Sunday, September 8, 2019

चांद चुरा के लाया हूँ!

- हेमंत पाल

  चाँद की सतह फिलहाल हमारे लिए अछूती रह गई हो! लेकिन, हिन्दी फ़िल्मों ने हमेशा ही चांद के जरिए दर्शकों के दिल के तारों को छेड़ने का प्रयास कर फिल्माकाश की सतह पर उतरने में कामयाबी हांसिल की। आसमान में चांद की जितनी भी कलाएँ होती है, फिल्मकारों ने भी उन तमाम कलाओं को समेटकर सेल्युलाईड पर उतारने का प्रयास भी किया। दूज के चांद से लगाकर पूनम के चांद को पृष्ठभूमि में रखकर हिन्दी फ़िल्मों में हमेशा दर्शकों को गुदगुदाया ही है। धरती से लाखों मील दूर मौजूद चांद ने भी फिल्मकारों के लिए प्रस्तुति के कई दिलचस्प अवसर पैदा किए हैं। उन्होंने कभी फिल्मों के शीर्षक में चांद को शामिल किया तो कभी गीतों में चाँद को शामिल कर नायक-नायिकाओं के सुर मिलाकर दर्शकों के गुनगुनाने के लिए मजबूर किया है। चांदनी रात में बांहों में बाहें डाले प्रेमी युगल को छेड़खानी करते दिखाकर उन्होंने बॉक्स ऑफिस के साथ परदे पर सिक्कों की बरसात कर चांद ने हमेशा फिल्मकारों का साथ निभाया है।
  चाँद शीर्षक से बनने वाली फिल्मों में चाँद, दूज का चाँद, चौदहवीं का चाँद, चाँद मेरे आजा, चोर और चाँद, चाँद का टुकड़ा, ईद का चाँद, चांदनी, ट्रिपल टू मून, पूनम, पूनम की रात सहित दर्जनों फिल्में बनी और इनमें ज्यादातर फ़िल्में सफल भी हुई! हिन्दी फिल्मों में चांद पर जितने गीत बने हैं, दिल को छोड़कर अन्य किसी विषय पर उतने गीत नहीं बने! धरती से चांद जितना सुंदर दिखाई देता है, उतने ही सुंदर गीत हिन्दी फिल्मों के गीत कारोबार ने कलम बंद किए हैं। माहौल चाहे खुशी का हो या गम का, मिलन का हो या जुदाई का, हिंदी फिल्मों में चाँद को प्रतीक या गवाह बनाकर हमेशा प्रयास किए गए। उठा धीरे-धीरे वो चांद प्यारा प्यारा, आजा सनम मधुर चांदनी मे हम, वो चांद जहाँ वो जाए, चाँद सी महबूबा हो मेरी, चौदहवीं का चाँद हो, खोया खोया चाँद, चाँद मेरे आजा, चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो, धीरे धीरे चल चाँद गगन में, चाँद चुराकर के लाया हूँ, चांद फिर निकला मगर तुम न आए और ये चाँद सा रोशन चेहरा समेत सैकड़ों सुरीले गीत चाँद पर लिखे गए हैं। चाँद की हकीकत जानने के बाद भी इनमे कमी नहीं आई!
  यूं तो हिन्दी सिनेमा के सितारों की अलग-अलग छवि रही है! लेकिन, चांद ने इन अलग-अलग छवियों वाले छैल-छबिलों को अपने साथ जोड़ने का करिश्मा करके दिखाया। यही कारण है कि किसी एक फिल्म में राजकपूर और नरगिस की जोड़ी 'उठा धीरे धीरे वो चांद प्यारा प्यारा' गीत का राग छेड़ती है, तो दूसरी फिल्म में रोमांटिक देव आनंद माला सिंहा की जोड़ी 'धीरे धीरे चल चांद गगन' गुनगुनाते दिखाई पड़ती है तो ट्रैजेडी किंग भी चांद को देखकर रूमानी होकर वैजयंती माला से 'तुझे चांद के बहाने देखूँ' कहे बिना नहीं रहते। विनोद खन्ना और रिषि कपूर फिल्म चाँदनी में 'मेरी चांदनी कहते हुए श्रीदेवी के पीछे दौड लगाने लगते हैं। 1957 में बनी 'देवता' में भी नायिका 'ए चाँद कल तू आना, उनको भी साथ लाना उनके बगैर प्यार आज बेक़रार है' गुनगुनाते हुए दिखाई देती है। इसे संयोग ही माना जाना चाहिए कि 1978 में फिर बनी 'देवता' में भी संजीव कपूर और शबाना आजमी 'चाँद चुरा के लाया हूँ, चल बैठे चर्च के पीछे' गाते नजर आते हैं। यह चांद का ही चमत्कार है कि फिल्मों में अक्सर गानों से दूर रहने वाले राजकुमार कभी 'चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो' और 'कभी चांद आंहे भरेगा' गाने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
  यह चांद की लोकप्रियता का ही कमाल था, कि गुजरे जमाने के कुछ फिल्मी कलाकारों में चांद उस्मानी, चंद्रशेखर और चंदमोहन जैसे नाम शामिल हुए। आज की हकीकत भले ही यह हो कि चांद की सतह चूमने की चाहत में चंद्रयान उसकी सतह पर न उतर पाया हो! लेकिन, हमारे फिल्मकारों ने धरती का चक्कर लगाने वाले चांद के बेशुमार चक्कर लगाए। संभावना है कि यह सिलसिला आगे भी यूँ अनवरत चलता रहेगा। क्योंकि, चाँद ऐसे ही चमकता रहेगा और प्रेमी दिलों में भी उसके बहाने प्रेम भी उमड़ेगा!
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