- हेमंत पाल
उन्होंने कभी कमिश्नरी नहीं झाड़ी! ...बल्कि एक विचारक की मानिंद वे नई योजनाओं को आकार देने और जमीन पर लाने के लिए दौड़भाग करते नजर आए है। वे जानते है कि सरकारी तंत्र में रहते हुई भी तंत्र की बाधाओं का सामना कैसे करना है। उनसे पार कैसे पाना है। वे इंदौर संभाग के कमिश्नर हैं, पर एक सामाजिक कार्यकर्ता की तरह नई योजनाओं को ऐसे आकार दिया, जिसने हर किसी के दिल को छू लिया। संभाग में कमिश्नर की भूमिका समीक्षक की होती है। उसे अपने अधिकार क्षेत्र के जिलों में चल रही योजनाओं और कानून व्यवस्थाओं पर नजर रखना पड़ती है।
इंदौर कमिश्नर संजय दुबे ने पिछले करीब तीन सालों में इस मिथक को तोड़ दिया। जनहित को लेकर उन्होंने कई ऐसे अनूठे काम किए, जो भविष्य में मील के पत्थर बनेंगे। अंगदान, विद्यादान और अब भोजनदान जैसी योजनाएं संजय दुबे की ही देन है। अब वे नई योजना सामने ला रहे हैं, जो पैक्ड फूड प्रोडक्ट की मियाद खत्म होने से पहले उसका उपयोग किए जाने से जुडी है। सही मायने में कमिश्नर संजय दुबे की इस योजना को देखते हुए कहना ही पड़ा वाह क्या शानदार आईडिया है सरजी।
'सुबह सवेरे' से बात करते हुए उन्होंने बताया कि हर व्यक्ति समाज को कुछ न कुछ लौटाना चाहता है। लेकिन, उसे सही रास्ता नहीं मिलता। प्रशासन ने अब उसके सामने कई विकल्प रख दिए हैं। जिस कार्य में भी व्यक्ति अपना सेवाभाव दशार्ना चाहता है, दिखा सकता है। अपनी नई योजना के बारे में संजय दुबे ने बताया कि अंगदान, विद्यादान और भोजनदान के बाद अब वे ऐसे पैक्ड फूड को सस्ती कीमत पर उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराने की तैयारी कर रहे हैं, जिसकी मियाद कुछ दिनों बाद खत्म होने वाली है। बड़ी-बड़ी दुकानों और शॉपिंग मॉल में कुछ पैक्ड फूड प्रोडक्ट ऐसे होते हैं, जिनकी मियाद कम होती है। यदि सामग्री बिकती नहीं तो मियाद खत्म होने के बाद निमार्ता कंपनी उन्हें बदलकर देती है। ऐसे में दुकानदार को तो नुकसान नहीं होता! लेकिन, निर्माता कंपनी पर दोहरी मार पड़ती है। उसे ये सामग्री नष्ट करना पड़ती है। संजय दुबे इसे राष्ट्रीय क्षति मानते हैं और भोजन की इस बर्बादी को बचाना चाहते हैं। उनका विचार है कि ऐसे पैक्ड फूड को मियाद खत्म होने से कुछ समय पहले ही कम कीमत पर बेचकर स्टॉक खत्म कर दिया जाए। इससे निमार्ता कंपनियों को भी नुकसान नहीं होगा और भोजन की बबार्दी भी बचेगी! अभी इस योजना का प्रारूप बन रहा है।
कई योजनाओं के सूत्रधार
कमिश्नर संजय दुबे ने इंदौर में कई उल्लेखनीय काम किए हैं। उनकी योजनाओं को शहर में साकार रूप इसलिए भी मिला कि इस शहर के लोग सेवाभावी है। जब लोगों को लगा कि बाहर से आया कोई अफसर उनके शहर के लिए कुछ कर रहा है तो वे भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़े हो गए। 'अंगदान' के मामले में कमिश्नर संजय दुबे की भूमिका और सजगता को देशभर में सराहा गया। ब्रेन-डेथ व्यक्ति के परिवार को शरीर के कुछ अंगों का प्रत्यारोपण करने के लिए राजी करना आसान नहीं होता! पर, उनका ये प्रयास सफल हुआ अभी तक 20 से ज्यादा बार अंग प्रत्यारोपण की योजनाएं सफल हो चुकी है। 'विद्यादान' भी ऐसी ही योजना है, जो शिक्षादान से जुडी है। इसमें उच्च शिक्षित युवाओं को प्रेरित किया जाता है कि वे सरकारी स्कूलों में बच्चों को अपनी सुविधा से कुछ देर पढ़ाएं। इसी श्रृंखला में एक योजना है 'भोजन दान।' इसमें इसमें विभिन्न आयोजनों में बचे हुए भोजन को जरूरतमंदों में बांटा जाता है। अब इस दिशा में एक नई पहल ये हुई कि शहर की कई बड़ी होटलों ने इसमें सहयोग शुरू कर दिया। इसके अलावा अब दान में मिले भोजन को संरक्षित करने के लिए व्यवस्थाएं भी मुहैया हो गई हैं। भोजन संरक्षण के लिए कोल्ड स्टोर भोजन इकट्ठा करने के लिए आहार वेन भी उपलब्ध हो गई है।
भोजन की बर्बादी रोकी
कमिश्नर संजय दुबे बताते हैं अकसर देखा गया है कि विवाह समारोहों और ऐसे आयोजनों में भोज का आयोजन होता है। कई बार बचा भोजन फेंक दिया जाता है या मवेशियों को खिला दिया जाता है। जबकि, शहर में हजारों लोग भूखे सोने पर मजबूर हैं। यही स्थिति होटलों के सामने में आती थी। फेंके गए भोजन के सड़ने से हानिकारक गैसें भी बनती हैं, जिससे पर्यावरण बिगड़ता है। ऐसे में इस भोजन को जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए माकूल व्यवस्था की गई। इसके लिए 'आहार-एप' बनाया गया था। अब इस 'एप' को उज्जैन और देवास से जोड़ा जा रहा है। इसके लिए 'राबिनहुड आर्मी' नाम से एक टोली बनी है, जो सूचना मिलने पर तत्काल कार्रवाई करती हैं और भोजन लाकर जरूरतमंदों तक पहुंचाती हैं। अभी तक दान में मिले भोजन का निराकरण तत्काल करना पड़ता था, ताकि खराब होने से पहले उसका उपयोग हो जाए। लेकिन, अब भोजन के संरक्षण के इंतजाम कर लिए गए हैं। कमिश्नर ने बताया कि इंदौर प्रदेश का पहला जिला जहां खाने को संरक्षित रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था की गई है।
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