- हेमंत पाल
कुछ साल पहले हरसूद की डूब जिस तरह राजनीतिक मुद्दा बना था, अब निसरपुर भी उसी राह पर है। सरदार सरोवर बाँध के कारण धार और बड़वानी जिले के कुछ गांव पूरी तरह डूब जाएंगे। धार जिले का निसरपुर गाँव भी पूरी तरह डूबने वाला है। जैसे-जैसे बाँध में पानी बढ़ेगा, निसरपुर समेत कई गाँव का नामो-निशान ख़त्म हो जाएगा। इन गांव की बरसों पुरानी पहचान, संस्कृति और रिश्तों की डोर टूट जाएगी। अब कहीं से कोई बस कभी निसरपुर नहीं जाएगी। क्योंकि, यहाँ कोई जाने वाला ही नहीं होगा! लेकिन, इस बाँध के कारण डूब रहा ये गांव फिलहाल राजनीति का अखाडा जरूर बन गया।
सुप्रीन कोर्ट के आदेश के तहत प्रशासन को निसरपुर गांव 31 जुलाई तक खाली करवाना है। तात्पर्य यह कि गांव खाली करने की विनती नहीं करना, जबरदस्ती करना पड़े तो वो भी करना है। संभाग के मुखिया कमिश्नर ने संजय दुबे ने भी चेतावनी दे दी कि डूब प्रभावित लोगों को सरकार की तरफ से सभी मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही है। आवास के साथ क्षतिपूर्ति का भी इंतजाम किया जा। प्रभावितों के लिए अस्थाई आवास और भोजन की भी व्यवस्था की गई है। यानी जीने के लिए जो चाहिए, वो दे तो रहे हैं ... अब तो जाना ही होगा!
सीधे शब्दों में सरकार ने चेतावनी दे दी कि 31 जुलाई तक मर्जी से नहीं हटे तो हटा दिए जाओगे! वास्तव में निसरपुर तो डूब का एक प्रतीक भर है। डूबने वाले गांवों की संख्या करीब 18 है। गांव में टवलई खुर्द, चिखलदा, गणपुर, गसवा, मलनगांव, परमाल, सोंडुल, धरमराय, सेमल्दा, वीरलाय, बिजासन, मोरटका, अंजड़, चैनपुरा, मेहगांव, नरवाये, गवला, शामिल हैं। इन गांवों में रहने वालों को अब सरकारी जबरदस्ती के कारण अस्थाई रूप से भवरिया, चंदनखेड़ी, मिर्जापुर, एकलवारा, बोरखेड़ी के राहत शिविरों में पनाह लेना पड़ेगी। सरदार सरोवर बांध को भरता हुए विकराल जल का प्लावन जब इन गाँवों की संस्कृति, सभ्यता, पहचान और रिश्तों की डोर को डुबो रहा होगा तब यहाँ के लोग सरकार से 80 हज़ार रुपए लेकर गाँव छोड़ चुके होंगे या सरकारी पनाहगारों में बसने को मजबूर होंगे।
सरकार का कहना है कि दो-तिहाई से ज्यादा लोग डूब प्रभावित इलाका खाली करने को तैयार हैं। करीब एक-तिहाई लोग नई जगह जाने के लिए राजी हो गए! लेकिन, क्या ये सौ फीसदी सही है कि लोग अपनी मर्जी से जाने को राजी हुए हैं? क्या उन्हें सरकारी डंडे से गाँव छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा रहा? उन्हें सुविधाओं का लालच देकर डराया नहीं जा रहा है? क्या वास्तव में एक भी रहवासी है जो अपनी मर्जी से जाने को तैयार है? इन सारे सवालों के जवाब सरकार भी जानती है, प्रशासन भी और समझने वाले लोग भी!
ऐसे में निसरपुर इलाके के लोगों का दर्द राजनीति का अखाडा जरूर बन गया। सरकार भाजपा की है, इसलिए भाजपा के नेता सबकुछ समझते हुए भी चुप हैं। दरअसल, ये चुप्पी उनकी मज़बूरी भी है। जबकि, विपक्षी धर्म का निर्वहन कर रही कांग्रेस विस्थापितों के हक़ में मोर्चा खोलकर बैठी है। सरकार में अदालत का हवाला देकर प्रशासन को मोर्चे पर लगा दिया कि वो 31 जुलाई तक इलाका खाली करवाए! उधर, कांग्रेस ने आवाज बुलंद की है हम इलाका जबरन खाली नहीं होने देंगे! राजनीति करना है तो ये कांग्रेस की भी मज़बूरी है। लेकिन, इस सबसे उन 18-20 गांवों में बसने वालों का दर्द कम नहीं होगा। उनका कैलेंडर तो इस साल 31 जुलाई को ही खत्म हो रहा है।
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