- हेमंत पाल
झाबुआ में चुनाव प्रचार थम गया! उपचुनाव के लिए दोनों प्रमुख प्रतिद्वंदी पार्टियों की सारी कवायद पूरी कर ली! बाकी जो प्रबंधन बचा है, वो आज रात पूरा हो जाएगा! कांग्रेस और भाजपा दोनों ने चुनाव जीतने की कोशिश में कोई कमी नहीं छोड़ी और सारे पैंतरे इस्तेमाल किए। कांग्रेस के कई मंत्रियों ने झाबुआ में डेरा डालकर मतदाताओं को लुभाने के हरसंभव प्रयास किए। जबकि, भाजपा ने भी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं रखी! लेकिन, स्थिति देखकर कहा नहीं जा सकता कि नतीजे का ऊंट किस करवट बैठेगा! क्योंकि, प्रचार के मुकाबले में दोनों का पलड़ा बराबरी का रहा है। जबकि, उम्मीदवारी में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ज्यादा मजबूत नजर आ रहे हैं! उन्हें प्रदेश में कांग्रेस सरकार होने का भी फ़ायदा मिलेगा! भाजपा का बागी क्या कमाल दिखाएगा, इसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता!
झाबुआ विधानसभा सीट का अपना अलग राजनीतिक चरित्र है। यह सीट बरसों से कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है और कांतिलाल भूरिया का यहाँ एकछत्र राज रहा! इस सीट पर भाजपा तभी जीती, जब कांग्रेस में बगावत हुई और मुकाबला त्रिकोणीय बना! कभी भी सीधे मुकाबले में भाजपा झाबुआ नहीं जीत सकी! पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव की कहानी भी यही थी! जहाँ तक हार-जीत के अनुमानों का सवाल है, प्रचार की अंतिम स्थिति तक पहुँचते दोनों पार्टियाँ बराबरी पर दिखाई दे रही हैं। शुरुआत में कांग्रेस के प्रचार का जोर ज्यादा लगा, जो प्रचार के आखिरी दौर तक पहुँचते-पहुँचते भाजपा के पक्ष में झुकता हुआ सा लगा! आखिरी दिन के प्रचार में प्रदेश के वर्तमान और पूर्व दोनों दोनों ही मुख्यमंत्री झाबुआ में थे। लेकिन, भाजपा के नेता इस बात को छुपा नहीं पाए कि उनका उम्मीदवार भानु भूरिया अपेक्षाकृत कमजोर है।
यह आदिवासी सीट हमेशा ही प्रदेश में अपनी अलग राजनीतिक मौजूदगी दर्ज कराती रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में यहाँ के मतदाताओं ने भाजपा के दिलीपसिंह भूरिया को चुनाव जिताया! लेकिन, सवा साल बाद उनके निधन से खाली हुई सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया चुनाव जीतकर दिल्ली गए! इस बार सांसद बनने के बाद झाबुआ के विधायक गुमानसिंह डामोर को झाबुआ सीट छोड़ना पड़ी, तो यहाँ उपचुनाव के हालात बने हैं! पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में यहाँ से कांतिलाल भूरिया के बेटे डॉ विक्रांत भूरिया को भाजपा के गुमानसिंह डामोर ने हराया था! लेकिन, कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा पेंच कांग्रेस के बागी उम्मीदवार जेवियर मेढ़ा थे, जिन्हें करीब 36 वोट मिले थे! डॉ विक्रांत की हार का सबसे बड़ा कारण ही वे थे! लेकिन, इस बार कहानी बदल गई! अब जेवियर कांग्रेस के साथ प्रचार में लगे हैं। उधर, उपचुनाव में भानु भूरिया को भाजपा उम्मीदवार बनाए जाने के विरोध में कल्याणसिंह डामोर ने बगावत कर दी। कांग्रेस की जीत इस पर भी टिकी है, कि भाजपा का ये बागी उम्मीदवार कितने वोट काटता है।
ख़ास बात ये कि इस पूरे उपचुनाव में हवा बार-बार बदलती दिखाई दी! शुरू में तो कांतिलाल भूरिया की उम्मीदवारी और जेवियर मेढ़ा के उनके साथ होने से कांग्रेस ताकतवर दिखाई दी! करीब दर्जनभर मंत्रियों के प्रचार में आने से भी फर्क पड़ा! मुख्यमंत्री कमलनाथ भी दो बार प्रचार कर आए! दिग्विजय सिंह भी झाबुआ पहुंचे! पर, पूरे उपचुनाव के प्रचार अभियान में ज्योतिरादित्य सिंधिया कहीं दिखाई नहीं दिए! उनके गुट के मंत्रियों ने भी झाबुआ में प्रचार से दूरी बनाए रखी! पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव और इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में धुआंधार प्रचार करने वाले सिंधिया की झाबुआ उपचुनाव से दूरी पर उँगलियाँ भी उठी! जबकि, पहले दौर के प्रचार में भाजपा पिछड़ी थी, पर बाद में उसने अपनी स्थिति सुधार ली! कांग्रेस ने चुनाव जीतने पर कांतिलाल भूरिया को मंत्री बनाने का एलान करके अच्छा पांसा फेंका है, जो असर दिखा सकता है!
विधानसभा में अपने आंकड़े सुधारने के लिहाज से झाबुआ उपचुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। कांग्रेस चाहती है कि भाजपा से यह सीट छीनकर अपनी स्थिति को बेहतर कर लिया जाए! वहीँ, भाजपा इस सीट को फिर जीतकर कमलनाथ सरकार को घेरना चाहती है! यदि कांग्रेस हारती है तो किसानों की कर्ज माफ़ी न होने जैसे भाजपा के आरोपों को दम मिलेगा! लेकिन, यदि नतीजे कांग्रेस के पक्ष में रहे तो कमलनाथ सरकार की जमीन ज्यादा मजबूत होगी। कांग्रेस ने जेवियर मेढ़ा को साधकर अपनी एक बड़ी कमजोरी को सुधार लिया! लेकिन, भाजपा के बागी कल्याणसिंह डामोर मैदान में बने रहने से भाजपा परेशानी कम नहीं हुई! कल्याण डामोर को टिकट मिलने का इतना भरोसा था कि चुनाव से पहले ही उन्होंने झाबुआ सीट के सभी पोलिंग बूथ का दौरा कर लिया था! अब देखना है कि उनकी बगावत क्या रंग लाती है!
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झाबुआ में चुनाव प्रचार थम गया! उपचुनाव के लिए दोनों प्रमुख प्रतिद्वंदी पार्टियों की सारी कवायद पूरी कर ली! बाकी जो प्रबंधन बचा है, वो आज रात पूरा हो जाएगा! कांग्रेस और भाजपा दोनों ने चुनाव जीतने की कोशिश में कोई कमी नहीं छोड़ी और सारे पैंतरे इस्तेमाल किए। कांग्रेस के कई मंत्रियों ने झाबुआ में डेरा डालकर मतदाताओं को लुभाने के हरसंभव प्रयास किए। जबकि, भाजपा ने भी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं रखी! लेकिन, स्थिति देखकर कहा नहीं जा सकता कि नतीजे का ऊंट किस करवट बैठेगा! क्योंकि, प्रचार के मुकाबले में दोनों का पलड़ा बराबरी का रहा है। जबकि, उम्मीदवारी में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ज्यादा मजबूत नजर आ रहे हैं! उन्हें प्रदेश में कांग्रेस सरकार होने का भी फ़ायदा मिलेगा! भाजपा का बागी क्या कमाल दिखाएगा, इसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता!
