Monday, October 3, 2016

असंतोष की आंच पर बयानों के बुलबुले

हेमंत पाल 


  मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों कुछ अलग तरह की गरमाहट है। सत्ता और विपक्ष दोनों में ही असंतोष का लावा खदबदा रहा है। भाजपा सरकार और संगठन दोनों पर असंतुष्ट नेताओं के हमले जारी है! कभी अफसरशाही की आड़ लेकर गोले बरसाए जाते हैं, तो कभी ट्वीट से तलवारें भांजी जा रही है! उधर, कांग्रेस में भी सब कुछ सामान्य नहीं है। 13 साल से विपक्ष में बैठी कांग्रेस के भाजपा पर हमले थम गए! आजकल हमलों की तोप का मुँह अपनी ही पार्टी की तरफ है! प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के खिलाफ अभी तक जो छापामार लड़ाई चल रही थी, वो खुलकर सामने आ गई! विधायक जीतू पटवारी ने कमलनाथ को पार्टी कमान सौंपने की आवाज उठा दी! इसी बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अगले विधानसभा चुनाव के पहले सीएम उम्मीदवार प्रोजेक्ट करने मांग उठाकर पार्टी की नीति पर सवाल उठा दिया!     
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   प्रदेश में सत्ता पर काबिज भाजपा के भीतर जो मतभेद अभी तक सतह के नीचे थे, वो अब धीरे-धीरे खुलकर सामने आ रहे हैं! पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के बीच चली बयानबाजी के बाद भी सबकुछ शांत नहीं है! पार्टी के लिए इस अंतर्कलह को रोकना चुनौती बन गया! पार्टी भले इसे सामान्य बात बता रही हो, पर सब कुछ ठीक नहीं है। पार्टी भी समझ रही है कि अफसरशाही के मुद्दे पर विजयवर्गीय के तेवर सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। क्योंकि, ये ऐसा मामला है, जिस पर सरकार को बचने के लिए आड़ नहीं मिल रही! संघ प्रचारक पर पुलिस ज्यादती को लेकर भी विजयवर्गीय ने सरकार को घेरकर अपने तीखे तेवर जाहिर किए! इसका जवाब गृह मंत्री को देने के लिए मजबूर होना पड़ा!
  इस बात से इंकार नहीं कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भाजपा और संघ दोनों में लोकप्रिय हैं। लेकिन, संघ का ताजा आंतरिक सर्वेक्षण नई चिंता कारण बन गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वेक्षण में प्रदेश में भाजपा की सीटें सौ से भी नीचे जाने की आशंका जताई गई है। मतलब ये कि मध्य प्रदेश का अगला विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए गंभीर चुनौती बनेगा! 230 सीटों वाले प्रदेश में भाजपा के पास 165 सीटें है। लेकिन, संघ के पास जो फीडबेक आया, वो खतरे की घंटी है। इस सर्वेक्षण के बाद यह जताने की कोशिश की जा रही है कि प्रदेश में जो स्थितियाँ बनी हैं, उसके लिए अफसरशाही जिम्मेदार है। इस बात में दम भी है। क्योंकि, सरकार ने विकास योजनाओं की घोषणाएं तो कर दी! लेकिन, कहीं न कहीं उनका क्रियान्वयन जिस तरह होना था, वो नहीं हो पा रहा! अफसरशाही के दम्भ से हर व्यक्ति परेशान है!  
  असंतुष्टों का एक गुट उन नेताओं का भी है, जिन्हें मंत्रिमंडल से हटाया गया था! नाराज पूर्व मंत्री और विधायक सरताज सिंह ने सरकार को ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट मामले में घेरा है। उन्होंने इस मुद्दे पर श्वेत पत्र जारी करने की बात कही डाली! उनका कहना है कि इन्वेस्टर्स समिट में कई निवेशकों ने रूचि तो दिखाई, लेकिन अफसरशाही के अड़ंगों के चलते निवेशकों का मन बदलने लगा है। अफसरशाही और तंत्र की उदासीनता के कारण निवेशकों को कई कठिनाइयां आती हैं। उन्होंने कई सवाल उठाकर सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश भी की! क्योंकि, अभी तक जितने भी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट हुए, उनमें उम्मीद के मुताबिक निवेश नहीं हो पाया। सरताज सिंह ने कहा कि श्वेत पत्र में बताया जाए कि अब तक समिट के जरिए कितना निवेश हुआ? कितने उद्योग स्थापित हुए? कितने बेरोजगारों को रोजगार मिला और कितने एमओयू साइन किए गए। 
