Friday, July 7, 2017

सरकार के गले में फँस गई प्याज राजनीति

- हेमंत पाल

  प्याज की बम्पर पैदावार और किसानों के आक्रोश ने मध्यप्रदेश सरकार को ऐसा उलझा दिया कि उसे समझ नहीं आ रहा कि कौनसा रास्ता सही रहेगा! आनन-फानन में सरकार ने किसानों से 8 रुपए किलो प्याज खरीदने का एलान तो कर दिया, पर इस हज़ारों टन प्याज का होगा क्या, ये कोई नहीं जानता! कंट्रोल की दुकानों पर ये प्याज कोई 2 रुपए किलो भी कोई खरीदने तैयार नहीं है। हालात ये हैं कि खरीदा हुआ प्याज बरसात में ख़राब हो रहा है। अब प्याज की राजनीति सरकार के गले पड़ गई! न पीछे हटा जा सकता है न आगे कोई रास्ता दिखाई दे रहा! फसलों का अर्थशास्त्र समझने वालों का कहना है कि भले ही सरकार ने प्याज 8 रुपए किलो खरीदा हो, पर ये अंततः सरकार को 19 से 20 रुपए किलो पड़ेगा। सरकार के प्याज खरीदने के एलान का असर ये हुआ कि खेरची में 5 से 6 रुपए बिकने वाला प्याज 15 से 20 रुपए किलो तक पहुँच गया। ऐसे में आम आदमी परेशान है कि किसान को फौरी राहत देने के लिए सरकार ने पूरे प्रदेश के लोगों को मुसीबत में क्यों डाला? चुनावी साल के ठीक पहले सरकार को इस सवाल से भी जूझना पड़ेगा।             
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  किसानों से 8 रुपए किलो प्याज खरीदने वाली सरकार अब उस प्याज को 2 रुपए किलो में बेचने पर आमादा है। नीलामी से लगाकर कंट्रोल की दुकानों तक पर प्याज बेचने की जुगत लगाई जा रही है। जून माह में अभी तक मंडियों में जो प्याज खरीदी गई, उसमें करीब 20 फीसदी से ज्यादा प्याज बारिश के कारण खराब हो गई! प्याज कच्ची फसल है इसलिए इसका भंडारण भी नहीं हो सकता। प्याज के परिवहन, गोदामों में रखरखाव, ब्याज और नुकसानी का आकलन करने के बाद सरकार को यह प्याज 19 रुपए किलो से ज्यादा महंगी पड़ेगी! यही स्थिति पिछले साल भी थी जब सरकारी एजेंसी 'मध्यप्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ (मार्कफेड) ने प्याज खरीदी के लिए बैंक से कर्ज भी लिया! उसे इसका ब्याज भी देना पड़ा था। तब भी प्याज खरीदी में सरकार को करोड़ों रुपए का घाटा उठाना पड़ा था! इस बार भी वही कहानी दोहराई गई। न पिछले साल सबक लिया न इस बार कुछ सोचा गया! इसके बावजूद किसान खुश नहीं है। 
   सरकार ने प्याज का रकबा, उत्पादन और भंडारण को लेकर जो भी अनुमान लगाए थे, सब फेल हो गए। इस बार प्रदेश में प्याज का रकबा 1.37 लाख हेक्टेयर बताया गया है, जो पिछले साल के 1.40 लाख हेक्टेयर से कम है। लेकिन इस बार प्याज की पैदावार अधिक हुई। बीते साल 32.54 लाख मीट्रिक टन प्याज हुआ, इस साल रकबा घटने के बावजूद 34.46 लाख मीट्रिक टन पैदावार हुई। प्याज की यही पैदावार सरकार के लिए मुसीबत बन गई है। हर जिले में पूरा प्रशासन इस समय प्याज की खरीदी, ट्रांसपोर्टेशन और भंडारण में लगे हैं।
