- हेमंत पाल
प्रदेश कांग्रेस के संगठन प्रभारी ने इंदौर शहर कांग्रेस की पूरी कार्यकारिणी भंग कर दी! अध्यक्ष प्रमोद टंडन के अलावा अब शहर कांग्रेस में कोई पदाधिकारी नहीं है। कारण बताया गया कि सारे पदाधिकारी निष्क्रिय थे, इसलिए उन्हें हटा दिया! जबकि, असल बात शाहनवाज खान को शहर कांग्रेस में पदाधिकारी बनाना था! इस नेता ने प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव पर टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए उनका पुतला जलाया था! एक दिन पहले शाहनवाज खान की नियुक्ति रद्द की गई, दूसरे दिन प्रमोद टंडन की पूरी कार्यकारिणी ही भंग कर दी गई! अब तलवार प्रमोद टंडन पर लटकी है! वे 9 साल से अध्यक्ष हैं, पर अब कितने दिन और इस पद पर रह पाते हैं, ये तय नहीं है! वे लगातार दो कार्यकाल से पद पर हैं, पर पार्टी रसातल चली गई। इंदौर में कांग्रेस विधानसभा क्षेत्र के बजाए मोहल्लों में बंटी ज्यादा लगती है। बीते सालों में कांग्रेस न तो शहर में कोई आंदोलन खड़ा कर सकी और न भाजपा के सामने किसी चुनाव में चुनौती ही बन सकी है। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि प्रदेश के हर बड़े नेता ने अपने समर्थकों की अलग फ़ौज खड़ी कर रखी है! ये फ़ौज कांग्रेस की नहीं दिग्विजय सिंह की है, सिंधिया की है या कमलनाथ की! जब दिग्गज नेता ही एक नहीं हैं, तो शहर कांग्रेस में कैसे एकता होगी?
इंदौर की शहर कांग्रेस कमेटी में मनमर्जी से होने वाली नियुक्तियों से नाराज प्रदेश कांग्रेस ने इंदौर शहर की कार्यकारिणी भंग कर दी। प्रदेश संगठन प्रभारी महामंत्री चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी ने शहर कांग्रेस अध्यक्ष प्रमोद टंडन को छोड़ 535 सदस्यों की कार्यकारिणी को एक आदेश से सप्ताहभर पहले हटा दिया। कहा गया कि अब नई सक्रिय कार्यकारिणी गठित की जाएगी। ये शायद पहली घटना है, जब किसी शहर की पूरी कार्यकारिणी एक झटके में भंग कर दी गई हो! आश्चर्य इस बात का कि हटाने को लेकर सभी 535 पदाधिकारियों पर एक ही आरोप लगा! ये बात किसी के गले नहीं उतर रही! जबकि, एक बड़ा कारण शाहनवाज खान को महामंत्री बनाया जाना है। कांग्रेस के नेता इकबाल खान और पार्षद रूबीना खान के बेटे शाहनवाज खान ने प्रदेश अध्यक्ष यादव पर ही टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए उनका पुतला तक फूंका था। इसकी शिकायत प्रदेश अध्यक्ष को मिली थी! इसके बाद पहले उसे और बाद में सभी पदाधिकारियों को हटा दिया गया।
प्रमोद टंडन को हटाने की कोशिशे भी लंबे समय से चल रही है। वे 9 साल से शहर कांग्रेस के अध्यक्ष हैं! उनकी जगह नए नाम पर विचार के लिए कई बार कवायद हो चुकी है। पर, नतीजा कुछ नहीं निकला। प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव भी कई बार नए अध्यक्ष की बात कर चुके हैं, पर कर कुछ नहीं सके! हमेशा आश्वासन दिया गया कि नया शहर कांग्रेस अध्यक्ष जल्दी ही बनाया जाएगा। ऐसे दावे पहले भी कई बार किए जा चुके हैं। इस बार भी शहर को स्थाई अध्यक्ष मिलेगा, इसमें संशय है। नई नियुक्ति भी कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में ही होगी! फिलहाल किसी नेता को प्रभारी बनाया जा सकता है।
