राजनीति में गुटबाजी नई बात नहीं है! जितने नेता, उनके उतने समर्थक और उतने ही गुट! ऐसा कम ही देखने में आता है कि किसी एक मुद्दे पर सभी गुट एक छतरी के नीचे आएँ! लेकिन, इंदौर के एक सौ साल पुराने तालाब को बचाने के लिए भाजपा के सभी गुट एकमत हो गए! जो नेता एक-दूसरे को फूटी आँखों नहीं सुहाते थे, वे भी पिपलियाहाना तालाब को बचाने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो गए! यहाँ तक कि इस मुहिम में भाजपा और कांग्रेस के विधायकों के साथ सांसद सुमित्रा महाजन भी शामिल हैं! समाजसेवी, पर्यावरणविद, स्थानीय नागरिक, पूर्व न्यायाधीश भी तालाब के मूल स्वरुप के साथ छेड़छाड़ के खिलाफ हैं! विरोध स्वरुप जल सत्याग्रह भी जारी है। ये पूरा संघर्ष सरकार के खिलाफ छिड़ा है, जो सारे नियमों और जन विरोधों को नजरअंदाज करके आधा तालाब मूंदकर जिला कोर्ट बनवा रही है। एक तरफ जब देशभर में पुराने तालाबों को सँवारने के प्रयास हो रहे हैं, सरकार इस तालाब को मूंदने वालों के साथ खड़ी है!
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हेमंत पाल
एक सामान्य परंपरा है कि जिस पार्टी की सरकार होती है, वो अपने नेताओं की बात को तवज्जो देते हैं! अंतिम फैसला उनकी ही बात सुनकर होता है। लेकिन, इंदौर के पिपलियाहाना तालाब को लेकर भाजपा के विधायकों की बात पर सरकार कान नहीं धर रही! किसी की बात नहीं सुनी जा रही! सरकार ने सभी जनप्रतिनिधियों को हाशिए पर रख दिया है। ये तालाब महेंद्र हार्डिया के क्षेत्र क्रमांक-5 में स्थित है! सबसे पहले उन्होंने ही इंदौर विकास प्राधिकरण के संचालक राजेश उदावत के साथ तालाब का स्वरुप बदलकर जिला कोर्ट की बिल्डिंग बनाने का विरोध किया था! लेकिन, न तो प्रशासन ने उनकी बात सुनी और न सरकार ने! इसके बाद इंदौर के बाकी भाजपा विधायक रमेश मेंदोला, उषा ठाकुर, सुदर्शन गुप्ता और राजेश सोनकर भी साथ आ गए! सांसद सुमित्रा महाजन ने भी तालाब के मुद्दे पर विधायकों का साथ दिया, पर सरकार अभी तक अड़ी है। आशय यह कि प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार है, उसी पार्टी के विधायक और सांसद विरोध का झंडा लेकर खड़े हैं! भाजपा नेताओं की इससे ज्यादा मज़बूरी क्या हो सकती है कि इंदौर की राऊ विधानसभा के अकेले कांग्रेसी विधायक जीतू पटवारी को आगे करना पड़ा! भाजपा नेताओं की मज़बूरी समझकर सामाजिक मुद्दों पर आवाज उठाने वाले आरटीआई कार्यकर्ता किशोर कोडवानी को आंदोलन से जुड़ना पड़ा! इस सबके बावजूद सरकार खामोश है।
सरकार की हठधर्मिता से शहर और खासकर इस इलाके के लोग बेहद नाराज हैं। उनका विरोध है कि सौ साल पुराना पिपलियाहाना तालाब खत्म हुआ तो आसपास का जलस्तर भी गिर जाएगा! इस तालाब बचाने के लिए लोगों ने जल-सत्याग्रह शुरू कर दिया है। बरसते पानी में समाजसेवी, जनता, नेता सभी तालाब के किनारे बैठे हैं। समाजसेवी किशोर कोडवानी ने तो इस मुद्दे को मुहिम बना डाला! पीपल्याहाना तालाब में बन रही जिला कोर्ट की बिल्डिंग का चारों तरफ विरोध है। वकीलों के संगठन, तालाब बचाओ संघर्ष समिति, कांग्रेस-भाजपा के नेता, समाजसेवी, पर्यावरणविद, सामाजिक व व्यापारिक संगठन के पदाधिकारी के साथ आसपास के रहवासियों ने मोर्चा खोल रखा है। इस पुराने तालाब को बचाने की मुहिम शहर में ऐसा मुद्दा बन गई, जिसमें सरकार को छोड़कर सभी साथ खड़े हैं।
भारतीय भू-सर्वेक्षण विभाग के रिकॉर्ड में पूर्वी इंदौर का पीपल्याहाना तालाब 28 हेक्टेयर क्षेत्र में चिह्नित है। पूर्वी रिंग रोड और बायपास के बीच स्थित इस तालाब की उम्र करीब सौ साल बताई जा रही है। इसी तालाब की आधी जमीन पर जिला कोर्ट की हाईटेक बिल्डिंग बनाने का काम किया जा रहा है! ये पूरा प्रोजेक्ट 600 करोड़ बताया जा रहा है, जिसमें 280 करोड़ की लागत से कोर्ट बिल्डिंग बनना है। ख़ास बात ये है कि ये काम मुख्यमंत्री के सबसे नजदीकी माने जाने वाले 'दिलीप बिल्डकॉन' को दिया गया है! सवाल उठता है कि क्या सिर्फ यही कारण है कि इतने विरोधों के सामने सरकार और प्रशासन के मुँह पर ताला लगा है?
इंदौर की सांसद और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की राजनीति अमूमन चिट्ठी-पत्री तक सीमित रहती है। लेकिन, पहली बार वे मुखरता से सामने आईं! उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखने के साथ उनसे मिलकर अपना विरोध भी दर्ज करवाया! इंदौर के सभी विधायकों को बुलाकर बैठक भी की! पद्मश्री जनक पलटा, पद्मश्री भालू मोंढे, पद्मश्री सुशील दोषी, पद्मश्री कुट्टी मेनन भी इस तालाब को बचाने की मुहिम में शरीक हैं। तालाब की इस जमीन पर जिला कोर्ट की बिल्डिंग बन रही है, लेकिन वकील भी इसके समर्थन में नहीं हैं। हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश ने भी सरकार से बजाए हाईटेक कोर्ट बनाने के त्वरित न्याय की जरुरत को ज्यादा जरुरी बताया! जबकि, हाई कोर्ट के तीन पूर्व न्यायाधीश केके लाहोटी, पीडी मूल्ये और शंभू सिंह ने भी सरकार की कार्रवाई का विरोध किया! इंदौर बार एसोसिएशन और वकीलों की संघर्ष समिति भी शहर से इतनी दूर एक किनारे पर जिला कोर्ट की बिल्डिंग बनाने के खिलाफ है! उनका कहना है कि जब शहर की सांसद, विधायक, समाजसेवी, पार्षद, पर्यावरणविद और स्थानीय लोग इस कोर्ट बिल्डिंग के खिलाफ हैं तो सरकार मान क्यों नहीं रही? वकीलों ने एकमत होकर कहा कि पीपल्याहाना में कोर्ट बिल्डिंग बनने से जहां तालाब नष्ट हो जाएगा, वहीं वर्तमान कोर्ट शिफ्ट होने से पक्षकारों से लेकर सभी को परेशानी होगी। वकीलों के विरोध का असर ये हुआ कि कांग्रेस के कोटे से नए बने राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा ने बिना फीस लिए सुप्रीम कोर्ट में पैरवी भरोसा दिलाया है। जीतू पटवारी और स्थानीय लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। अब इंदौर नगर निगम ने भी तालाब बचाने की इस मुहिम में साथ देने का फैसला किया है। 15 जुलाई को बजट पेश होने के बाद तालाब बचाने का प्रस्ताव लाने की बात सामने आई है। सभापति अजय नरूका के मुताबिक सभी 85 पार्षदों की स्वीकृति के बाद इसे जिला योजना समिति के पास भेजा जाएगा!
इंदौर के अकेले कांग्रेसी विधायक जीतू पटवारी भी तालाब में पैर डालकर बैठे हैं! जीतू का कहना है कि जनता और समाजसेवियों की कोशिशों के बावजूद सरकार तालाब को नाला बनाने पर अड़ी है। इस मुद्दे पर 'राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण' (एनजीटी) के निर्देशों का सरेआम उल्लंघन किया जा रहा है। जिस तेजी से आधे तालाब को मूंदकर कोर्ट की बिल्डिंग बनाई जा रही है, वह चौंकाने वाला है। आवास एवं पर्यावरण विभाग ने जनवरी 2011 में उपरोक्त जमीन को कोर्ट बिल्डिंग के लिए देने पर आपत्ति जताते हुए उसे तालाब की ही जमीन माना था। उसे भी नजरअंदाज किया गया? शहर के पर्यावरण प्रेमियों ने 'द नैचर वॉलेंटियर्स' के अध्यक्ष भालू मोंढे के नेतृत्व में तालाब पर हो रहे निर्माण का कड़ा विरोध कर इसे तुरंत रोकने और इस विरासत को बचाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के नाम ज्ञापन सौंपा। शहरभर के विरोध के बावजूद निर्माण के काम पर कोई असर नहीं पड़ा! इसलिए कि सरकार जिसके साथ है, उसका कोई क्या बिगड़ेगा? वैसे मुख्यमंत्री ने विधायक महेंद्र हार्डिया को भरोसा जरूर दिलाया है कि जल्दी ही इस बारे में फैसला किया जाएगा! मुख्यमंत्री ने कमिश्नर से तालाब को लेकर रिपोर्ट मांगी है! देखना है अब झुकता कौन है? जनआंदोलन के सामने सरकार झुकती है या विरोध को झुकाकर तालाब की जमीन पर जिला कोर्ट की बिल्डिंग तान दी जाती है?
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