Friday, July 1, 2016

भाजपा के गले की फाँस है 'बुंदेलखंड' मुद्दा


हेमंत पाल 

  मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की राजनीति में कोई बात कॉमन नहीं है! दोनों राज्यों की सीमाएं जुडी है, पर राजनीतिक तासीर में जमीन-आसमान का अंतर है! सिर्फ एक मुद्दा ऐसा है, जो दोनों राज्यों की राजनीति के लिए सरदर्द बना है! ये है 'बुंदेलखंड' को अलग राज्य बनाने का! मध्‍य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों को मिलाकर अलग 'बुंदेलखंड' राज्य बनाने की मांग बरसों से हो रही है! बरसों से सुलग रहे इस मुद्दे को उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले फिर हवा दी जाने लगी है। उस हवा के प्रभाव से मध्यप्रदेश भी अछूता नहीं रहेगा! क्योंकि, उत्तरप्रदेश का जो बुंदेलखंड इलाका मध्य प्रदेश से लगा है, वहां सरगर्मी तेज हो गई है! पृथक राज्य के लिए आंदोलन कर रहे 24 संगठनों ने कमर कस ली है। मध्य प्रदेश में इस मांग को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नकार चुके हैं। लेकिन, उमा भारती ने जब झाँसी से लोकसभा चुनाव लड़ा था, उस दौरान जोर-शोर से 'बुंदेलखंड' को राज्य बनाने की मांग का समर्थन किया था! यदि भाजपा ने उत्तर प्रदेश चुनाव के मद्देनजर कोई फैसला कर लिया तो शायद मध्य प्रदेश को भी झुकना पड़ेगा। 'बुंदेलखंड' इलाका 1914 से अस्तित्व में आया था। अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे बुंदेलखंड इलाके में लगभग पांच करोड़ की आबादी और 70 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र आता है। अंग्रेजी शासन के दौरान ये अलग प्रदेश ही था।

