- हेमंत पाल
इस बार का विधानसभा चुनाव कई मामलों में पिछले तीन चुनाव से अलग होगा! सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा भारतीय जनता पार्टी के लिए होगी, जिसे मतदाताओं के सामने साबित करना होगा कि उसकी सरकार हर मोर्चे पर खरी उतरी है। क्योंकि, ये चुनाव न तो चुनावी हथकंडों से जीता जा सकेगा और न वादों और रंगीन सपने दिखाकर! बरसों बाद प्रदेश में ये ऐसा चुनाव होगा, जिसमें 15 साल से सत्ता में बैठी भाजपा की लोकप्रियता, मतदाताओं में उसकी पकड़ और उसकी नीतियों का मूल्यांकन होगा। लगातार तीन चुनाव जीतकर भाजपा ने जो किया वो सही था, लोगों ने उसे कितना सही समझा? क्या फिर भाजपा को मौका दिया जाना चाहिए? अगला चुनाव इन सारे सवालों का सही मूल्यांकन होगा। जब चुनाव में भाजपा वोट मांगने खड़ी होगी, तब उसके पास मतदाताओं से आँख चुराने का कोई बहाना नहीं होगा! उसे अपने तीनों कार्यकाल का पूरा हिसाब जनता के सामने रखना होगा। पार्टी के पास बचने, आँख चुराने या विपक्ष के असहयोग का कोई बहाना नहीं होगा। जबकि, कांग्रेस के पास सरकार के खिलाफ आरोपों की लम्बी फेहरिस्त होगी। सीधा सा मतलब है कि कटघरे में खड़ी भाजपा बचाव की मुद्रा में होगी!
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किसी भी सत्ताधारी पार्टी के सामने सबसे बड़ा राजनीतिक संकट तब आता है, जब उसे मतदाताओं से अपने काम के दम पर वोट मांगना पड़ते हैं। मध्यप्रदेश में लगातार तीन बार चुनाव जीतकर भाजपा ने अपनी जड़ें तो गहरे तक तो जमा ली, पर क्या मतदाता उसके कामकाज से खुश है? इसलिए कहा जा सकता है कि इस बार असली चुनाव होगा! भाजपा को लगातार दो बार कांग्रेस की दिग्विजय सरकार की नाकामियों, कांग्रेस की आपसी सिर फुटव्वल और जीत के अतिआत्मविश्वास ने जीत दिलाई। जबकि, भाजपा को तीसरी जीत मोदी-लहर कारण मिली थी। लेकिन, इस बार ऐसा कोई फैक्टर नजर नहीं आ रहा, जो भाजपा को आसान जीत दिला सके। चौथी बार सरकार बनाने के लिए भाजपा को कड़ी चुनौती से जूझना है। क्योंकि, ऐसे कई कारण है जो भाजपा की राह में रोड़े अटकाएंगे। सबसे बड़ा रोड़ा है, भाजपा नेताओं की छवि! लोगों ने जिस भरोसे जनता ने कांग्रेस के बदले भाजपा को चुना था, वो कई मायनों ध्वस्त हुआ है। बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार की नई-नई कहानियों और भाई-भतीजावाद के अलावा मतदाताओं को भाजपा नेताओं के व्यवहार से सबसे ज्यादा आपत्ति है! जनता के वोट से जीते नेताओं ने जनता से जिस तरह दूरी बनाई, वो लोगों को सबसे ज्यादा खटक रहा है! राजनीतिक तानाशाही को भी लोग सहन नहीं कर पा रहे हैं। अफसरशाही ने भी लोगों को सबसे ज्यादा निराश किया।
जो शुचिता भाजपा नेताओं की पहचान थी, उस छवि का ग्राफ पिछले सालों में सबसे ज्यादा नीचे आया है! ईमानदारी, मतदाताओं के प्रति जिम्मेदारी, पक्षपात, लोगों के प्रति व्यवहार और सामाजिक छवि के मामले में भाजपा नेताओं की छवि गिरी है। आज कोई भी इस बात को स्वीकार नहीं करता कि भाजपा के विधायक, नेता और मंत्री ईमानदार, व्यावहारिक, गैर-पक्षपाती हैं। देखा जाए तो लोगों को आज राजनीति की सारी खामियाँ भाजपा नेताओं में ही नजर आती हैं। ये खामी इसलिए ज्यादा नजर आती है, क्योंकि पार्टी के बड़े नेता और संघ के पैरोकार सुचिता के दंभ में चूर हैं। वे इस बात का दावा करने का मौका भी नहीं चूकते कि वे ही जनता के सही प्रतिनिधि हैं। इन सारी बुराइयों से कांग्रेस भी अलहदा नहीं है! लेकिन, न तो उनके पास सत्ता है कथित बेईमानी करने के मौके! इसलिए चुनाव में मतदाताओं की नाराजी उन पर कम ही उतरेगी। कहने का तात्पर्य ये कि कांग्रेस के मुकाबले भाजपा नेताओं की छवि ज्यादा दागदार है। ऐसे में पार्टी को उन चेहरों को किनारे करना होगा, जो पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं। क्योंकि, पार्टी की छवि उन्हीं लोगों से बनती है, जो उसका प्रतिनिधित्व करते हैं।