  पिछले साल की तरह इस साल भी प्याज की जबरदस्त पैदावार के बाद मई में ही थोक मंडियों में प्याज के भाव इसने गिर गए थे कि किसानों ने इसे सड़कों पर फेंकना शुरू कर दिया था। प्याज की फसल की पैदावार ने किसानों की खुदकशी का प्लेटफार्म तैयार कर दिया। हालात इतने खराब हैं कि किसान जब मंड़ी में अपनी प्याज की उपज लेकर पहुंचे तो इसके खरीददार नहीं मिले! जब डेढ़ रूपए किलों में भी प्याज नहीं बिका तो किसानों का गुस्सा फट पड़ा। क्योंकि, खेती-किसानी का सारा अर्थतंत्र बैंक या साहूकारों से लिए कर्ज पर टिका होता है। किसान फसल बेचने से मिलने वाले पैसे से ही सारी उम्मीद लगाता है, लेकिन मंडी में जब प्याज को मंडी तक लाने का भाड़ा तक नहीं निकल पाया तो किसान उग्र हुए! सवाल है कि ऐसे में वे अपना कर्ज कैसे चुका पाएंगे? अब तो यह तय हो चला है कि किसान एक बार फिर कर्ज के दुष्चक्र में फंसने वाले हैं। सरकार की घोषणा के बाद भी किसानों की आत्महत्या का क्रम जारी है। 
   मध्यप्रदेश में प्याज की कीमतें जब एक रुपए किलो हो गई थी, तब भी देश की कई मंडियों में प्याज 20 रुपए किलो के करीब था! ऐसी स्थिति में सरकार के सलाहकार अफसरों को ये नहीं लगा कि इस प्याज को वहाँ बिना लाभ-हानि के बेचने की कोशिश की जाए? सरकार मुनाफा कमाने के लिए व्यापारिक सोच नहीं रख सकती, पर इस तरह अपना मूलधन तो वापस पा ही सकती थी! किसानों से प्याज खरीदकर सड़ा देना तो और फिर आने-पौने दाम पर बेचने की कोशिश करना समझदारी तो नहीं कही जा सकती! किसानों से प्याज खरीदकर गोदामों में भरने की कोशिश हो रही हैं जैसे गेहूं का भंडारण किया जाता है। इस कारण गीला प्याज उगने लगा और सड़ने लगा! यही स्थिति पिछले साल भी हुई थी। अब इस सड़े प्याज को ठिकाने लगाने के लिए सरकार हरसंभव जोर लगा रही है। इसकी 2 से ढाई रुपए किलों में कुछ बड़ी एजेंसियों को ये प्याज नीलामी में बेचा भी गया, पर लाखों क्विंटल अभी भी सरकार के गले में फंसा है! सरकार के सामने जमा प्याज को ठिकाने लगाना आज सबसे बड़ा सरदर्द है।
  किसान आंदोलन से डरकर मुख्यमंत्री ने प्याज 8 रुपए किलो खरीदने की घोषणा तो कर दी, पर अब ये प्याज सरकार के गले पड़ गया! किसानों को मदद देने के लिए की गई मुख्यमंत्री की घोषणा सरकार के खजाने को बड़ी चोट दे गई! जबकि, होना ये था कि प्याज खरीदी की योजना के साथ ही, इसके निपटान के इंतजाम भी किए जाते! यदि इस प्याज का भंडारण करना था, तो उतनी क्षमता के वेयरहाउस भी होना चाहिए, जो नहीं हैं! फिलहाल प्रदेश में 212 शीत भंडार गृह हैं जिनकी मौजूदा क्षमता करीब 9.5 लाख टन है। सरकार अगले दो सालों में क्षमता बढ़ाकर 14.5 लाख टन पर पहुंचाना चाहती है। लेकिन, आज तो इसके अभाव को सरकार ने भोग ही लिया! किसानों से प्याज खरीदी और फिर इसका निपटान न हो पाना, ऐसी घटना है जिससे सम्बद्ध विभाग और अफसरों को सबक लेना चाहिए!
  किसान आंदोलन से भयभीत सरकार ने पूरे प्रदेश में प्याज की सरकारी खरीद तो शुरू करा दी, लेकिन, किसानों को पुचकारने की कोशिश में सरकार अर्थशास्त्र भूल गई। जिस तरह के हालात हैं, उसे देखकर लगता नहीं किसान 8 रुपए किलो प्याज बेचकर भी सरकार से खुश हैं! इधर, सरकार की राजनीति भी कितनी सधेगी, ये स्पष्ट नहीं है। लेकिन, सरकारी खजाने को नुकसान कितना होगा, ये साफ़ नजर आ रहा है। 8 रुपए किलो का प्याज सरकार को 19 से 20 रुपए किलो का फटका लगाएगा! फसल का अर्थशास्त्र समझने वालों का मानना है कि सरकार कितनी भी संभाल कर ले, 25 से 30 प्रतिशत प्याज की नुकसानी होना तो तय है।
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