- हेमंत पाल
त्यौहार के नजदीक आते ही प्रशासन की सबसे ज्यादा सख्ती दिखाई देती है, नकली मावे और मिठाइयों पर! ऐसा साल में दो या तीन बार ही होता है! लेकिन, त्यौहार के बाद सारी सख्ती नदारद हो जाती है! सरकार किसी भी पार्टी की हो, ये पाखंड बरसों से हो रहा है और आगे भी होता रहेगा! पूरे साल लोग मिलावटी खाद्य पदार्थ खाते रहें, प्रशासन चिंता से निश्चिन्त रहता है! लेकिन, त्यौहार आते ही धरपकड़ का माहौल बन जाता है! पहली बार कमलनाथ सरकार ने मिलावट से मुक्ति को अपने एजेंडे में शामिल किया है। मिलावट की सूचना देने वाले को ईनाम देने का एलान भी किया गया! थोड़ी सख्ती भी नजर आई, पर उतनी नहीं जितनी सिंगल यूज़ प्लास्टिक और पॉलीथिन की थैलियां पकड़ने के लिए की जाती है! इंदौर जैसे बड़े शहर में मिलावटी सामान पकड़ने का ढोंग ज्यादा दिखाई देता है, वास्तव में मिलावट पर सख्ती नहीं हो रही, खानापूर्ति ही ज्यादा हो रही है!
000
घरों के बुजुर्ग अकसर अपने वक़्त के शुद्ध खाने का जिक्र करते रहते हैं! कीमत तो समय के साथ बदलती रहती है, पर शुद्धता को लेकर उनका आकलन सही होता है कि आज हम जो खा रहे हैं, सब अशुद्ध है। ये बात सच भी है। उपयोग की हर चीज में आज मिलावट है। पानी से लगाकर दूध, फल, सब्जी, मिठाई और मसालों तक में किसी न किसी रूप मिलावट है। मुद्दे की बात ये कि किसी भी सरकार ने जीवन से जुड़े इस मसले को गंभीरता से नहीं लिया! सरकार के खाद्य विभाग ने कभी इसे अपनी प्राथमिकता की सूची में नहीं रखा! इसलिए कि उन्हें ऐसे मामलों की अनदेखी करने की कीमत मिलती रहती है! कमलनाथ सरकार ने मिलावट को लेकर थोड़ी सख्ती की और इसके लिए कुछ नियम-कायदे भी बदले! लेकिन, सरकारी स्तर पर होने वाली लापरवाही पर फिर भी लगाम नहीं लगी! नहीं लगा कि मिलावट पकड़ने वालों ने किसी बड़ी मछली पर नकेल डाली हो! छोटे दुकानदार और हलवाइयों की पकड़-धकड़ ही ज्यादा नजर आ रही है! इसलिए कि बड़ी मछली में जाल डालने पर उनके जाल ही खींचकर ले जाने खतरा रहता है! सरकार ने मिलावट की सूचना देने वाले को 25 हज़ार तक का इनाम की घोषणा की गई! लेकिन, अभी ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि किसी ने सूचना दी हो या उसे इनाम मिला हो!
हाल ही में मिलावटी और नकली दूध को लेकर बड़े खुलासे हुए! आंकड़ा सामने आया कि प्रदेश में करीब 48% फीसदी दूध शुद्ध नहीं है! यहाँ तक कि शुद्धता का दावा करने वाले पैकेट वाले दूध में भी अशुद्धि मिली! लेकिन, न तो कहीं कड़ाई दिखाई देती है और न लगता है कि किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई! दूध में डिटर्जेंट पाउडर, यूरिया, स्किम्ड मिल्क पाउडर, कास्टिक सोडा, ग्लूकोज, रिफाइंड तेल, नमक और स्टार्च की मिलावट की जाती है! इससे यह लोगों के सेवन योग्य नहीं रह जाता। भिंड और मुरैना क्षेत्र तो नकली मावे और दूध के गढ़ ही बन गए! यही से त्यौहारी मौसम में नकली मावे की खेप पूरे प्रदेश में भेजी जाती है! लेकिन, जो मावा और उनसे बनी मिठाइयाँ पकड़ी जाती है, वो असल कारोबार का 5% भी नहीं है। इंदौर जैसे बड़े शहर में जहाँ खाने-पीने के शौकीन लोग ज्यादा हैं, नकली और मिलावटी खाद्यान्न बिकता है! भी प्रशासन और संबंधित विभागों की नाक के नीचे! मामला सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है! केमिकल से पके रंगे-पुते फल, गंदे पानी में उपजाई जाने वाली सब्जियाँ भी गंभीर मुद्दा है! लेकिन, प्रशासन के अफसरों और निगमकर्मियों को पॉलीथिन की थैलियां पकड़ने से ही फुर्सत नहीं!
इस गौरखधंधे को रोकने के लिए सरकारी स्तर पर कभी ठोस प्रयास नहीं हुए। यही कारण है कि यह मर्ज गंभीर बीमारी बन चुका है! खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने के लिए कड़े कदम तो उठाए रहे हैं! लेकिन, उस पर अमल कितना हो रहा है, ये बड़ी बात है! मुख्यमंत्री कमलनाथ के विचार और प्रयास दोनों नेक हैं। लेकिन, जब तक लोगों का प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग नहीं मिलेगा, तब तक इस धीमे जहर से पूरी तरह मुक्ति पाना संभव नहीं है। खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोकने के लिए कानून है, जिसे 'फूड एंड ड्रग' कहा जाता है। शहरों में इसका दायित्व नगरीय निकायों के पास है और गाँव में फूड इंस्पेक्टर यह काम करते हैं। लेकिन, इस कानून का क्रियान्वन इतना लचर है कि बहुत ही कम मामलों में मिलावट करने वालों को सजा मिल पाती है। दरअसल, ये छोटे दुकानकारों और होटल व्यवसायियों को परेशान करने का हथियार बन गया! यदि सरकार की मंशा ईमानदारी से मिलावट रोकने की है, तो सबसे पहले संबंधित विभाग पर नकेल डालना होगी। इन काली भेड़ों पहचान कर उन्हें रेवड़ से बाहर करना होगा, तभी बात बनेगी! मिलावटी खाद्यान्न पकड़ने की ख़बरें अकसर जोरशोर से प्रचारित की जाती हैं! लेकिन, इन बातों से तो बात नहीं बनेगी! जब तक इन्हें सजा नहीं मिलेगी, मिलावटखोर काबू में नहीं आएंगे! मिलावट रोकने के लिए राज्य सरकार के संबंधित कानूनों में संशोधन की प्रक्रिया शुरू की गई है! कहा जा रहा है कि नए प्रावधानों को और सख्त बनाए जाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन, ये कब होगा, फिलहाल इसका इंतजार है!
महाराष्ट्र सरकार ने तो खाद्य पदार्थों में मिलावट को गैर-जमानती अपराध का कानून बना दिया। दोषी पाए जाए पर इसमें उम्रकैद तक की सजा हो सकेगी। वहाँ की सरकार ने 'खाद्य मिलावट रोधक (महाराष्ट्र संशोधन) विधेयक' पारित करने अपनी मंशा को स्पष्ट कर दिया। ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश में भी करना होगा, जिससे खाद्य सामग्री में मिलावट करने वालों को कड़ी सजा मिल सके। मिलावट रोकने के लिए कानून केंद्र सरकार बनाती है, लेकिन उसका पालन राज्य की एजेंसियों को करवाना होता है। खाद्य विभाग, नगर निगम, पुलिस, एफएसएसएआई के जिम्मे इस कानून के अनुपालन की जिम्मेदारी होती है। लेकिन, इन महकमों में इतना भ्रष्टाचार है, कि अधिकारी कानून का डर दिखाकर वसूली करते हैं। वे सैंपल तो इकट्ठा कर लेते हैं, पर उनकी जांच नहीं करवाते। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि हम रहे हैं, वो कितना शुद्ध है! यहां तक कि घर में पकने वाले भोजन की भी गुणवत्ता भी संदिग्ध होती है। क्योंकि, जो कुछ बाजार से खरीदा जाता है, उसकी निगरानी की सरकारी व्यवस्था लापरवाह और भ्रष्ट है। सरकार यदि खाद्य पदार्थों में मिलावट को काबू करने के अपने प्रण को लक्ष्य तक पहुंचाना चाहती है, तो उसे सबसे पहले उस भ्रष्ट नौकरशाही पर नकेल डालना होगी, जो इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है!
---------------------------------------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment