Sunday, December 4, 2016

सच से किनारा करते 'रियलिटी शो'


- हेमंत पाल 

   एक वक़्त था जब टीवी के परदे पर मनोरंजन के नाम सीरियल, समाचार, फ़िल्मी गाने और सप्ताह में एक फिल्म दिखाई जाती थी। दर्शक इससे भी खुश थे! उन्हें फिल्म का एक सार्थक विकल्प मिल गया था। तब सीरियलों की कहानी लोगों की बातचीत का विषय हुआ करती थी! रामायण, महाभारत और हमलोग ऐसे सीरियल थे, जिन्होंने दर्शकों की दिनचर्या को प्रभावित किया था। सिनेमाघर की भीड़ घरों में सिमटने लगी थी! लेकिन, रात 10 बजे टीवी बंद हो जाता था, फिर भी दर्शक इस मनोरंजन से संतुष्ट थे। जबकि, आज चौबीसों घंटे टीवी मनोरंजन परोसता रहता है, पर दर्शक संतुष्ट नहीं हैं। चैनलों की भरमार हो गई और कार्यक्रमों की भी! लेकिन, स्तर इतना गिर गया कि परिवार साथ में बैठे तो आँख चुराना पड़ती है।  
  घर में घुसे बैठे मनोरंजन के इस आसान माध्यम में आज सबकुछ है! लेकिन, सबसे ख़ास नजर आते हैं रियलिटी शो! वास्तविकता को मनोरंजन की तरह दर्शाने वाले इन रियलिटी शो ने दर्शकों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया। दर्शकों को लगता है कि वे परदे पर वही देख रहे हैं, जो घट रहा है। सवाल पैदा होता है कि रियलिटी शो में क्या सबकुछ रियल होता है? इस तरह के शो किस संदर्भ में रियल हैं? प्रेमचंद, शरदचंद, राहुल सांस्कृत्यायन जैसे लेखकों ने अपनी रचनाओं के जरिए समाज का जो चित्रण किया है, क्या ये टीवी के ये रियलिटी शो इसी तरह की वास्तविकता दिखाते हैं? सच तो ये है कि इस तरह के शो वास्तविकता नहीं दिखाते, बल्कि पैसे के लिए लालच का संदेश परोसते हैं। जब असल ज़िंदगी में ही कुछ भी रियल नहीं रह गया, तो इन रियलिटी शो में क्या रियल होगा? 
   'बिग बॉस' जैसे शो की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है छद्म सच्चाई! इस शो के अब तक दस सीजन हो चुके हैं। सवाल उठता है कि क्या वास्तव में वो सब रियल में हो रहा है, जो दिखाया जा रहा है? प्रतियोगियों की नजर आती कुंठा, रोज के आपसी झगडे, एक-दूसरे को मात देने की कोशिश और गुटबाजी ये सब क्या अपने आप हो रहा है? शायद नहीं, कहीं न कहीं इसके पीछे स्क्रिप्ट होती है। जो लिखित में भले न हो, पर दर्शकों को मनोरंजन परोसने के लिए उसे तैयार तो किया ही जाता है। ये सिर्फ एक रियलिटी शो का फार्मूला नहीं है। हर मनोरंजन चैनल पर ऐसे रियलिटी शो हमेशा चलते हैं। जितने भी ऐसे शो हैं, उन्हें एक फॉर्मेट के जरिए ही दिखाया जाता है! गाने और डांस के रियलिटी शो में तो आंसू बहाने वाले इमोशन से लगाकर एंकरिंग की कही गई एक-एक लाइन और हार-जीत तक तय होती है। शो के जजों की टिप्पणियाँ तक लिखी हुई होती है। यदि सबकुछ लिखित में ही होता है, तो कैसे माना जाए कि रियलिटी शो रियल होते हैं?    
  जो रियलिटी शो दिखाए जाते हैं, उनमें भद्दी गालियां, राजनीति, दूसरे को गिराने के हथकंडे दिखाकर दर्शक बटोरे जाते हैं। इस तरह चैनल की टीआरपी बढ़ाई जाती है। इन शो के पीछे एक पूरा बाजार काम करता रहता है। हुनरमंदों को अपना हुनर दिखाने का मंच मुहैया कराते ये रियलिटी शो तैयारियों के प्रशिक्षण का बाज़ार मेट्रो सिटी से गाँव तक फ़ैला रहे हैं। यहाँ रियलिटी शो के लिए संभावित प्रतियोगी तैयार किए जाते हैं। हमारे यहाँ रियलिटी शो का इतिहास भी करीब दो दशक से ज्यादा पुराना है। 3 दिसंबर 1993 को 'जी-टीवी' पर पहली बार अन्नू कपूर ने 'अंताक्षरी' शो शुरू किया, उसके 600 एपिसोड प्रसारित हुए। इसी चैनल पर 1995 में 'सारेगामा' आया। इस शो ने बॉलीवुड को कई मधुर गायक दिए। लेकिन, 2000 में आए अमिताभ बच्चन के शो 'कौन बनेगा करोडपति' ने सबकुछ बदल दिया। इसके बाद शो भी बदले, फॉर्मूले भी और कमाई के तरीके भी, पर रियलिटी नदारद हो गई!
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