अशिष्ट व्यवहार उसके चरित्र में समा गया है। जब कोई पुलिसकर्मी अपनी पहचान से अलग हटकर सामान्य व्यवहार करता है, तो लोग आश्चर्य करने लगते हैं! लेकिन, आजतक ये बात समझ से परे है कि वर्दी में आते ही पुलिसकर्मी असभ्य और अत्याचारी की भूमिका में क्यों आ जाते हैं? उनकी भाषा में अशिष्टता क्यों आ जाती है? प्रदेश में पुलिस इन दिनों फिर अपनी कार्यशैली को लेकर विवादों में है। उसके कार्य और व्यवहार पर जिस तरह से अंगुलियां उठ रही हैं, उससे लगता है कि छोटे पुलिसकर्मियों और बड़े अफसरों के बीच संवादहीनता की स्थिति निर्मित हुई है। ये भी हो सकता है कि मातहतों पर उनकी पकड़ कमजोर हुई! क्योंकि, पुलिस का चुस्त-दुरुस्त होने के साथ उसका आदर्श चेहरा दिखाई देना भी जरुरी है!
 पुलिस ज्यादती का सबसे चर्चित और ताजा मामला संघ के बालाघाट जिला प्रचारक सुरेश यादव के साथ पुलिस मारपीट का रहा! यादव ने मुस्लिम नेता असदउद्दीन ओवैसी के खिलाफ सोशल मीडिया में टिप्पणी की थी! पुलिस को यादव द्वारा औवेसी के खिलाफ पोस्ट करने की शिकायत मिली! इस बात पर पुलिसकर्मियों ने यादव के साथ जमकर मारपीट करके उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया। उन्हें इतना पीटा गया कि यादव को गंभीर चोटें आर्इं और जबलपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। इस घटना के बाद बालाघाट जिले में रोष उभरा और सभी बड़े पुलिस अफसरों को हटा दिया गया। इस घटना को संघ ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था! अफसरों के खिलाफ की गई कार्रवाई का विरोध भी हुआ! कांग्रेस ने इसे गलत परंपरा करार दिया, पर आखिर पुलिस को अपने कर्त्तव्य का बोध कौन कराएगा? पुलिस के बिगड़े चरित्र को सुधारने की कोशिश कहीं से तो शुरू होना ही चाहिए!
  अभी इस घटना का हल्ला थमा भी नहीं था कि इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय के निजी सचिव रवि विजयवर्गीय के साथ भी एक पुलिसकर्मी ने अपना रोब झाड़ा! मारपीट के दौरान सचिव के कपड़े फट गए और वे घायल हो गए। घटना के मुताबिक रवि कार में ड्राइवर के साथ कैलाश विजयवर्गीय को लेने एयरपोर्ट जा रहे थे। तभी चेकिंग पॉइंट पर पुलिसकर्मियों ने उनकी गाड़ी रोकी और गाड़ी के कागज़ मांगे! इस मुद्दे पर दोनों के बीच बोलचाल हो गई! पुलिसकर्मी ने गाड़ी नहीं जाने दी तो दोनों में विवाद बढ़ गया। इस बीच झूमाझटकी में रवि की शर्ट के बटन टूट गए! गलती किसकी थी, सवाल ये नहीं है! असल बात ये है कि पुलिस को व्यवस्था के साथ संयम बरतने की भी शिक्षा दी जाती है। यदि निजी सचिव ने सीमा लांघी भी थी, तो उस पुलिसकर्मी को अपने पद की गरिमा का ध्यान रखना था!  
   प्रदेश में पुलिस वालों के अपने अक्खड़ अंदाज में कभी कोई कमी आई हो, ऐसा नहीं लगा! इंदौर में 6 महीने से लापता पति और 5 बच्चों के पिता की खोज की गुहार लगाती पत्नी और बच्चों की जब थाने में हंसी उड़ाई गई तो पूरा परिवार रेल की पटरी पर बैठ गया! जीआरपी ने बड़ी मुश्किल से समझाकर परिवार को पटरी से उठाया! पुलिस का कहना है कि उक्त महिला  कई लोगों से पैसा ठगकर भागा है! इस बात में कितनी सच्चाई है, ये तो साफ़ नहीं हुआ! लेकिन, पुलिस को उस व्यक्ति को खोजने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, न कि परेशान परिवार को उलाहना देने और उनकी हंसी उड़ाने की! इसी दिन इंदौर के ही डीआईजी दफ्तर में एक एनआरआई महिला द्वारा वीजा की अवधि बढ़ाने संबंधी जानकारी मांगने पर उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया! महिला को कमरे से निकल जाने तक का कह दिया गया। सिर्फ इसलिए कि वह एनआरआई महिला जो जानकारी मांग रही थी, वो देने की फुर्सत उस पुलिसकर्मी के पास नहीं थी!
