Thursday, October 17, 2019

गोपाल भार्गव के चुनावी भाषण के निहितार्थ समझिए!


झाबुआ में शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री बनने की बात कही, इंदौर में पलटे  

- हेमंत पाल

 भाजपा के कुछ नेताओं ने कमलनाथ सरकार गिराने का शिगूफा छोड़कर ख़बरों में छाए रहने का अचूक फार्मूला ढूंढ लिया है! वे जानते हैं कि राजनीति के मंच से बोली गई, ये लाइनों के सुर्खियां बनने में देर नहीं लगती! झाबुआ के विधानसभा उपचुनाव के एक चुनावी मंच से प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा दिवाली के बाद शिवराज चौहान प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे! ऐसे राजनीतिक शिगूफे छोड़ना गलत नहीं है! पर, झाबुआ से इंदौर आते ही गोपाल भार्गव ने पलटा मार दिया! बोले कि चुनाव सभाओं में ऐसा बोलना पड़ता है! ये कोई घोषणा नहीं, चुनावी भाषण था! आशय यह कि भाजपा की न तो कांग्रेस सरकार गिराने की कोई योजना है और न शिवराज सिंह के फिर मुख्यमंत्री बनने की! 
  भाजपा नेता गोपाल भार्गव के लिए ऐसे बयान देना नई बात नहीं है! ये पहली बार नहीं है, जब गोपाल भार्गव ने महज गाल बजाने वाली बयानबाजी की है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को मध्यप्रदेश में ज्यादा सीटें मिलने के बाद भी उन्होंने राज्यपाल से विधानसभा का सत्र जल्द से जल्द बुलाने की मांग की थी, ताकि मोदी लहर में फ्लोर टेस्ट करवाया जा सके! बताते हैं कि पार्टी ने इस मामले को भी गंभीरता से लिया था! वे चुनाव प्रचार में जब पहली बार झाबुआ आए थे, तब भी कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया की जीत को पाकिस्तान की जीत बता आए थे! इस पर झाबुआ कोतवाली में गोपाल भार्गव पर एफआईआर दर्ज की गई थी। 
  लेकिन, इस बार उन्होंने सरकार के गिरने और शिवराज के मुख्यमंत्री बनने की जो बात झाबुआ में बोली, उससे वे कुछ घंटे बाद ही बदल गए! ध्यान देने वाली बात कि जब गोपाल भार्गव ने झाबुआ में शिवराज सिंह के दिवाली बाद राज्याभिषेक की घोषणा की, तब खुद शिवराज सिंह भी मंच पर मौजूद थे। इससे एक बात तो साफ़ हो गई कि बोलने के मामले में गोपाल भार्गव की गंभीरता संदिग्ध है। यदि उन्होंने शिवराज सिंह के दिवाली बाद मुख्यमंत्री बनने की संभावना बताई थी, तो उस पर कायम रहकर तार्किक कारण भी बताना थे। ये आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि शायद गोपाल भार्गव के झाबुआ में दिए इस बयान को पार्टी के दिल्ली दरबार ने ठीक नहीं माना! यदि ऐसा कुछ होता भी है, तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा ये फैसला गोपाल भार्गव तो नहीं करेंगे! भार्गव के बयान के बाद शिवराज सिंह चौहान ने खुद ट्वीट करके कहा कि 'मुझे किसी पद की आकांक्षा नहीं है। मेरा एक ही पद है, जनता के दिलों में रहना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वैभवशाली, गौरवशाली भारत के निर्माण के अभियान में पूरी ताकत के साथ जुटे रहना।'
   समझा जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष का ये उत्साह मंगलवार को राजधानी में बदले राजनीतिक माहौल से प्रेरित था। भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा के साथ प्रदेश भाजपा कार्यालय पहुँचे और कहा कि मैं भाजपा में था, भाजपा में हूँ और भाजपा में ही रहूंगा। ये वही विधायक हैं जो कुछ महीने पहले विधानसभा में मत विभाजन के समय कांग्रेस के पाले में चले गए थे! इसके साथ ही प्रदेश में सरकार बदलने की बात फिर से उठकर सामने आ गई। ये सारा मामला विधानसभा में नंबर गेम से जुड़ा है। 230 विधायकों की विधानसभा में किसी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है। बहुमत का जादुई आंकड़ा 116 सदस्य है, जबकि कांग्रेस के पास 114 विधायक है। बहुमत से दो कम। इसलिए कांग्रेस ने बसपा, सपा और निर्दलीय विधायकों का समर्थन लेकर अपनी ताकत को 121 तक बढ़ाया है।
  विधानसभा में 4 निर्दलीय विधायक है, 2 विधायक बसपा से है और एक विधायक समाजवादी पार्टी से! जबकि, भाजपा के पास 109 विधायक थे, जो झाबुआ विधायक गुमानसिंह डामोर के सांसद बनने के बाद घटकर 108 रह गए! कांग्रेस की कोशिश है कि झाबुआ जीतकर विधायकों की संख्या 115 कर ली जाए ताकि सुखद स्थिति बन जाए! गोपाल भार्गव ने ऐसे ही कुछ गणित से मध्यप्रदेश में फिर भाजपा सरकार बनने का फार्मूला बना लिया और झाबुआ में उसे बखान दिया! लेकिन, बाद में उनका पलटना उनकी राजनीतिक उच्श्रृंखलता की निशानी है।
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