Friday, July 7, 2017

सेनापति बदलकर अगली जंग में दांव लगाएंगी कांग्रेस और भाजपा!

- हेमंत पाल 

मध्यप्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा और विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने 'मिशन 2018' की तैयारियां तेज कर दी है। भाजपा जीत का चौका लगाने के लिए कमर कस रही है, वहीं डेढ़ दशक से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस ने भी सत्ता हांसिल करने के लिए जुगत लगाना शुरू कर दिया है। दोनों ही पार्टियों में प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश प्रभारियों को बदले जाने की अटकलें भी जोर पकड़ने लगीं। ये बदलाव किसी भी दिन हो सकता है। कांग्रेस को तो प्रदेश अध्यक्ष के लिए कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया में से किसी एक का नाम तय करना है। लेकिन, भाजपा में अभी असमंजस बरकरार है। भाजपा में अध्यक्ष नंदकुमारसिंह चौहान के अलावा प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे को बदले जाने की भी सुगबुगाहट है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश को लेकर भी पार्टी के भीतर माहौल गरमाया हुआ है। उन पर कुछ नेताओं को प्रश्रय देने के आरोप लम्बे समय से लग रहे हैं। 
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  मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों दो ख़बरें गरम हैं। एक, मध्यप्रदेश कांग्रेस की नई जिम्मेदारी कमलनाथ को सौंपी जाएगी ज्योतिरादित्य सिंधिया को? दूसरी खबर है भाजपा का अगला प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा? क्योंकि, नंदकुमारसिंह चौहान को हटाया जाना करीब-करीब तय है! लेकिन, दोनों ही पार्टियों में ये फैसले अभी अटके हुए हैं। कांग्रेस हाईकमान मध्यप्रदेश को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाई हो, लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर प्रदेश की कमान किसके हाथ में दी जाना है, वो दो नाम उसके सामने हैं। तीसरे किसी के नाम पर कोई विचार भी होगा, ऐसे आसार बिल्कुल भी नहीं हैं। कुछ दिनों पहले चर्चा चली थी कि कमलनाथ को प्रदेश का दारोमदार सौंपा जाना अंतिम रूप से तय हो गया है। लेकिन, यदि ऐसा होता तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका का निर्धारण भी होना जरुरी है। क्योंकि, युवाओं में सिंधिया की लोकप्रियता को नजरअंदाज करके यदि ये फैसला किया जाता है तो नतीजे उलटे पड़ सकते हैं। हाल ही में किसान आंदोलन में भी सिंधिया की सक्रिय भूमिका से प्रदेश कांग्रेस के समीकरण बदले हैं, ऐसे में यदि हाईकमान जनभावनाओं के विपरीत फैसला लेती है तो जिंदा होती कांग्रेस एक बार फिर कोमा में जा सकती है।     
   एक समय स्थिति ये आ गई थी कि कमलनाथ के नाम पर हाईकमान फैसला चुका था! लेकिन, अचानक मामला थम गया! सारी गतिविधियां रुक गईं! क्योंकि, प्रदेश में युवा वोटर्स में ज्योतिरादित्य सिंधिया की पकड़ को देखते हुए, हाईकमान को लगा कि कहीं कमलनाथ के नाम से नए वोटर्स बिदक न जाएँ! दरअसल, पार्टी कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच समन्वय बनाने का ऐसा फार्मूला तलाश रही है कि कोई भी नाराज न हो और पार्टी में एकता भी दिखाई दे! साथ ही बदलाव का संदेश भी अच्छा जाए। इस बीच सिंधिया और दिग्विजयसिंह पर भाजपा ने जिस तरह के हमले किए, वो भी एक कारण था कि कमलनाथ का नाम आगे आ गया था। क्योंकि, पार्टी मान रही थी कि यदि विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह के अनुभवों का उपयोग करना है, तो कमलनाथ को आगे लाना होगा! उनके साथ दिग्विजय सिंह की पटरी बैठ सकती है। लेकिन, ज्योतिरादित्य सिंधिया को हाशिए पर रखकर कोई फैसला होगा, इस बात की उम्मीद नहीं हैं।   
  प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के साथ ही कांग्रेस में प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश को बदले जाने के भी पूरे आसार है। क्योंकि, आरोप है कि वे संकट समय में प्रदेश कांग्रेस को उबारने में कोई योगदान नहीं दे पाए। उनके करीब चार साल के कार्यकाल के दौरान जितने भी उपचुनाव या नगरीय निकाय चुनाव हुए, उनमें पार्टी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर सकी। एक लोकसभा उपचनाव (झाबुआ-रतलाम) और एक विधानसभा उपचुनाव (अटेर) की जीत क्रमशः कांतिलाल भूरिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया की मानी जाती है। इसके अलावा सभी उपचुनाव कांग्रेस हारी है। प्रदेश में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की किसी भी कोशिश में मोहन प्रकाश की भूमिका गौण ही रही! उन पर अपने नजदीकी लोगों को उपकृत करने और पार्टी में गुटबाजी बढ़ाने के आरोप भी कई बार लगे! 
