Tuesday, September 10, 2019

मतभेदों की चौड़ी होती खाई में समाती मध्यप्रदेश कांग्रेस!

- हेमंत पाल

आठ महीने पहले जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, तब लगा था कि पार्टी के तीनों क्षत्रप सामंजस्य से पाँच साल सरकार चला लेंगे! शुरू में ऐसा लगा भी, पर धीरे-धीरे सामंजस्य का शिखर दरकने लगा! क्षत्रप खुद तो दिल की बातों को जुबान पर नहीं लाए, पर उनके समर्थकों ने मोर्चा संभाल लिया! कमलनाथ सरकार पर दिग्विजय सिंह के बहाने हमले होने लगे! पहली बार मंत्री बने नेता भी इतने मुखर हो गए कि ताल ठोंककर दिग्विजय सिंह के अनुभव को चुनौती देने लगे! बात इतनी बढ़ी कि बंद कमरों की बातचीत निकलकर सड़क पर आ गई! गुटबाजी की गर्मी इतनी बढ़ी कि मनभेदों की खाई मतभेदों में बदल गई! ये पार्टी में अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा है! लेकिन, डगमगाते समर्थन पर टिकी सरकार के लिए ये सबसे खतरनाक स्थिति है! उधर, भाजपा इस आपसी जंग का फ़ायदा उठाने के लिए सत्ता के छींके के नीचे ताक लगाकर बैठी है! ये हालात सरकार के भविष्य के लिए अच्छे नहीं कहे जा सकते!   
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   डेढ़ दशक बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस को मध्यप्रदेश में सरकार बनाए अभी सालभर भी पूरा नहीं हुआ और पार्टी की कलह सामने आ गई! विधानसभा चुनाव में एकसाथ खड़े होकर भाजपा से मुकाबला करने वाले नेताओं के बीच खींचतान इतनी ज्यादा बढ़ गई कि पार्टी की जमीन दरकने लगी। सत्ता के जिस शिखर कलश को तीनों नेताओं ने थाम रखा था, वो पकड़ इतनी ढीली हो गई कि कभी भी बड़ी मुश्किल सामने आ सकती है! पार्टी के छोटे-छोटे नेताओं की जुबान इतनी बाहर आ गई, कि वे क्षत्रपों को शह देने की कोशिश करने लगे! दरअसल, ये कोई नई कहानी नहीं थी! जो जुबानी तलवारबाजी परदे की आड़ में जंग की तरह चल रही थी, वो सिपाही अब लड़ते-लड़ते सड़क पर आ गए! पूरी कांग्रेस आज तीन सेनापतियों के नेतृत्व में बंटकर द्वंद युद्ध लड़ रही है! ये युद्ध भी प्रतिद्वंदियों के नहीं, बल्कि अपनों के खिलाफ है। फिलहाल युद्ध विराम जरूर हो गया, पर मामला निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा! कौन हारा, कौन जीता अभी ये तय नहीं हुआ है! 
    प्रदेश कांग्रेस का अगला अध्यक्ष कौन बनेगा, इस मुद्दे पर जो खींचतान शुरू हुई, उसकी धारा बदल गई! संभावित अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को जब संदेह हुआ कि उनकी राह में रोड़े अटकाए जा रहे हैं, तो वे बिफरने लगे! सिंधिया खेमे के मंत्री उमंग सिंगार ने जिस तरह दिग्विजय सिंह पर हमला बोला, वो उनकी निजी नाराजी नहीं बल्कि सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था! सिंगार तीन दिन तक अलग-अलग मोर्चों पर बेलगाम बोलते रहे! वे न तो इतने मुखर हैं और न चतुर कि पार्टी अनुशासन की सीमा लांघकर पार्टी के बड़े नेता पर शब्दबाण चलाएं! इसलिए तय है कि उनकी इस अनुशासनहीनता के पीछे किसी की शह जरूर थी! किसकी थी, ये बताने की भी जरुरत नहीं! कांग्रेस राजनीति में उमंग सिंगार की पहचान पूर्व उपमुख्यमंत्री जमुना देवी के भतीजे से ज्यादा नहीं है! उनकी बुआ जमुना देवी ने भी लम्बे समय तक दिग्विजय सिंह के खिलाफ मोर्चा संभाले रखा, यही कारण है कि रणनीति के तहत उन्हें ही इस मोर्चे पर लगाया गया! लेकिन, बात बनने बजाए बिगड़ गई!     
