Wednesday, September 4, 2019

उमंग सिंगार के दुस्साहस की गर्भनाल कहाँ जुड़ी?

- हेमंत पाल 
  मध्य प्रदेश में धार जिले की धारदार राजनीति हमेशा चौंकाती रही है! न सिर्फ कांग्रेस में, बल्कि भाजपा में भी इस जिले से कई मुखर नेता निकले! लेकिन, किसी ने भी अपनी पार्टी का नुकसान करने और राजनीतिक बदतमीजी का साहस शायद कभी नहीं किया, जो बीते दो दिनों में वनमंत्री उमंग सिंगार किया! दिग्विजय सिंह को निशाना बनाते हुए, उन्होंने कई ऐसे अनर्गल आरोप लगाए, जो कांग्रेस के लिए नया अनुभव ही कहा जाएगा! सीधे शब्दों में कहें, तो उन्होंने विपक्ष से दो कदम आगे निकलकर अपनी ही पार्टी को सरेबाजार धुनक दिया।  
    मध्यप्रदेश में जब से कांग्रेस की सरकार बनी, सत्ता और संगठन में कुछ न कुछ उठापटक जारी है! कभी गोविंद राजपूत कैबिनेट की बैठक में टिप्पणी करते हैं और वो बात रिसकर बाहर निकल आ जाती है! इमरती देवी सरेआम मंच से मुख्यमंत्री पर अपनी बात की अनसुनी करने का आरोप लगाती है। अब इन सबसे आगे बढ़कर उमंग सिंगार ने जो किया, जो सीधे शब्दों में राजनीतिक विद्रोह ही माना जाएगा! पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा को 'रेत सर्वे यात्रा' कहना! शराब माफियाओं की मदद करना और सरकारी काम में दखल देने जैसे आरोप उन्होंने सार्वजनिक तौर लगाए। दरअसल, ये उमंग सिंगार की निजी कुंठा तो शायद नहीं है! वे इतने बड़े और परिपक्व नेता भी नहीं हैं, कि इन बातों की तह तक जा सकें! वे तो बस उस ढोल को बजा रहे हैं, जो उनके गले में पड़ा है! जब इशारा होता है, वे उसे पीट देते हैं!
  कांग्रेस में उनकी राजनीति लम्बे समय तक बुआ जमुना देवी के इर्द-गिर्द ही घूमती रही! लेकिन, वे न तो उनकी तरह कूटनीति जानते हैं और न उन्होंने बुआ की तरह जवाहरलाल नेहरू से आजतक की राजनीति को देखा है! दोनों में समानता बस इतनी है कि दिग्विजय सिंह से जमुना देवी की भी कभी नहीं बनी! दोनों में राजनीतिक मतभेद किसी से छुपे भी नहीं थे! लेकिन, बात कभी इस हद तक नहीं पहुंची कि कांग्रेस की जग-हंसाई हुई हो! किंतु, जमुना देवी के भतीजे होने से उमंग सिंगार को ये रियायत नहीं मिल जाती कि वे कहीं भी अपनी वाचालता दिखाएं! क्योंकि, दिग्विजय सिंह की वरिष्ठता और राजनीतिक अनुभव के सामने उमंग बहुत बौने हैं। जिस तरह की भाषा का उन्होंने इस्तेमाल किया, वो उनकी अनुभवहीनता का प्रदर्शन ही ज्यादा है।  
  उमंग सिंगार के इस रुख की पड़ताल की जाए, तो साफ़ दिखाई देता है कि ये न तो उनके शब्द हैं और न विचार! उनका शब्दकोष और विचारकोष दोनों ही परिपक्व नहीं हैं! वे इस मामले को इतनी गंभीरता से सोच भी नहीं सकते! उन्होंने दो दिनों में जो बयानबाजी की, वो एक ख़ास समय और संदर्भ को ध्यान में रखकर की है! जब प्रदेश कांग्रेस में अध्यक्ष पद को लेकर पैचीदगी बढ़ी, तभी उनके जमीर के ज्वालामुखी में धमाका क्यों हुआ? पार्टी को इस विवाद की गर्भनाल को तलाशना चाहिए, जहाँ से विचार-संचार हो रहा है! संभव है कि ये भविष्य की किसी बड़ी राजनीतिक साजिश का कोई अंश मात्र हो! उमंग सिंगार को सबसे ज्यादा आपत्ति दिग्विजय सिंह के कुछ मंत्रियों को भेजे गए पत्र को लेकर है! स्वाभाविक है कि उनका जमीर इस तरह का कथित दबाव झेलने का आदी न हो! लेकिन, इसकी मुखालफत इस तरह जाए, ये गले उतरने वाली बात नहीं है। लेकिन, यदि पार्टी ने प्रदेश के एक मंत्री के इस दुस्साहस को नजरअंदाज किया तो आगे और भी नेता इसी राह पर चल पड़ेंगे और इसका नुकसान सरकार को झेलना पड़ेगा! अब सारी निगाहें कांग्रेस आलाकमान पर हैं कि उन्होंने इस अनुशासनहीनता को किस नजर से देखा!
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