 उधर, भाजपा में भी बदलाव की बयार चलने की खबर है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार चौहान के बारे में तो जगजाहिर है कि वे शिवराजसिंह चौहान की छाया की तरह काम करते हैं। उनकी प्रतिबद्धता भी संगठन के प्रति कम मुख्यमंत्री के प्रति ज्यादा दिखाई देती है। अपनी अनर्गल बयानबाजी को लेकर भी नंदकुमार हमेशा ख़बरों में बने रहते हैं। हर पार्टी में संगठन को ज्यादा तवज्जो दी जाती है, क्योंकि संगठन से ही सत्ता की प्राप्ति होती है। पर, मध्यप्रदेश में भाजपा अध्यक्ष जिस तरह सत्ता के सामने फर्शी सलाम करते नजर आते हैं, पार्टी की छवि पर ऊँगली उठने लगी है। भाजपा के दिल्ली दरबार का रुख भी अगले चुनाव से पहले संगठन में बदलाव के पक्ष में लग रहा है। किसान आंदोलन से पार्टी खिलाफ जो नकारात्मकता सामने आई है, उसे संतुलित करने में भी भाजपा का प्रदेश संगठन सफल नहीं रहा! 
  सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष ही नहीं भाजपा के प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे को बदले जाने की भी सुगबुगाहट है। क्योंकि, जैसी उनके कामकाज में पहले जैसी गंभीरता का अभाव देखा जा रहा है। भाजपा में चल रही हलचल से अंदाजा लगाएं तो पार्टी के केंद्रीय संगठन ने जल्द ही सहस्त्रबुद्धे का विकल्प खोजना शुरू कर दिया है। भाजपा का दिल्ली दरबार मध्यप्रदेश के प्रभारी के लिए ऐसा नेता खोज रहा है, जो यहाँ की राजनीतिक बारीकियों को जानता हो और संतुलन बैठाकर 'मिशन-2018' के लिए काम कर सके। सहस्त्रबुद्धे को पार्टी ने लगातार दूसरी बार प्रदेश का प्रभार सौंपा था। पहली बार के कार्यकाल में तो वे काफी सहज रहे। पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ता की उन तक आसान पहुंच थी। किन्तु, दूसरे कार्यकाल में वे कुछ लोगों तक केंद्रित हो गए। राज्यसभा में लिए जाने के बाद मध्यप्रदेश में उनकी रूचि भी कम ही दिखाई देती है।  
  भाजपा के सामने सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के अलावा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान, प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे और प्रदेश संगठन मंत्री सुहास भगत तीनों ही पदों पर बैठे नेता आत्ममुग्धता के शिकार हैं। प्रदेश अध्यक्ष तो जब भी कुछ बोलते हैं नए विवाद को जन्म देते हैं! जबकि, प्रदेश संगठन मंत्री की तो कहीं भूमिका ही नजर नहीं आती! अरविंद मेनन के कार्यकाल में पार्टी की सक्रियता और ऊर्जा का अंदाज कुछ अलग ही था, पर सुहास भगत न तो कार्यकर्ताओं के लिए उपलब्ध दिखाई देते हैं न कहीं उनके होने का संकेत ही लगता है। ऐसे में प्रदेश प्रभारी का प्रदेश से मोहभंग होना भाजपा के लिए अच्छा नहीं है। 
  भाजपा ने भले ही ज्यादातर उपचुनाव में जीत हांसिल की हो, पर उसे मिले वोटों का प्रतिशत तेजी से घटा है। करीब सभी उपचुनाव में भाजपा को मिले वोट इसका प्रमाण हैं। किसान आंदोलन से भी भाजपा को जो नुकसान हुआ, उसकी भी पूर्ति होती दिखाई नहीं दी! सरकार ने फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ा दिया और प्याज की 8 रूपए किलो खरीद कर ली! फिर भी किसानों की नाराजी दूर करने में सरकार को सफलता मिल गई, इस बात का दावा नहीं किया जा सकता! तीन महीने पहले मध्यप्रदेश में भाजपा की लोकप्रियता का जो ग्राफ था, उसमें तेजी से गिरावट आई, इस बात को कोई नकार नहीं सकता! जबकि, किसान आंदोलन ने कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम किया और वो फिर खड़ी होकर मुकाबले में आ गई!  
 प्रदेश के इन सारे हालातों को देखते हुए लगता है कि दोनों ही पार्टियों में मंथन का दौर तेजी से चल रहा है। कोई भी ये मौका चूकना नहीं चाहता! 'मिशन-2018' के लिए दोनों ही पार्टियों ने अपने प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी दोनों को बदलने की तैयारी कर ली है। ये बदलाव कब होगा, इस बात का दावा नहीं किया जा सकता! लेकिन, ये होना अवश्यम्भावी है। क्योंकि, दोनों ही पार्टियां जिसे भी कमान सौंपेगी, उन्हें चुनावी तैयारी और रणनीति बनाने के लिए पर्याप्त समय देना भी जरुरी होगा। भाजपा प्रदेश की सत्ता में है, इसलिए उसके सामने संगठन को संवारना बड़ा संकट नहीं है! लेकिन, कांग्रेस को फेरबदल में गुटीय संतुलन बनाने के साथ चुनाव जीतने वाले चेहरों को भी खोज करना है। आने वाले कुछ दिन प्रदेश में दोनों ही पार्टियों के लिए तलवार की धार पर चलने जैसे हैं! कारण कि हर बदलाव यदि किसी को खुश करता है तो नाराज होने वाले भी कम नहीं होते! ऐसे में संतुलन बनाकर अपने फैसलों को सही साबित करना दोनों पार्टियों के हाईकमानों के लिए चुनौती होगा!
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