Tuesday, October 1, 2019

अनुशासन की बागड़ लांघते कांग्रेस के वाचाल नेता!

- हेमंत पाल 

  जब भी कोई राज्य सरकार बहुमत के किनारे पर होती है, सबसे ज्यादा अनुशासन उसी पार्टी के बड़े नेता और कार्यकर्ता ही तोड़ते हैं! क्योंकि, उन्हें इस बात का विश्वास होता है कि उनकी अनुशासनहीनता पर कोई कान नहीं धरेगा! यदि ऐसा हुआ भी तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई तो हो नहीं सकेगी! मध्यप्रदेश में तो आजकल कुछ बड़े नेता ही अनुशासन की बागड़ लांघने की कोशिश में लगे हैं। ख़ास बात ये है कि जिस कांग्रेस के एकजुट होने के दावे किए जा रहे थे, उसे खंडित होने में ज्यादा वक़्त नहीं लगा! अब तो पार्टी के साथ सरकार में भी तीन फांक साफ़ नजर आने लगी है! कई मंत्री तो अपना शक्ति प्रदर्शन करने का कोई मौका भी नहीं चूक रहे! उलजुलूल बयानबाजी से अखबार रंगे जा रहे हैं और चैनल पर बहस छिड़ी है! ध्यान देने वाली बात ये कि अनुशासनहीनता करने वालों पर कोई कार्रवाई भी नहीं हो रही! उमंग सिंगार के बयान लेकर इतने हंगामे के बाद भी उनका बाल भी बांका नहीं हुआ! ये सब सरकार के स्थायित्व के लिया अच्छा संकेत नहीं है!            
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   राजनीति में अनुशासन का अपना अलग ही महत्व होता है! इसका कोई निर्धारित मापदंड नहीं होता! ये पार्टी के साथ नेताओं और कार्यकर्ताओं में भी नजर आता है! लेकिन, कांग्रेस में अनुशासन की धज्जियाँ उड़ती दिख रही है! बड़े नेताओं की आपसी गुटबाजी के कारण उनके समर्थक कार्यकर्ताओं में तो ये हर तरफ दिखाई दे रहा है, पर अब बड़े नेता और मंत्री भी अनुशासन की सीमा लांघ रहे हैं! कब, कहाँ क्या बोलना है, इसका भी ध्यान नहीं रखा जा रहा! मुख्यमंत्री के सामने कोई मंत्री सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करे, अमूमन ऐसा होता नहीं है! लेकिन, कमलनाथ-सरकार में ऐसे कमाल भी हो रहे हैं। भोपाल में मेट्रो प्रोजेक्ट के शिलान्यास कार्यक्रम में भी कुछ ऐसा ही घटा! मुख्यमंत्री कमलनाथ की घोषणा का भोपाल से विधायक आरिफ मसूद ने मंच से ही विरोध कर दिया। उन्होंने अपनी बात कुछ इस अंदाज में कही थी कि मुख्यमंत्री ने सुनकर असहज महसूस किया और विधायक की तरफ देखने लगे। भोपाल मेट्रो के शिलान्यास कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि भोपाल की ये मेट्रो रेल सेवा 'भोज मेट्रो' के नाम से जानी जाएगी। जब मुख्यमंत्री का संबोधन खत्म हुआ, तो धन्यवाद भाषण के लिए मंच पर आए कांग्रेस विधायक ने मुख्यमंत्री की ओर देखते हुए कहा 'दादा भाई राजा भोज के नाम से कई काम हो चुके हैं और हो रहे हैं। इसलिए मेट्रो प्रोजेक्ट का नाम भोपाल मेट्रो ही रहने दिया जाए।' इसे विचारों की स्वतंत्रता तो नहीं, साफ़-साफ़ अनुशासनहीनता ही माना जाएगा! क्योंकि, वे अपनी बात बाद में भी कर सकते थे, पर उन्होंने सार्वजनिक मंच का उपयोग करके बता दिया कि उन्हें मेट्रो का नामकरण मंजूर नहीं है! 
   सरकार के कुछ मंत्री ऐसे हैं, जिनकी वाचालता (या नासमझी) पार्टी के साथ सरकार को भी मुश्किल में डाल रही है। ऐसी ही एक मंत्री हैं इमरती देवी जो हमेशा ही अपने बयानों से सुर्ख़ियों में बनी रहती है। मामला इस मंत्री के विधानसभा क्षेत्र डबरा का ही है! वे यहां के अस्पताल के हालात का जायजा ले रही थी! इस बीच कुछ लोगों ने अस्पताल की अव्यवस्‍था और पदस्थ डॉक्टर की लापरवाही का मुद्दा उठाकर उसके ट्रांसफर की मांग की! भीड़ के सामने तो मंत्राणी शांत रही, लेकिन अस्पताल से बाहर आकर उनका जमीर जाग उठा! वे सच बोल गईं 'जे कह रहा ट्रांसफर करा दो, अरे ट्रांसफर कराबे में पइसा लगता है, इससे अच्छा तो सस्पेंड करा दूंगी!' इस दौरान उनके साथ चल रहे कुछ लोगों ने उनके इस बयान का वीडियो बना लिया। बाद में ये वीडियो सार्वजनिक हो गया। यदि बात सुनी-सुनाई होती तो शायद उसे नकार दिया जाता और आरोप मीडिया पर लगता कि बयान को तोड़-मरोड़कर दिखाया गया है! लेकिन, जो बोला गया, वो सबके सामने था!
  महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी का वीडियो सामने आने के बाद कांग्रेस बैकफुट पर आ गई! वहीं, भाजपा को ये आरोप लगाने का मौका मिल गया कि सरकार ट्रांसफर उद्योग चला रही है! ये बात पहले भी कही जाती रही है, पर भाजपा को इस बहाने आरोप दोहराने का मौका मिल गया। ग्वालियर से भाजपा सांसद विवेक शेजवलकर ने तो इस बयान पर कांग्रेस को जमकर घेरा! उनका कहना था कि अब भाजपा कुछ नहीं कह रही! कांग्रेस सरकार के मंत्री ही अपनी पोल खोल रहे हैं। दरअसल, इमरती देवी की सहजता ने कांग्रेस के ट्रांसफर उद्योग की बखिया उधेड़ दी! ज्योतिरादित्य सिंधिया की समर्थक इमरती देवी पहले भी बेबाक बयानों के लिए चर्चित रही हैं! प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की लॉबिंग के समय इमरती देवी ने साफ़-साफ़ सिंधिया के पक्ष में बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहिए! हम 'महाराज' के अलावा किसी को मंजूर नहीं करेंगे! हम पूरे दम से लगे हैं, बस महाराज पीछे न हटें! ये वही इमरती देवी हैं, जो अपनी शपथ तक पूरी नहीं पढ़ सकी थीं।
   सरकार के उच्च शिक्षा एवं खेल मंत्री जीतू पटवारी भी हमेशा अपनी बेबाक बयानों को लेकर चर्चा में बने रहते हैं। वे जब विपक्ष में थे, तब भी कहीं, कुछ भी बोलते रहते थे। हाल ही में अपने विधानसभा क्षेत्र राऊ के एक गांव में एक कार्यक्रम में जीतू पटवारी ने मंच से पटवारियों के खिलाफ बयान दिया। उन्होंने कलेक्टर  संबोधित करते हुए कहा कि कलेक्टर साहब, आपके सौ फीसदी पटवारी रिश्वत लेते हैं. इन पर आप लगाम लगाइए! उन्होंने रिश्वत लेने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी! साथ ही लोगों से भी अपील की कि वे किसी को खासकर पटवारियों को रिश्वत न दें! मंत्री का कहना था कि हाथ जोड़ने और अनुरोध करने पर भी पटवारी काम नहीं करते! रिश्वत लेना और देना दोनों अपराध हैं! कोई मांगे तो आप इसे मना करें और काम करवाएं! यदि आवेदन के बाद भी काम नहीं होता है, तो आप मुझे बताएं। गरीब महिलाएं पेंशन के लिए परेशान हो रही हैं। जब वे कर्मचारियों से मिलने जाती हैं, और कहती हैं कि पांच-पांच बार फॉर्म भर दिए हैं, लेकिन कोई देखने वाला नहीं हैं। लेकिन, अब शिकायतों का निराकरण नहीं हुआ तो कार्रवाई होगी। दरअसल, जीतू पटवारी की भाषा चेतावनी वाली थी।
 जीतू पटवारी हमेशा ही पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ट्‍वीट पर जवाब को लेकर भी मीडिया में छाए रहे हैं! जबकि, ये उनका दायित्व नहीं है! फिर भी वे पार्टी प्रवक्ता की तरह हर मामले में सार्वजनिक मंचों और सोशल मीडिया पर अपनी बात करते रहते हैं! शिवराज सिंह पर उनका एक रीट्वीट था 'आप भाजपा में अपनी साख खत्म होने के डर से उसे बचाने के लिए मोदी-शाह की पूजा तो क्या, उनके पैर धोकर उसका पानी पियो, हमें कोई आपत्ति नहीं!' इससे पहले उन्होंने शिवराज सिंह के 'टाइगर अभी जिंदा है' वाले बयान पर टिप्पणी की थी 'शिवराज सिंहजी आप एक अच्छे इंसान हो, बढ़िया सीधे, सज्जन, सरल, दुबले पतले व्यक्ति हो! आप दूसरी योनि में क्यो जाना चाहते हो! जरा इसका उत्तर तो दे दो! अच्छे इंसान से जानवर की योनि प्राप्त करना चाहते हो?' पटवारी ने एक बार ये भी कहा था 'शिवराजजी कहते हैं कि मैं खम्बे पर चढ़कर तार जोड़ दूंगा, मैं उनको कहना चाहता हूँ खम्बे पर चढ़ने की गलती मत करना! ये कमलनाथजी का खम्बा है ओर इसमें तार भी है ओर करंट भी है, चिपक जाओगे फिर मत कहना! विपक्ष पर हमले तक तो ऐसी बयानबाजी ठीक लगती है! लेकिन, राजनीतिक मर्यादा का ध्यान रखा जाना भी जरुरी है! पर, आश्चर्य इस बात का कि पार्टी स्तर पर कभी ये बात सामने नहीं आई कि किसी सीनियर नेता ने समझाइश दी हो!
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