Wednesday, July 26, 2017

कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं, भाजपा में असंतोष!

- हेमंत पाल 

    मध्यप्रदेश की राजनीति धीरे-धीरे गरमाने लगी है। भाजपा ने अपनी हाल की कार्यसमिति की बैठक में 'अबकी बार दो सौ पार' का नारा देकर अपनी भावी योजना का खुलासा कर दिया। भाजपा ने 'मिशन 2018' के तहत विधानसभा चुनाव में 200 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य तय करके अपने आत्मविश्वास का भी खुलासा कर दिया। ये भी तय किया गया कि अगला चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। पार्टी ने ये भी बता दिया भाजपा अगला चुनाव किसानों को केंद्रित करते हुए लड़ेगी। इस बार भाजपा का फोकस किसान और जीएसटी होगा! क्योंकि, यही दो तात्कालिक मुद्दे हैं, जो सरकार को परेशानी में डाल सकते हैं। पार्टी को अंदेशा है कि कांग्रेस भी किसानों को सरकार के खिलाफ भड़काकर भाजपा का नुकसान करने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी। पार्टी की कोशिश है कि वो किसानों का भरोसा जीतने की कोशिश करते हुए उन्हें अपने पाले में रखने की भरसक कोशिश करेगी।
   उधर, कांग्रेस राजनीति की तस्वीर भी कुछ हद तक स्पष्ट होती दिखाई दे रही है। दिल्ली से चलने वाली हवाओं को पढ़ा जाए तो कांग्रेस अगले विधानसभा चुनाव में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को जोड़ी की तरह मैदान में उतारकर करेगी। लेकिन, दिग्विजय सिंह को भी रणनीतिक के तौर पर इस्तेमाल किए जाने के आसार हैं। वरिष्ठता के चलते कमलनाथ की भूमिका प्रदेश के मुखिया की हो सकती है और मुख्यमंत्री उम्मीदवार का चेहरा होंगे ज्योतिरादित्य सिंधिया! पार्टी के बड़े नेताओं की मानें तो मध्यप्रदेश में कमलनाथ और सिंधिया दोनों ही जिताऊ चेहरे हैं। पार्टी इनका पूरा इस्तेमाल करेगी। कांग्रेस का पूरा फोकस किसी भी हाल में चुनाव जीतने को लेकर है।
  चुनाव को लेकर भाजपा जितनी गंभीरता बरत रही है, उसके मुकाबले कांग्रेस की तैयारियां कमजोर जरूर नजर आ रही है। कांग्रेस ने चुनाव जीतने को लेकर कोई बड़ी तैयारी की होगी, ऐसा कहीं नजर नहीं आ रहा। क्योंकि, रणनीति तब बनेगी, जब चुनाव की कमान संभालने वाला तय हो जाए। अभी तो सारी कवायद इस बात पर है कि नेतृत्व कौन करेगा? तीन महारथियों के बीच जो उलझन है उसके चलते कोई भी समीकरण सही नहीं बैठ रहा! पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को फिलहाल तो संतुलन बनाए रखने के लिए ही सबसे ज्यादा जद्दोजहद करना पड़ रही है।
  इस बीच चुनाव की रणनीति बनाने के लिए चुनावी रणनीति के जानकार प्रशांत किशोर का नाम उछला है। ये भी सामने आया है कि प्रदेश में प्रशांत किशोर ने अपनी टीम जरिए सभी 230 सीटों के पर प्राथमिक सर्वे करके अपनी एक रिपोर्ट पार्टी को सौंप भी दी! इसमें नेताओं की लोकप्रियता के क्षेत्रवार और बूथवार आंकड़े हैं। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमान सौंपने के पीछे भी प्रशांत किशोर का नाम लिया जा रहा है। रणनीतिकारों के मुताबिक प्रशांत किशोर ने अपने प्राथमिक सर्वे के नतीजे को गोपनीय रखते हुए पार्टी को स्पष्ट कर दिया था कि प्रदेश में सत्ता पाने के लिए सभी नेताओं गुटबाजी छोड़ना होगी! प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी जैसे नेताओं को गुट छोड़कर कांग्रेस के लिए गंभीर होना पड़ेगा, तभी कुछ हो सकता है। लेकिन, जब तक पार्टी के नेता खुद सामने आकर प्रतिद्वंदी पार्टी से मुकाबले में नहीं उतरेंगे, प्रशांत किशोर भी कुछ नहीं कर सकते! वैसे भी पार्टी का ये प्रयोग उत्तरप्रदेश में बुरी तरह फेल हो चुका है, फिर इस पर दांव लगाना समझ से परे है।    
   भाजपा के लिए एंटी-इनकम्बेंसी भी एक खतरा है। क्योंकि, स्थिति को जितना सकारात्मक समझा जा रहा है, उतनी है नहीं! यही कारण है कि लगातार तीन चुनाव जीतने के बाद इस बार भाजपा में घबराहट कुछ ज्यादा है। किसानों की नाराजी, जीएसटी से उभरे हालात, बढ़ती महंगाई समेत कई ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जो सरकार के खिलाफ जा सकते हैं। कांग्रेस सरकार के विरोध की इसी नाराजी को अपनी ताकत बनाकर मैदान संभालने के मूड में है। तय है कि इस बार प्रदेश में चुनावी मुकाबला काफी हद तक असमंजस से भरा होगा! आने वाले सवा सालों में क्या नई स्थिति बनती है, कह नहीं सकते! लेकिन, यदि भाजपा ने जीते हुए विधायकों के थोकबंद टिकट काटे तो उसे सबसे ज्यादा घर से उभरी नाराजी का ही सामना करना पड़ सकता है। इस नजरिये से देखा जाए तो कांग्रेस के पास खोने को ज्यादा कुछ नहीं है। जो भी नुकसान होगा भाजपा को ही ज्यादा होगा!
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