00000
   बुंदेलखंड इलाका दो राज्यों उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश बंटा है। लेकिन, सांस्कृतिक दृष्टि से यह एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। रीति रिवाजों, भाषा और विवाह संबंधों ने इस एकता को और भी मजबूत कर दिया। संभावना है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विभाजित `बुंदेलखंड` को जल्दी ही पृथक राज्य का दर्जा मिल सकता है। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में 'बुंदेलखंड' को लेकर कोई घोषणा की जाना भाजपा की मज़बूरी बन गया है। केंद्र में मंत्री उमा भारती ने लोकसभा चुनाव के दौरान हर चुनाव सभा में बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की घोषणा की थी! यही वजह है कि यहां के लोगों को अलग राज्य बनने की उम्मीद जागी है। लेकिन, उमा भारती का बाद का बयान उनके पुराने रूख से अलग है। उन्होंने पृथक बुंदेलखंड से मध्यप्रदेश जिलों को अलग रखने की बात की! मध्यप्रदेश के 'बुंदेलखंड' विरोधियों का तर्क रहा है कि अलग बुंदेलखंड राज्य का निर्माण आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं है! इस समय मध्यप्रदेश के खजाने में इसका योगदान केवल 9 फीसदी है, जबकि व्यय 36 फीसदी! मध्यप्रदेश सरकार का रुख बुंदेलखंड के पक्ष में नहीं है। यही कारण है कि कई भाजपा नेता बुंदेलखंड के पक्ष में होते हुए भी चुप हैं! भाजपा का कोई नेता पार्टी नजरिए खिलाफ सामने आने की हिम्मत तो करने से रहा! अभी मध्यप्रदेश में चुनाव में देरी है, इसलिए मसले पर ख़ामोशी है! लेकिन, कि ये चुनौती भाजपा को उत्तरप्रदेश चुनाव में झेलनी पड़ेगी! बाद में जिसकी आंच मध्यप्रदेश में भी आएगी! क्योंकि, तेलंगाना के अलग राज्य बनने के बाद बुंदेलखंड की मांग ने तेजी पकड़ ली है। 
  लोकसभा चुनाव के समय उमा भारती ने बुंदेलखंड राज्य को लेकर जो चुनावी घोषणा थी, अब वो भाजपा के लिए मुसीबत बन गई है! इस मुद्दे पर आंदोलन करने वालों का तर्क है कि भाजपा अब कोई भी बहाना नहीं बना सकती! क्योंकि, केंद्र और मध्यप्रदेश दोनों जगह भाजपा की ही सरकार है। इस बार समाजवादी पार्टी को भी अलग बुंदेलखंड का समर्थन कर ही होगा! बहुजन समाज पार्टी तो पिछली बार ही राज्य विधानसभा में अपने समर्थन का पक्ष रख ही चुकी थी! लेकिन, उमा भारती ने केंद्रीय मंत्री बनने के बाद नए राज्‍य से मध्यप्रदेश के प्रस्‍तावित जिलों के नाम हटाने की बात करके नई बहस छेड़ दी थी। उमा भारती का कहना था कि 'बुंदेलखंड' में मध्यप्रदेश से सागर, छतरपुर, पन्ना, दमोह, दतिया और टीकमगढ़ और उत्तरप्रदेश से झाँसी, ललितपुर, हमीरपुर, बांदा, जालौन, चित्रकूट और महोबा जिले होंगे। 'बुंदेलखंड' तो बनेगा, लेकिन इसमें से मध्यप्रदेश के जिलों के नाम हटाए जा सकते हैं। 
  उन्होंने ऐसा क्यों कहा इसके पीछे कोई तार्किक आधार नजर नहीं आता! उमा भारती केंद्र में वजनदार मंत्री हैं! लेकिन, मध्यप्रदेश के जिलों को हटाकर नया बुदेलखंड बनाने का विचार कैंसे आया? क्‍या ये मध्यप्रदेश के उन भाजपा नेताओं के विरोध का नतीजा है, जो मध्यप्रदेश को टूटने देना नहीं चाहते! या फिर ये मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की वो मंशा है जो बुंदेलखंड को अलग राज्य का दर्जा देने के पक्ष में नहीं हैं! क्‍या इसमें बुंदेलखड के हिस्‍से की जन भावनाएं भी समाहित हैं? क्‍या मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके को नए राज्‍य में शामिल न होने में ही इस जिलों का भला होगा? ये ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब खोजे जाने हैं! जबकि, अभी तक जब भी पृथक बुंदेलखंड को लेकर आवाज उठी है, उसमें दोनों राज्यों के हिस्‍से के लोग शामिल रहे हैं। अभी उमा भारती की बात पर सरकार का कोई रुख सामने नहीं आया, पर ये बयान नया विवाद जरूर खड़ा करेगा! 
  आंध्र प्रदेश से अलग करके तेलंगाना को राज्य बनाने का फैसला सामने आते ही देशभर में छोटे राज्यों के लिए दशकों से चलते आ रहे आंदोलनों में नई जान आ गई थी! गोरखालैंड, विदर्भ, कार्बी आंगलांग, बोडोलैंड, पूर्वांचल, पश्चिम प्रदेश, अवध प्रदेश, हरित प्रदेश और बुंदेलखंड जैसे कई राज्यों के आंदोलनकारी संगठन खड़े हो गए। इस सबको देखते हुए सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या अब केंद्र सरकार को दूसरे राज्य पुनर्गठन आयोग की नियुक्ति का फैसला नहीं करना चाहिए? ये आयोग नए राज्यों के गठन की समस्या के राजनीतिक, भाषाई, सांस्कृतिक और प्रशासनिक सभी पहलुओं का अध्ययन करके दिशा तय करे! जब 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल बनाए थे, तब भी राज्य पुनर्गठन आयोग की बात उठी थी! इसके बाद मनमोहन सिंह की सरकार ने तेलंगाना के निर्माण को हरी झंडी दिखाई! यदि ये सब हो ही रहा है तो अन्य छोटे राज्यों के निर्माण की मांग की अनदेखी क्यों की जा रही है? नए राज्यों के निर्माण का तर्कसंगत आधार तैयार करने के लिए नए राज्य पुनर्गठन आयोग की जरुरत महसूस की जा रही है। पहला आयोग को दिसंबर 1953 में बनाया गया था, उसकी सिफारिशों की आधार पर ही 1956 में भाषाई राज्य बनाए गए थे। 
  पिछले महीने दिल्ली में बुंदेलखंड और विदर्भ को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर बड़ी बैठक भी हुई थी जिसमें आंदोलन की रुपरेखा बन चुकी है। 'नेशनल फेडरेशन फॉर न्यू स्टेट्स (एनएफएनएस) द्वारा शुरू किए गए ‘नए भारत के लिए नए राज्य’ अभियान में कार्यकारी अध्यक्ष और फिल्मकार राजा बुन्देला, मुनीष तमांग (महासचिव गोरखालैंड) तथा प्रमोद बोरो (संयुक्त सचिव बोडोलैंड) भी शामिल हुए। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में जनता के सामने विकल्प पेश करने का दावा करने वाले 20 छोटे दलों के महासंघ ने पूर्वांचल और बुंदेलखंड जैसे राज्यों के गठन की मांग को लेकर अभियान शुरू करने की घोषणा की है। महासंघ के संयोजक गोपाल राय के मुताबिक छोटे राज्य निर्माण का होने से विकास को बढ़ावा मिलेगा। पूर्वांचल में बेरोजगारी है, वही बुंदेलखंड में चिर सूखे कारण किसान भूखे मरने और आत्महत्या करने को मजबूर हैं। पृथक बुंदेलखंड और पूर्वाचल राज्य का निर्माण वक्त की जरूरत है। 
   मध्यप्रदेश के जिन छह जिलों को पृथक बुंदेलखंड से बचाने की बात हो रही है, वे खनिज संपदा के मामले में बहुत धनी हैं। मध्यप्रदेश सरकार नहीं चाहती की उसने छत्तीसगढ़ बनने से जो खोया है, उसकी पुनरावृत्ति हो! यही कारण है कि 'बुंदेलखंड' का विरोध किया जाता रहा है। पन्ना जिले से केंद्र सरकार को 700 करोड़ रुपए, जबकि मध्यप्रदेश सरकार को करीब 1400 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होता है। पन्ना सैकड़ों सालों से हीरा खदानों के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। यहां से अभी तक करीब 40 हजार कैरेट हीरा निकाला जा चुका है, जबकि अनुमान है कि 14 लाख कैरेट के भंडार अभी भी यहाँ मौजूद हैं। वहीं सागर, छतरपुर में तांबा, राक और चूना पत्थर, दतिया में सीसा अयस्क और गेरू मिट्टी, टीकमगढ़ में बैराइटिस और अभ्रक, पन्ना में अग्निरोधी मिट्टी आदि की प्रचुरता है। ये भी एक बड़ा कारण है कि मध्यप्रदेश बुंदेलखंड को जोड़े रखना चाहता है।  
----------------------------------------------------

No comments: