Sunday, July 24, 2016

घरों में अब नहीं गूंजते टाइटल सांग

- हेमंत पाल 
  टाइटल सांग किसी भी टीवी सीरियल की जान होते हैं। ये सांग किसी बड़े शोरूम की शो-विन्डो की तरह होते हैं, जिसे देखकर शोरूम की भव्यता का अंदाजा लगता है। वैसे ही जैसे किसी फिल्म का ट्रेलर या प्रोमो! लेकिन, आज शायद ही किसी सीरियल की शुरूआत टाइटल सांग होती हो! याद कीजिए 90 के दशक के सर्वाधिक सफल सीरियल 'महाभारत’ का शीर्षक गीत 'अथ श्री महाभारत कथा' आज भी कानों में गूंजता है। 'रामायण’ का टाइटल सांग' भी अद्भुत था 'महिमा दो अक्षर के नाम की’ के बोल और संगीत तो कानों में रस घोलते थे। रुडयार्ड किपलिंग की कहानी पर आधारित 90 के दशक के मशहूर सीरियल 'जंगल बुक' का टाइटल सांग 'जंगल जंगल बात चली है पता चला है ऐसे ...!' आज भी सबके ज़हन में ताज़ा होगा! ‘जंगल बुक’ के अलावा भी गुलज़ार ने गुजरे जमाने के कई यादगार सीरियलों के टाइटल गीत लिखे! ‘पोटली बाबा की’ का टाइटल सांग ‘घुंघर वाली झेनू वाली झुन्नू का बाबा, किस्सों का कहानियों का गीतों का झाबा’ भी बड़ी उम्र के दर्शकों को बचपन में ले जाता था!
    छोटे परदे पर किसी भी सीरियल का हिट होने का एक फार्मूला टाइटल सांग भी होता था। सांग हिट तो सीरियल भी हिट! टाइटल सांग के पीछे संगीतकार और लेखक की मेहनत भी नजर आती थी! इसमें पूरे सीरियल की कहानी छुपी होती थी। लेकिन, आजकल ये ट्रेंड लगभग खत्म सा हो गया! प्रतिस्पर्धा के चक्कर में एक सीरियल के ख़त्म होते ही सीधे दूसरा सीरियल ऐसे चालू कर दिया जाता है जैसे वही सीरियल चल रहा हो! प्रतिस्पर्धा के चक्कर में चैनल दर्शकों को रिमोट को हाथ लगाने का मौका भी नहीं देते! दरअसल,ये सब टीआरपी बढ़ाने का खेल है। इसी टीआरपी की भेंट टाइटल सांग भी चढ़ गए। बढ़ते विज्ञापन और चैनलों के दौर में हर चैनल चाहता है कि दर्शक उसी से बंधे रहें! पिछले कुछ सालो में धीरे-धीरे लगभग सभी मनोरंजन चैनलों ने सीरियलों के टाइटल सांग ख़त्म कर दिए! 
  टाइटल सांग से सजे सीरियलों का एक जमाना था, जब हर घर में दूरदर्शन का राज चलता था! आज की तरह निजी चैनलों का दबदबा नहीं था! दूरदर्शन के सीरियल ही पूरे परिवार की पसंद हुआ करते थे! लोग सीरियलों के टाइटल सांग फ़िल्मी गीतों की तरह गुनगुनाते रहते थे! उस दौर में जैसे ही सीरियल शुरू होता, हर घर से टाइटल सांग्स गूंजने लगते। आज ये सब सुनाई नहीं देते! क्योंकि, टाइटल सांग का समय भी कमर्शियल हो गया! सीरियल का टाइटल सांग उसके कथानक का ही एक हिस्सा होता है, जो सीरियल की छवि दर्शाता है। 1984 में बने सीरियल 'ये जो है जिंदगी' को जरा याद करो! ये मध्यमवर्गीय परिवार से जुड़े किरदारों के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता था! इसके टाइटल सांग 'जिंदगी ये जो है जिंदगी, मिले और मिलते यहाँ अनमेल, सदियों से है यही खेल ...' को किशोर कुमार ने अपनी आवाज़ से सजाया था! इंडियन टेलीविज़न का पहला सोप ओपरा कहे जाने वाले 'हम लोग' के किरदारों के साथ तो आम दर्शकों ने अपने आपको समाहित ही कर लिया था। इसका टाइटल सांग 'कहीं तो है सपने और कहीं याद, कहीं तो है सारे कहीं फ़रियाद, पलछिन पलछिन तेरे मेरे जीवन की यही बुनियाद ...!' भी वो सबकुछ कह देता था, जो सीरियल का मूल कथ्य था! कुछ सीरियलों के टाइटल सांग तो ऐसे थे, जिनमें सिर्फ कोई शब्दजाल ही नहीं था, फिर भी वे लोकप्रिय हुए! आरके नारायण की कहानियों पर बने सीरियल 'मालगुडी डेज' का टाइटल सांग था 'तन्ना न तन्ना न न न … !' इसकी धुन इतनी मधुर थी कि याद आते ही आज भी कानों में गूंजने लगती है।
 जब टीवी के मनोरंजन संसार का बंटवारा हुआ और दूरदर्शन के मुकाबले में निजी चैनल उतरे तो शुरुआती दौर बहुत कुछ पुराने जैसा ही था! एकता कपूर के दो बड़े सोप ओपरा 'क्योंकि सास भी कभी बहुत थी' और 'कहानी घर घर की' ने महिलाओं को सबसे ज्यादा आकर्षित किया! दोनों ही सीरियलों के टाइटल सांग भी कर्णप्रिय थे! 'क्योंकि सास भी कभी बहुत थी' में तुलसी (स्मृति ईरानी) का घर का दरवाजा खोलते ही सांग शुरू होता था 'रिश्तों के भी रूप बदलते हैं ... नए नए सांचे में ढलते हैं!' जबकि, 'कहानी घर घर की' में 'रिश्तों की पूजा जहाँ हो, आदर बड़ों हो ... भीगे जो ममता का आँचल, आँसू बने गंगाजल' ठेठ पारिवारिक माहौल बना देते थे! लेकिन, पिछले कुछ सालों से तो सीरियलों के टाइटल सांग गायब ही हो गए! 90 सेकंड का वो वक़्त भी बिक गया! टाइटल सांग की जगह विज्ञापन दिखाए जाने लगे! सीधे शब्दों में कहें तो अब सीरियलों का वो दरवाजा ही बंद हो गया, जिसके खुलने के बाद दर्शक उस दुनिया में प्रवेश करते थे और उस काल्पनिक दुनिया में खो जाते थे!
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