झाबुआ विधानसभा सीट का अपना अलग राजनीतिक चरित्र है। यह सीट बरसों से कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है और कांतिलाल भूरिया का यहाँ एकछत्र राज रहा! इस सीट पर भाजपा तभी जीती, जब कांग्रेस में बगावत हुई और मुकाबला त्रिकोणीय बना! कभी भी सीधे मुकाबले में भाजपा झाबुआ नहीं जीत सकी! पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव की कहानी भी यही थी! जहाँ तक हार-जीत के अनुमानों का सवाल है, प्रचार की अंतिम स्थिति तक पहुँचते दोनों पार्टियाँ बराबरी पर दिखाई दे रही हैं। शुरुआत में कांग्रेस के प्रचार का जोर ज्यादा लगा, जो प्रचार के आखिरी दौर तक पहुँचते-पहुँचते भाजपा के पक्ष में झुकता हुआ सा लगा! आखिरी दिन के प्रचार में प्रदेश के वर्तमान और पूर्व दोनों दोनों ही मुख्यमंत्री झाबुआ में थे। लेकिन, भाजपा के नेता इस बात को छुपा नहीं पाए कि उनका उम्मीदवार भानु भूरिया अपेक्षाकृत कमजोर है।
यह आदिवासी सीट हमेशा ही प्रदेश में अपनी अलग राजनीतिक मौजूदगी दर्ज कराती रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में यहाँ के मतदाताओं ने भाजपा के दिलीपसिंह भूरिया को चुनाव जिताया! लेकिन, सवा साल बाद उनके निधन से खाली हुई सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया चुनाव जीतकर दिल्ली गए! इस बार सांसद बनने के बाद झाबुआ के विधायक गुमानसिंह डामोर को झाबुआ सीट छोड़ना पड़ी, तो यहाँ उपचुनाव के हालात बने हैं! पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में यहाँ से कांतिलाल भूरिया के बेटे डॉ विक्रांत भूरिया को भाजपा के गुमानसिंह डामोर ने हराया था! लेकिन, कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा पेंच कांग्रेस के बागी उम्मीदवार जेवियर मेढ़ा थे, जिन्हें करीब 36 वोट मिले थे! डॉ विक्रांत की हार का सबसे बड़ा कारण ही वे थे! लेकिन, इस बार कहानी बदल गई! अब जेवियर कांग्रेस के साथ प्रचार में लगे हैं। उधर, उपचुनाव में भानु भूरिया को भाजपा उम्मीदवार बनाए जाने के विरोध में कल्याणसिंह डामोर ने बगावत कर दी। कांग्रेस की जीत इस पर भी टिकी है, कि भाजपा का ये बागी उम्मीदवार कितने वोट काटता है।
ख़ास बात ये कि इस पूरे उपचुनाव में हवा बार-बार बदलती दिखाई दी! शुरू में तो कांतिलाल भूरिया की उम्मीदवारी और जेवियर मेढ़ा के उनके साथ होने से कांग्रेस ताकतवर दिखाई दी! करीब दर्जनभर मंत्रियों के प्रचार में आने से भी फर्क पड़ा! मुख्यमंत्री कमलनाथ भी दो बार प्रचार कर आए! दिग्विजय सिंह भी झाबुआ पहुंचे! पर, पूरे उपचुनाव के प्रचार अभियान में ज्योतिरादित्य सिंधिया कहीं दिखाई नहीं दिए! उनके गुट के मंत्रियों ने भी झाबुआ में प्रचार से दूरी बनाए रखी! पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव और इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में धुआंधार प्रचार करने वाले सिंधिया की झाबुआ उपचुनाव से दूरी पर उँगलियाँ भी उठी! जबकि, पहले दौर के प्रचार में भाजपा पिछड़ी थी, पर बाद में उसने अपनी स्थिति सुधार ली! कांग्रेस ने चुनाव जीतने पर कांतिलाल भूरिया को मंत्री बनाने का एलान करके अच्छा पांसा फेंका है, जो असर दिखा सकता है!
विधानसभा में अपने आंकड़े सुधारने के लिहाज से झाबुआ उपचुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। कांग्रेस चाहती है कि भाजपा से यह सीट छीनकर अपनी स्थिति को बेहतर कर लिया जाए! वहीँ, भाजपा इस सीट को फिर जीतकर कमलनाथ सरकार को घेरना चाहती है! यदि कांग्रेस हारती है तो किसानों की कर्ज माफ़ी न होने जैसे भाजपा के आरोपों को दम मिलेगा! लेकिन, यदि नतीजे कांग्रेस के पक्ष में रहे तो कमलनाथ सरकार की जमीन ज्यादा मजबूत होगी। कांग्रेस ने जेवियर मेढ़ा को साधकर अपनी एक बड़ी कमजोरी को सुधार लिया! लेकिन, भाजपा के बागी कल्याणसिंह डामोर मैदान में बने रहने से भाजपा परेशानी कम नहीं हुई! कल्याण डामोर को टिकट मिलने का इतना भरोसा था कि चुनाव से पहले ही उन्होंने झाबुआ सीट के सभी पोलिंग बूथ का दौरा कर लिया था! अब देखना है कि उनकी बगावत क्या रंग लाती है!
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