Sunday, December 25, 2016

प्यार के इजहार की अमर दास्तान

- हेमंत पाल 

   वक़्त के साथ सब कुछ बदलता है। सिनेमा भी और समाज भी! जो नहीं बदलता उनमें से एक है 'प्रेम कहानियां!' जब से सिनेमा के परदे ने जन्म लिया, वो प्रेम के रंग में रंग गया। लेकिन, समाज के दौर के साथ सिनेमा के परदे पर प्रेम कहानियां भी बदलती रही। हर दौर की प्रेम कहानियां भी अलग-अलग होती है। हमने अपने हीरो भले सिनेमा से नहीं पाए हों, लेकिन प्यार का इजहार तो उन्हीं से सीखा! प्रेम के मामले में सिनेमा अनूठी दुनिया रचता रहा है। ये उन तमाम कल्पनाओं को असल रंग देता है, जिन्हें छोटे कस्बों और शहरों में जवान होते पूरा करना मुमकिन नहीं होता! सिनेमा और उसके सिखाए प्रेम के इस फलसफे का असल मतलब इस परदे ने ही सिखाया! सामाजिक व्यवस्थाओं के बंधनों के उलट दिलों में जन्म लेती हर प्रेम कहानी पर सिनेमा की छाप होती है। प्रेमी जोड़ों ने कभी पहली मुलाकात के लिए घर का पिछवाड़ा चुना, तो किसी ने महबूबा को देखकर रोमांटिक फ़िल्मी गीत गुनगुनाया!

  जब भी परदे की अमर प्रेम दास्तान का जिक्र होता है 'मुगले आजम' के बिना बात पूरी नहीं होती! फिल्म में सामंती व्यवस्था के गढ़ में प्रेम का खुला इजहार करती अनारकली का गाना 'प्यार किया तो डरना क्या' कौन भूल सकता है! ये फिल्म सामंती समाज के सामने विरोध स्वरूप खड़े 'प्रेम' का अमर दस्तावेज भी है। ब्लैक एंड व्हाइट ज़माने की ऐसी ही एक फिल्म थी 'जिस देश में गंगा बहती है!' इसमें नायक राजकपूर का नायिका वैजयंती माला से प्रेम का इजहार करने का अंदाज आज भी उस ज़माने के लोगों को याद होगा! फिल्म के एक सीन में नायक का ये कहना 'कम्मो, शिवजी की कृपा रही तो एक दिन मेरा एक फूल सा लल्ला होगा! क्या आप मेरे उस लल्ला की माँ बनेंगी?' जबकि, नए दौर में क्या कोई अपने  प्रेम का इस तरह इजहार करेगा? बीते ज़माने एक फिल्म थी 'तेरे घर के सामने' जिसमें कुतुब मीनार के भीतर देव आनंद से नूतन पूछती हैं कि क्या तुम्हें खामोशी की आवाज सुनाई देती है? देव आनंद अपने अंदाज में नूतन से कहते हैं 'हमें तो बस एक ही आवाज सुनाई देती है, दिल की आवाज!' इसके साथ ही एसडी बर्मन का रचा गीत बज उठता है 'दिल का भंवर करे पुकार, प्यार का राग सुनो!'
 मारधाड़ से भरी फिल्म 'शोले' में वीरू और बसंती के मुँहफट प्रेम का जो भी अंदाज था, पर असल प्रेम कहानी तो जय (अमिताभ बच्चन) और राधा (जया) ने रची! इन दोनों के बीच जो भी बंधन था, उसमें जय के माउथऑर्गन का संगीत घुला था। इसे सिनेमा संसार की सबसे खामोश प्रेम कहानी भी कहा जा सकता है। बरामदे में बैठे अमिताभ माउथऑर्गन बजा रहे हैं, जया ऊपर लैंप बुझाती हैं। उस वक़्त दोनों की आँखों की कशिश बहुत कुछ कहती है। अमिताभ की मौत के बाद जया वो खिड़की बंद कर देती है, जो जय के कमरे की तरफ खुलती है। आमिर खान, प्रीति जिंटा की फिल्म 'दिल चाहता है' को नई पीढ़ी के लिए ट्रेंड सेटर समझा जाता है। इसमें प्यार को कविता के अंदाज में प्रदर्शित किया गया है। नई पीढ़ी के लिए ये फिल्म आज भी लव-एंथम जैसी है। मोहब्बत के रंग में रंगी एक और फिल्म है 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' जिसका हर सीन प्यार का इजहार ही था! इस फिल्म का ये दृश्य कौन भूल सकता है! 'राज, अगर ये तुझे प्यार करती है तो पलट के देखेगी, पलट ... पलट!' 
  सई परांजपे की फिल्म 'स्पर्श' में भी प्लेटोनिक प्रेम था। ब्लाइंड स्कूल के प्रिंसिपल अनिरुद्ध (नसीरुद्दीन शाह) खुद देख नहीं सकते! वे कविता (शबाना आजमी) से जानना चाहते हैं कि वो कैसी दिखती हैं? कविता उन्हें खुद की सुंदरता के बारे में बताती हैं। आंखों के बारे में, जुल्फों के बारे में, रंग के बारे में! लेकिन, अनिरुद्ध कहते हैं कि तुम मेरे लिए इसलिए सुंदर हो, क्योंकि तुम्हारे बदन की सुगंध निषिगंधा के फूलों जैसी है। तुम्हारी आवाज सितार की झंकार की तरह और तुम्हारा स्पर्श मखमल की तरह। परदे की दुनिया के ऐसे रूमानी किस्सों की कमी नहीं है। परदे पर प्रेम के इजहार के ये प्रसंग हिंदी सिनेमा में 'प्रेम' को ऐसे आयाम पर ले जाते हैं, जहाँ सारे रिश्ते गौण हो जाते हैं। 
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