Friday, December 23, 2016

बड़े मुद्दे छोड़ आलू, प्याज की राजनीति में उलझी कांग्रेस

- हेमंत पाल    

   मध्यप्रदेश में राजनीति की मुख्यधारा पूरी तरह भाजपा केंद्रित हो गई! विपक्ष के रूप में कांग्रेस की भूमिका कहीं नजर नहीं आ रही! कुपोषण और व्यापम जैसे बड़े मुद्दों को अनदेखा करके कांग्रेस आलू, प्याज की राजनीति में उलझ गई! लेकिन, जनता ने जिस विपक्ष को चुना था, वो कहाँ गया? ये सिर्फ इंदौर की बात नहीं, पूरे प्रदेश में यही हालत है। कांग्रेस के गिने-चुने विधायक या तो सुप्त अवस्था में कहीं दुबके पड़े हैं या उन छोटे मुद्दों को राजनीतिक रंग दे रहे हैं, जिनका कोई भविष्य नहीं है! पिछले तीन सालों में विपक्ष के रूप में कांग्रेस ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिसके लिए उसकी पीठ थपथपाई जाए। सरकार का विरोध करके नकारात्मक राजनीति के सहारे खुद को मीडिया में जिंदा रखने वाले कांग्रेसी नेता अभी तक आम लोगों को प्रभावित करने में असमर्थ रहे हैं! उन्हें इसका मौका भी मिला तो वे खामोश रहे।    