कांग्रेस के अपने विधान के मुताबिक शहर कांग्रेस की कमेटियों में 21 पद होते हैं। लेकिन, इंदौर में ये संख्या 535 हो गई थी! अपने समर्थकों को पदाधिकारी बनाने के लिए बड़े नेता शहर अध्यक्ष पर दबाव बनाते रहते हैं। पार्षद और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले नेता भी अपने समर्थकों को कार्यकारिणी में पद दिलवाने के लिए बड़े नेताओं से दबाव बनवाते थे। यही कारण है कि इंदौर में कार्यकारिणी की संख्या बढ़ते-बढ़ते पांच सौ से ऊपर निकल गई थी! इनमें कुछ नियुक्तियों में तो प्रदेश कांग्रेस से अनुमति तक नहीं ली गई। 535 में से अधिकांश पदाधिकारी सिर्फ मोहल्ला राजनीति और होर्डिंग में फोटो लगवाने तक सीमित थे! मंत्री, महामंत्री, उपाध्यक्ष, प्रवक्ता बने कांग्रेस पदाधिकारी कभी न तो किसी आंदोलन का हिस्सा बनते और न पार्टी को सक्रिय बनाने की ही कोशिश करते थे! जिस बड़े नेता की सिफारिश से उनको पद मिलता, उसी के इंदौर आने पर ये नजर भी आते! टंडन की भंग कार्यकारिणी में ऐसे भी कई लोग थे, जिनके पास विधि, पिछड़ा वर्ग, झुग्गी-झोपड़ी प्रकोष्ठ के पद भी थे। हमेशा पदों की दौड़ में लगे रहने वाले ये नेता नए अध्यक्ष की नियुक्ति पर फिर उसकी परिक्रमा लगाने लगेंगे!
ये बात तो राजनीति के जानकारों को समझ में आ रही है कि इंदौर में भाजपा के ताकतवर होने का बड़ा कारण कांग्रेस का कमजोर होना है। 13 सालों में कांग्रेस के जो नेता विधानसभा चुनाव जीते, ये उनकी अपनी उपलब्धि है। इसमें पार्टी का कोई योगदान नहीं है। भाजपा उम्मीदवार के सामने आश्विन जोशी दो बार विधानसभा चुनाव जीते और और पिछले चुनाव में जीतू पटवारी ने राऊ जीता! लेकिन, इसमें कहीं शहर कांग्रेस का योगदान होगा, ऐसा नजर नहीं आया! अपने आका के इंदौर आगमन पर ही एयरपोर्ट पर भीड़ लगाने वाले पदाधिकारी कभी कांग्रेस के दफ्तर गाँधी भवन में भी दिखाई नहीं देते। यही कारण है कि बरसों से कांग्रेस प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन नहीं कर पाई!
इंदौर में कांग्रेस की राजनीति का अपना इतिहास रहा है। इंदौर में प्रकाशचंद्र सेठी, महेश जोशी और कृपाशंकर शुक्ला ने जिस तरह की राजनीति की, वो अभी तक कोई नहीं कर सका! इन नेताओं ने शहर में बरसों तक कांग्रेस को बाँधे रखा! प्रकाशचंद्र सेठी ने तो उज्जैन छोड़कर इंदौर की राजनीति की और केंद्र तक पहुंचे। अब तो महेश जोशी ने अपने आपको पूरी तरह राजनीति से अलग ही कर लिया! कृपाशंकर शुक्ला जरूर राजनीतिक और सरकारी आयोजनों में नजर आ जाते हैं। इनके मुख्यधारा की राजनीति से हटने और किसी दमदार बड़े नेता के न होने से शहर में कांग्रेस गुटों में बंट गई! जो नए नेता उभरे उन्होंने पार्टी को ताकत देने के बजाए घर की फ़ौज मारना शुरू कर दिया। आज इंदौर में कांग्रेस टुकड़ों में नजर आती है। कांग्रेस की राजनीतिक में सन्नाटा है। लगता है कांग्रेस हमेशा ही इस स्थिति को भोगने को अभिशप्त है! शहर में कोई नया नेतृत्व उभर नहीं पा रहा और जो बचे हैं वो भी विलुप्त होने लगे!
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