   कांग्रेस की गुटबाजी की इस आग में सबसे ज्यादा नुकसान सरकार की छवि को होता नजर आ रहा है! इसलिए कि जिन नेताओं के मुँह से आवाज नहीं निकलती थी, वे भी बोलने से बाज नहीं आए! इस आग में सबसे ज्यादा हाथ सैंके सरकार को समर्थन देने वाले बाहरी विधायकों ने! समाजवादी पार्टी के दो विधायकों ने भी मौका नहीं छोड़ा और सरकार पर टिप्पणी कर दी! बुरहानपुर से जीते कांग्रेस के बागी और अब समर्थक शेरा ने तो खुद को अध्यक्ष बनाने तक का विकल्प सामने रख दिया। अंततः सरकार को इस संघर्ष से बचाने के लिए खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ को ही आगे आना पड़ा, तब मामला शांत हुआ! अब सारा विवाद पार्टी हाईकमान के हवाले कर दिया गया! लेकिन, तय है कि सारी कवायद के बाद भी होना कुछ नहीं है! इसलिए कि पार्टी अभी उस स्थिति में नहीं है कि किसी को सजा देने जैसा फैसला कर सके! यानी न तो उमंग सिंगार के जुबानी उत्पात पर लगाम लगेगी और न मनभेदों का साया छंटेगा! क्योंकि, अभी युद्ध समाप्त नहीं हुआ, सिर्फ युद्ध विराम हुआ है! 
     उधर, मध्य प्रदेश में सत्ता खोने से बिफरी भाजपा भी इस ताक में है, कि उसे कब झपट्टा मारने का मौका मिले! ऐसे में उसके दो विधायकों का पाला बदल उसकी बड़ी हार थी! अब, जबकि कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा, भाजपा ने नए आंदोलन की तैयारी की है! अभी तक बतौर विपक्ष भाजपा ने जो भी आंदोलन किए वे स्थानीय स्तर के नेताओं जिम्मे हुए! पहली बार विपक्ष बड़ा हंगामा करने जा रही है!  प्रदेश सरकार की नीतियों के विरोध में 11 सितंबर को 'घंटानाद' आंदोलन किया जा रहा है। इस आंदोलन की जिम्मेदारी जिला स्तर पर बड़े भाजपा नेताओं को सौंपी गई है। भाजपा का कहना है कि प्रदेश सरकार को जनता के हितों की चिंता नहीं है! राज्य में ट्रांसफर, पोस्टिंग का धंधा चल रहा है! कांग्रेस ने चुनाव में किए वादों की भी सुध नहीं ली! कांग्रेस सरकार को नींद से जगाने के लिए भाजपा 11 सितम्बर को प्रदेश में ‘घंटानाद’ आंदोलन करने जा रही है! पार्टी कार्यकर्ता इस आंदोलन में घंटा और मंजीरे लेकर हर जिले के कलेक्टोरेट का घेराव करेंगे! जिला स्तर पर पार्टी के वरिष्ठ नेता इस आंदोलन का नेतृत्व करेंगे, ताकि सरकार की नींद खुले! भाजपा ने पिछले दिनों कई आंदोलन किए, जो स्थानीय रहे, मगर 11 सितंबर को भाजपा पहला बड़ा आंदोलन करने जा रही है। इस आंदोलन का मकसद भाजपा को अपना शक्ति प्रदर्शन भी करना है।
  आश्चर्य है कि कांग्रेस के पास भाजपा के इस आंदोलन का कोई ठोस जवाब नहीं है! संगठन के स्तर पर कांग्रेस की कमजोरी कई बार सामने आ चुकी है। कई जिलों में तो कांग्रेस के पास पूरी कार्यकारिणी भी नहीं है! जबकि, भाजपा ने विधानसभा चुनाव हारकर भी अपना आत्मविश्वास नहीं खोया! ऐसे हालात में कांग्रेस कैसे मुकाबला करेगी, कहा नहीं जा सकता! फिलहाल तो सारे कांग्रेसी नेता सत्ता की शतरंज पर अफसरों को मोहरों की तरह ज़माने में व्यस्त हैं। जो ये नहीं कर पा रहे, वो अंदर ही अंदर अपनी ही पार्टी को शह देने की साजिश रचने का भी मौका नहीं छोड़ रहे! क्योंकि, प्रदेश के हर जिले में पार्टी के तीनों क्षत्रपों की सेना है, जो सिर्फ अपने सेनापति के प्रति समर्पित है। पार्टी में ऊपर से नीचे तक ये फाड़ है, जो सभी को साफ़ नजर आ रही! जब तक मतभेदों की ये खाई नहीं भरेगी, कांग्रेस की संगठनात्मक ताकत का सही इस्तेमाल नहीं होगा। इतिहास गवाह है कि बड़े-बड़े राज सिंहासन गृह कलह से ही धराशाई हुए हैं! यदि ये कलह जल्दी सुलह में नहीं बदली तो भाजपा के 'घंटानाद' के बगैर भी कांग्रेस की जमीन दरक सकती है!
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