  पुलिस के बारे में कहा जाता है कि वो सबकुछ कर सकती है। बिना अपराध किए पुलिस किसी को भी आरोपों के कटघरे में खड़ा कर सकती है। इस कहर से पत्रकार भी सुरक्षित नहीं हैं। पिछले दिनों भोपाल में पुलिस ने दो पत्रकारों के साथ ज्यादती करके उन्हें सिमी का आतंकवादी तक बनाने की कोशिश की गई! यदि वे पत्रकार नहीं होते, तो शायद पुलिस ये कर भी डालती! क्योंकि, उन्हें एनकाउंटर तक की धमकी दी गई थी! देर रात इन दोनों पत्रकारों को दफ्तर से आते हुए रोका और आरोप लगाया कि तुम लोग एटीएम लूटने जा रहे हो। पुलिसवाले उन्हें जबरन थाने ले गए और सुबह पांच बजे तक बैठाए रखा। इस दौरान उनकी पिटाई भी की गई, जिसके चलते दोनों पत्रकारों को चोट आई! इस मामले की जांच में क्या सामने आया? दोषी कौन निकला और उसे क्या सजा मिली, ये सवाल गौण हैं! मुद्दा ये है कि पुलिस ये सब क्यों किया? किस संदेह के चलते उन पत्रकारों के साथ ज्यादती की गई?  
 आखिर पुलिस ऐसी क्यों है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए थोड़ा सा पुलिस का इतिहास जानना भी जरुरी है। पहले राजा, महाराजा और उसके बाद ब्रिटिश राज में पुलिस का एक ही उद्देश्य था साम, दाम, दंड, भेद या चाहे जैसे भी हो जनता के पर शासन करना और शासक का दबदबा बनाए रखना! पुलिस का काम केवल शासक के हितों का ख्याल रखना! इस मकसद का इस्तेमाल अंग्रेजों के शासनकाल के अंतिम दिनों में जब भारतीय आजादी के लिए लड़ रहे थे, उस दौरान सबसे ज्यादा हुआ! अंग्रेजों ने उनकी वफादारी की सराहना भी की! तब से ही पुलिस के शासक की रक्षा भ्रम घर कर गया है! धीरे-धीरे ये पुलिस की संस्कृति और व्यवहार का हिस्सा बन गया।
  पुलिस के अमर्यादित आचरण का एक कारण मनोवैज्ञानिक भी हो सकता है। इसमें शक नहीं कि राजनीतिक दखलंदाजी की वजह से वर्दी की खनक में लगातार गिरावट आ रही है। पुलिस की कार्यप्रणाली पर राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ने से उनकी कार्यप्रणाली भी प्रभावित होने लगी! राजनीति और आपराधिक तत्वों के गठजोड़ से भी पुलिस दबाव में है। न चाहते हुए भी पुलिस को राजनीतिक दखल के आगे झुकने पर मजबूर होना पड़ता है। समाज में वर्दी का रुतबा कम होने का सबसे बड़ा कारण यही माना जा रहा है। इस दौर में एक काम यह भी हुआ कि पुलिस-राजनीतिक गठजोड़ पनपा और इसकी वजह से पुलिस कामकाज के साथ उनकी तैनाती में नेताओं का हस्तक्षेप होने लगा। यह सिलसिला लगातार बढ़ रहा है। इस वजह से पुलिस में भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति बढ़ी है। आज छोटे पुलिस कर्मचारियों की हैसियत बड़े पुलिस अफसरों से ज्यादा होने के किस्से चर्चा में छाए रहते हैं।
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