   मध्यप्रदेश कांग्रेस के पास मुद्दों की कमी नहीं है। बीते तीन सालों में प्रदेश सरकार ने ऐसी कई गलतियां की है, जो उन्हें कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी थी! लेकिन, कांग्रेस के नाकारा नेताओं ने कोई पहल नहीं की! न तो विधानसभा में सरकार को घेरने की कोशिश की और न सड़क पर! व्यापम के भर्ती कांड के बाद बाल कुपोषण ऐसा ज्वलंत मुद्दा है, जो सरकार को परेशान कर सकता था। किन्तु, विपक्ष के रूप में कांग्रेस की अनदेखी से सरकार की हिम्मत बढ़ गई! ये सच किसी से छुपा नहीं है कि इस साल कुपोषण को लेकर दो आंकड़े सामने आए। जनवरी 2016 में प्रदेश सरकार के मासिक प्रतिवेदन में प्रदेश में 17 प्रतिशत बच्चे कम वज़न के होना बताया गया! लेकिन, फ़रवरी 2016 में चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के अनुसार मध्यप्रदेश में 42.8 प्रतिशत बच्चे कम वज़न के हैं। इस कुपोषण के कारण क्या हैं और इसके लिए दोषी कौन है, ये सभी को पता है! लेकिन, कांग्रेस इस मुद्दे से बचकर क्यों निकल गई, ये सवाल जिंदा भी है और अहम् भी!
  सरकार ने प्रदेश में कुपोषण में कमी के दावे को सही साबित करने जैसे महत्वपूर्ण काम में भी गड़बड़ी की! इसे सीधे शब्दों में ये निगरानी का भ्रष्टाचार कहा जा सकता है। सरकार की इतनी हिम्मत इसलिए बढ़ी कि उसकी निगरानी करने और उसे कटघरे में खड़ा करने वाला विपक्ष कोने में कहीं दुबका पड़ा है! वास्तव में कुपोषण को लेकर कांग्रेस ने कभी होमवर्क तक नहीं किया। मध्यांह भोजन और आंगनवाड़ियों झांकने तक की जहमत नहीं उठाई कि वहाँ क्या चल रहा है? आरोप तो यहाँ तक हैं कि कांग्रेस को जो मुद्दे बिना किसी मेहनत के बाहर से मिलते हैं, उनको लेकर भी कांग्रेस का रवैया ढीलपोल वाला रहा! वे मसले भी सरकार के सामने न उठाकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लिया जाता है। इसका नतीजा ये हुआ कि सरकार के खिलाफ जो गुप्त मोर्चा सक्रिय था, उसने भी कांग्रेस पर भरोसा करना छोड़ दिया! विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ कांग्रेस ने भी चुनाव घोषणा पत्र में मध्यप्रदेश को कुपोषण मुक्त बनाने का वादा किया था। लेकिन, सरकार के ढीले प्रशासन तंत्र और कमजोर इच्छाशक्ति के कारण हर साल अरबों रुपए बहाने के बाद भी कुपोषण की समस्या मौजूद है। जबकि, कांग्रेस के नाकारापन ने सरकार को लापरवाह बना दिया! जहाँ विपक्ष कमजोर होगा, वहाँ स्वाभाविक है कि सरकार लापरवाह हो ही जाएगी!
  यही सब व्यापम भर्ती घोटाला मामले में भी हुआ! इसमें कौन दोषी है, ये सच अभी सामने नहीं आया! पर, इसमें कांग्रेस की ख़ामोशी और मामले की अनदेखी ने हमेशा संदेह ही पैदा किया है। मेडीकल कॉलेज में फर्जी एडमीशन से सामने आया ये मामला इतना बड़ा हो सकता है, ये सोचा नहीं गया था। लेकिन, इसमें भी कांग्रेस की कोशिश हमेशा बचकर निकलने की ही रही! सवाल उठता है कि कांग्रेस उन बड़े मुद्दों पर चुप क्यों हो जाती है, जिनमें वो सरकार की घेराबंदी कर सकती है? विधानसभा में भी तार्किक आधार पर कांग्रेस कभी मुखर नहीं होती! विपक्ष की इससे ज्यादा ख़राब हालत क्या हो सकती है कि विधानसभा में प्रतिपक्ष का कोई औपचारिक नेता ही नहीं है! कांग्रेस की यही स्थिति संगठन के स्तर पर है! अरुण यादव का इतना दबदबा ही नहीं बन पाया कि वो मुखिया की तरह कांग्रेस को संचालित कर सकें! विधायक भी अपनी मर्जी से मुद्दों का दोहन करते रहते हैं! जीतू पटवारी इंदौर के ऐसे ही कांग्रेसी विधायक हैं जो पूरी तरह बेलगाम लगते हैं।   नोटबंदी के मुद्दे पर कांग्रेस किस तरह राजनीति चमकाने की कोशिश में लगी है, इसका सबूत कुछ दिन पहले इंदौर में दिखाई दिया। इंदौर के इकलौते कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने अपने कुछ समर्थकों के साथ कलेक्टर ऑफिस के बाहर सड़क पर आलू फेंके! प्रचारित किया गया कि ये आंदोलन उन आलू उत्पादक किसानों के लिए किया गया, जिन्हें आलू के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा! आरोप था कि नोटबंदी के कारण किसानों का आलू थोक में एक से दो रुपए किलो बिक रहा है। इससे किसान परेशान हैं और उनके पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं! ये तो वो नकली सच था, जो इस प्रदर्शन के लिए दिखाया गया। जबकि, सच्चाई इससे अलग है। हुआ ये कि बड़े आलू उत्पादकों और आलू व्यापारियों ने नोटबंदी का फ़ायदा उठाने के लिए बड़ी मात्रा में आलू का स्टॉक कर लिया था। उन्हें उम्मीद थी कि आलू जब महंगा होगा, तो वे चाँदी काटेंगे! लेकिन, उनकी चाल उल्टी पड़ गई।
  देशभर में आलू की कीमतें नहीं बढ़ी और बाजार में नई फसल आ गई। ऐसे में इन जमाखोर किसानों और व्यापारियों को घाटा होने लगा! यही सब 6 महीने पहले प्याज की फसल को लेकर हुआ था! तब सरकार ने 6 रुपए किलो प्याज खरीदकर किसानों की मदद की थी। लेकिन, सरकार को इस भलमनसाहत से बड़ा घाटा झेलना पड़ा! प्याज से किसानों को नुकसान की बात सही थी! पर इस बार कांग्रेस ने जिस मुद्दे को तूल देने की कोशिश की, वो महज आलू उत्पादक गरीब किसानों से नहीं जुड़ा है। ये मुसीबत उन जमाखोर बड़े किसानों और व्यापारियों की है, जिन्होंने मुनाफे के लिए हज़ारों बोरे आलू महंगे होने की आशंका के चलते स्टॉक कर लिया था। इनकी इच्छा तो बाद में महंगे दाम पर आलू बेचने की थी! लेकिन, आलू के सस्ते दामों ने दांव पलट दिया। इसे जब कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी का साथ मिला। नोटबंदी के बाद परेशान कथित आलू उत्पादक किसानों की लड़ाई लड़ रहे विधायक जीतू पटवारी ने इंदौर जिला जेल में तीन ट्रैक्टर आलू भी पहुंचाए। दरअसल, पटवारी ने जब प्रदर्शन किया तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जिला जेल भेज दिया था। जेल से रिहा होने के अगले दिन बाद वे आलू लेकर जिला जेल पहुंचे और परिसर में रख दिए।
   इसी साल मई में जीतू पटवारी ने इसी तरह का प्रदर्शन प्याज उत्पादकों के लिए किया था। प्रदेश में प्याज का उत्पादन इतना अधिक हो गया था, कि किसान लागत नहीं निकल पाने के कारण प्याज को 20 से 30 पैसे किलो बेचने को मजबूर हो गए थे। तब भी विधायक पटवारी के साथ किसान प्याज की गिरती कीमतों के विरोध में प्रदर्शन करने कलेक्टर ऑफिस पहुंचे थे। प्रदर्शन के दौरान किसानों ने कलेक्टर ऑफिस के बाहर सड़क पर प्याज फैंका! वे किसान भी राऊ विधानसभा क्षेत्र के बिजलपुर के थे। किसानों ने साथ लाया प्याज सड़कों पर बिखेर दिया था। कुछ देर में कलेक्टर ऑफिस के आसपास की पूरी सड़क प्याज के ढेर से पट गई! कलेक्टर ऑफिस के आसपास की बस्तियों में रहने वाले लोगों और कई राहगीरों में सड़क पर बिखरी इस प्याज को उठाकर अपने साथ ले जाने के लिए होड़ मच गईं। लेकिन, तब मुद्दा सही था इसलिए सरकार ने भी उसे गंभीरता से लिया और मदद के लिए आई! जीतू पटवारी को लगा कि उनका पुराना फार्मूला फिर काम कर जाएगा, पर ऐसा नहीं हुआ! इस मामले में विधायक के साथ कांग्रेस  को भी बट्टा लगा है!
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