 एक ताजा मामला राज्यसभा चुनाव में स्थानीय नेताओं की उपेक्षा को लेकर खदबदाया है। प्रदेश में नजमा हेपपुल्‍ला को राज्‍यपाल बनाए जाने से खाली हुई एक सीट से कई भाजपा नेताओं की उम्‍मीदें जागी थी! लेकिन, मध्यप्रदेश के खाते से दक्षिण के नेता इला गणेशन के नाम की घोषणा कर दी गई! भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने जैसे ही राज्यसभा के लिए इला गणेशन के नाम की घोषणा की, प्रदेश के नेता मायूस हो गए! गणेशन का नाम घोषित होने के बाद अब राज्यसभा में मध्यप्रदेश से तीन बाहरी सांसद हो जाएगें। गणेशन से पहले एमजे अकबर और प्रकाश जावड़ेकर यहीं से राज्यसभा में पहुंचे हैं। 
  भाजपा की तरह कांग्रेस में भी नेताओं में कड़वाहट बढ़ रही है। सभी को लग रहा है कि 2018 में सत्ता का छींका टूटकर उनकी ही झोली में गिरने वाला है। यही कारण है कि सभी नेताओं ने नए सिरे से समीकरण गढ़ने शुरू कर दिए! प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के खिलाफ अभी तक जो छापामार लड़ाई चल रही थी, वो खुले संघर्ष में बदलने लगी! अरुण यादव के खिलाफ छोटे-छोटे नेता तक तलवार भांजने दिखाई दे रहे हैं! इंदौर की राऊ विधानसभा से पहली बार विधायक बने जीतू पटवारी ने यह कहकर अंन्तर्कलह को हवा दी, कि कांग्रेस संगठन में कई कमियां हैं। प्रदेश में कांग्रेस धारदार विपक्ष की भूमिका नही निभा पा रही! जीतू ने ये भी उगल दिया कि उन्होंने राहुल गांधी को प्रदेश कांग्रेस की बदहाल स्थिति की जानकारी दी है। उन्होने राहुल गांधी को कांग्रेस की हार के कारण भी बताए और कांग्रेस की कमियों की भी जानकारी दी! उन्होंने अरुण यादव बजाय कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग उठाई है। जीतू ने यह भी कहा कि यदि कमलनाथ के हाथ में आगामी चुनाव की कमान रहती है तो कांग्रेस की सरकार बनने से कोई नही रोक सकता।
   जीतू पटवारी युवक कांग्रेस के अध्यक्ष थे, तब से ही बयानबाजी के सरताज रहे हैं! वे विधायक हैं, पर प्रदेश की राजनीति में जबरन अपनी सक्रियता दिखाने से बाज नहीं आते! वे पिछले एक साल से प्रदेश अध्यक्ष बनने की दौड़ लगा रहे हैं। लेकिन, किसी ने उनकी सक्रियता को गंभीरता से नहीं लिया! अब उन्होंने नया पांसा फैंका और प्रदेश अध्यक्ष के लिए कमलनाथ का नाम लेकर खुद को चर्चा में लाने की कोशिश की है। प्रदेश कांग्रेस वैसे तो कई गुटों में बंटी है, पर अभी इसमें दो फाड़ साफ़ नजर आ रहे हैं। एक गुट पार्टी अध्यक्ष अरुण यादव का है, दूसरा उनके विरोधियों का! ये सच है कि प्रदेश में कांग्रेस धारदार तरीके से विपक्ष की भूमिका भी नहीं निभा पा रही! विपक्ष की भूमिका मात्र प्रतिक्रिया और बयानों तक सीमित होकर रह गई है! 
   अभी अरुण यादव की जगह कमलनाथ को लाने का तूफ़ान थमा भी नहीं है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक नया पत्थर उछाल दिया! उन्होंने बयान दिया कि चुनाव चाहे जनपद का हो या पंचायत का, नगर पालिका का हो या नगर निगम का, विधान सभा का चुनाव हो या लोकसभा का चुनाव! सामने चेहरा होना अनिवार्य है! अगर चेहरा सामने होता है, तो चुनाव में इसका फायदा देखने को मिलता है। उनका ये बयान अप्रत्यक्ष रूप से 2018 के विधानसभा चुनाव के संदर्भ में है! जबकि, कांग्रेस की यह परंपरा रही है कि चुनाव नतीजे आने से पहले मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया जाता! कांग्रेस की इस परंपरा को तोड़कर सिंधिया ने चेहरा प्रोजेक्ट करने सुझाव दिया! मुद्दा ये कि यह सुझाव उस वक़्त आया, जब प्रदेश पार्टी नेतृत्व को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं! सिर फुटव्वल का ये माहौल दोनों ही पार्टियों में नजर आने लगा है! कांग्रेस में सामने आकर वार किए जा रहे हैं, भाजपा में छुपकर!  हालात दोनों ही पार्टियों के लिए अच्छे नहीं कहे जा सकते! 
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