स्मृति शेष : मुबारक बेगम
- हेमंत पाल
कला और कलाकारों के प्रति सरकार का रवैया कैसा है, ये मुबारक बेगम की मौत ने सामने ला दिया! मुबारक बेगम की मौत ने एक बार फिर सरकार का संवेदनहीन रवैया सामने ला दिया। इससे पहले एके हंगल, ललिता पंवार, टुनटुन और साधना भी ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने अपना आखरी समय अभाव में गुजारा और इस दुनिया से गुमनामी से बिदा हो गए। जो लोग इस चमकती दुनिया की जगमगाहट देखकर इसके प्रति आकर्षित हो रहे हैं, उन्हें इन लोगो का अंत भी देखना चाहिए!
एक वक्त अपनी आवाज से लाखों दिलों पर राज करने वाली पार्श्व गायिका मुबारक बेगम का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया! 80 साल की मुबारक बेगम कई दिनों से बीमार थीं। पिछले साल बेटी की मौत के बाद से वे सदमे में थीं! लेकिन, मुबारक बेगम को गम से ज्यादा अभाव ने मार दिया! बेरोजगार बेटे के साथ रह रही इस पार्श्व गायिका के पास इलाज कराने तक के पैसे नहीं थे! उनको जो 800 रुपए पेंशन मिलती थी, वही एक सहारा था! महाराष्ट्र सरकार ने इलाज का खर्च उठाने का वादा किया, पर ऐसा कुछ हुआ नहीं! प्रदेश के संस्कृति मंत्री के आश्वासन पर मुंबई के अंधेरी के एक अस्पताल में भर्ती मुबारक बेगम के परिवार से सांस्कृतिक विभाग के एक अधिकारी ने मुलाकात भी की और इलाज के लिए मदद का आश्वासन दिया! पर बताते हैं कि कोई मदद नहीं पहुंची! 2011 में जरूर महाराष्ट्र सरकार ने बदहाली और बीमारी से जूझ रहीं मुबारक बेगम को एक लाख रुपए की मदद दी थी! लेकिन, इसके बाद कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया!
1950 से 1970 के दशक में फिल्मों के कई गीतों एवं गजल गाने वाली इस बेगम सेहत काफी दिन से ख़राब थी! उन्होंने 1949 में आई फिल्म ‘आये’ के साथ अपने पार्श्व गायन की शुरूआत की थी! बेगम ने गीत ‘मोहे आने लगी अंगड़ाई आजा आजा’ और स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ ‘आओ चलें सखी वहां’ भी गाया! 50 से 60 के दशक में श्रेष्ठ संगीत निर्देशक एसडी बर्मन, शंकर जयकिशन एवं खय्याम के साथ बेगम ने कई फिल्मों के लिए गाया! इनमें 1963 की फिल्म 'हमराही' का लोकप्रिय गीत 'मुझको अपने गले लगा लो' भी शामिल है। मुबारक बेगम दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं, लेकिन उनकी मखमली आवाज का जादू शायद ही कभी कम होगा। मुबारक बेग़म ने 50 से 60 के दशक में करीब 115 फिल्मों में 175 से ज्यादा गीत गाए!
मुबारक बेगम ने बिमल रॉय की ‘देवदास’ में ‘वो ना आएंगे पलटकर’ गाया था, जिसके संगीतकार बर्मन थे! बिमल रॉय ने 1958 में बनी ‘मधुमती में भी बेगम की आवाज का उपयोग किया। जिसमें उन्होंने ‘हम हाल-ए-दिल सुनाएंगे’ गीत सबसे ज्यादा पसंद किया गया। इस फिल्म के संगीतकार सलील चौधरी थे। तनुजा की फिल्म ‘हमारी याद आएगी’ का गीत ‘कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी’ को बेगम के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में गिना जाता है। आशा भौंसले के साथ गाया ‘हमें दम दईके’ और ‘नींद उड़ जाए तेरी’ भी उनके सदाबहार गीतों में शामिल हैं। 1980 में रिलीज हुई फिल्म ‘रामू तो दीवाना है’ में बेगम ने ‘सांवरिया तेरी याद में’ गीत गाया था, जो उनका आखरी गीत था।
लाखों दिलों पर राज करने वाली और बॉलीवुड को पहचान देने वाली इस गायिका को उनके अंतिम दिनों में किसी ने नहीं पूछा! न तो सरकार ने सुध ली और न बॉलीवुड ने! उन्होंने 23 साल तक फिल्म इंडस्ट्री में काम किया! सरकार ने मदद नहीं की, ये तो सभी जानते हैं, पर करोड़ों और अरबों का कारोबार करने वाले बॉलीवुड में क्या किसी में इतनी संवेदना नहीं कि इस वृद्ध पार्श्व गायिका का इलाज भी हो सके?
मुबारक बेगम के लोकप्रिय गीत
- कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी (हमारी याद आएगी)
- मुझको अपने गले लगा लो (हमराही),
- वह न आएंगे पलटकर (देवदास)
- मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही (हमराही)
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