इस बात से भाजपा भी अच्छी तरह वाकिफ है कि उसके लिए अगला विधानसभा चुनाव बेहद मुश्किल है। चुनाव के भाषणों में सिर्फ आश्वासन से काम नहीं चलने वाला, मतदाता सारे वादों का हिसाब मांगेंगे! पिछले चुनाव में मोदी-लहर ने विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका अदा की थी। इस बार ऐसी कोई उम्मीद नहीं कि केंद्र सरकार का कामकाज प्रदेश में जीत का मददगार बनेगा। क्योंकि, 'अच्छे दिन आएंगे' जैसे लोक लुभावन नारे, नोटबंदी और जीएसटी की नाराजी का खामियाजा भी प्रदेश में भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। ऐसे में सरकार बचाने का यही उपाय है कि अच्छी छवि वाले चेहरों को चुनाव के मैदान में उतारा जाए। पार्टी ने भी इस आशंका को भांप लिया है। अतः जिन विधायकों की छवि अच्छी नही है, उनका टिकट कटना लगभग तय है। पिछली बार मोदी-लहर में कई ऐसे लोग जिनकी छवि अच्छी नहीं थी, फिर भी वे विधायक बनने में कामयाब हो गए थे। लेकिन, इस बार ऐसा नहीं होगा। ऐसे विधायकों पर गाज गिरनी तय है, जिनकी छवि दागदार है। इसकी संख्या कितनी होगी, अभी यह कह पाना अभी मुश्किल है। लेकिन, ये दो अंकों से आगे भी बढ़ सकती है। पार्टी आलाकमान के इशारे पर प्रदेश के ऐसे विधायकों की सूची बनना शुरू हो गया है, जिनकी जनता के बीच नकारात्मक छवि बनी है।
मध्यप्रदेश के बारे में संघ को भी जो रिपोर्ट मिली है, उसके मुताबिक सरकार के हालात ठीक नहीं हैं। इसमें समय रहते बड़ा सुधार नहीं किया गया, तो भाजपा के लिए 'मिशन-2018' मुश्किल हो जाएगा। जनता निचले स्तर के भ्रष्टाचार से परेशान है। योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो रहा! घोषणाओं के बाद भी योजनाओं का फायदा वंचितों तक नहीं पहुंच रहा! अफसरों की मनमानी से लोग परेशान हैं। मंत्री और संगठन के पदाधिकारी जनता के प्रति गंभीर नहीं हैं। संघ की स्पष्ट हिदायत है कि लोगों की नाराजी के जो भी कारण हैं, उनपर काबू पाया जाए! फिर भी कोई सुधार नजर नहीं आ रहा। क्योंकि, निरंकुश अफसरशाही और खुद को खुदा समझने वाले मंत्रियों और विधायकों के तेवर अब लोगों को रास नहीं आ रहे! उनमें बदलाव आता है, तो लोग ये समझेंगे कि ये सिर्फ दिखावा और चुनाव जीतने का हथकंडा है! हाल ही में देवास और छिंदवाड़ा जिले के भाजपा विधायकों ने पुलिस थाने में घुसकर जिस तरह की गुंडागर्दी की, ऐसी घटनाओं से बचाव के लिए भाजपा के पास शायद कोई जवाब नहीं होगा!
भाजपा नेताओं के बेलगाम बोल और तेवर अब जनता के निशाने पर हैं। भाजपा के इन नेताओं पर न तो पार्टी कोई कार्रवाई करती है और न सत्ता के भय से प्रशासन ही कार्रवाई करने की हिम्मत जुटा पाता है। अब इस सबका मूल्यांकन आने वाले चुनाव में होगा। कई ऐसे सबूत हैं, जो पार्टी की नीयत और सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े करते हैं! संगठन पदाधिकारियों की वाचालता इसलिए भी ध्यान देने वाली हैं, क्योंकि संघ की समन्वय बैठक में इन नेताओं ने ही भ्रष्टाचार को लेकर अफसरों पर हमला बोला था! किसी भी नजरिए से देखा जाए तो इस बार विधानसभा का चुनाव भाजपा के लिए आसान चुनौती नहीं है। उसे चौथी बार चुनाव जीतने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगाना होगा। जबकि, मुकाबले में खड़ी कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है। कांग्रेस के उम्मीदवारों की छवि पर कोई उंगली भी नहीं उठाई जा सकेगी! ऐसे में छवि बचाने का सबसे बड़ा संकट भाजपा के सामने ही है। लेकिन, अभी भी भाजपा के नेता अपनी छवि को ईमानदारी के चोले में छुपाने की कोशिश से नहीं चूक रहे!
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