Tuesday, July 19, 2016

... न नेतागिरी जीती न हवाबाजी, जीती जनता!

पिपलियाहाना तालाब आंदोलन 


- हेमंत पाल

 पिपलियाहाना तालाब का स्वरूप बिगाड़कर वहाँ जिला कोर्ट की बिल्डिंग बनाने का काम तो बंद हो गया! इस फैसले का विरोध रंग लाया! दबाव के सामने सरकार को झुकना पड़ा! तालाब बच गया! अब इस आंदोलन का श्रेय लूटने वालों के बीच होड़ लग गई! सभी अपना झंडा ऊँचा रखने की कोशिश में हैं! भाजपा और कांग्रेस दोनों के नेता दावे करने में पीछे नहीं हट रहे! लेकिन, सच्चाई ये है कि न भाजपा जीती, न कांग्रेस! जीती है जनता और जनता की तरफ से आवाज बुलंद करने वाले किशोर कोडवानी! बल्कि, कुछ सवालों ने तो भाजपा को ही कटघरे में खड़ा कर दिया!
 स्थानीय भाजपा विधायक महेंद्र हार्डिया और राऊ के कॉंग्रेसी विधायक जीतू पटवारी आमने-सामने हैं! सुमित्रा महाजन के समर्थक भी 'ताई' के झंडे उठाने में देर नहीं कर रहे! यहाँ तक कि सांवेर विधायक राजेश सोनकर और क्षेत्र क्रमांक-1 के विधायक सुदर्शन गुप्ता के समर्थक भी अपने 'भैया' का गुणगान करने में पीछे नहीं हैं! पर, कोई किशोर कोडवानी और स्थानीय जनता को श्रेय नहीं दे रहा, जिनकी वजह से तालाब का काम रुका! शहर का हर भाजपा नेता श्रेय का साफा बांधकर घूम रहा है! जबकि, वास्तव में ये जीत स्थानीय लोगों के अलावा आरटीआई कार्यकर्ता किशोर कोडवानी की है! जल सत्याग्रह उन्होंने ही शुरू किया और अंत तक तालाब से पैर नहीं निकाले! तालाब स्थल से निर्माण बंद होने के बाद अब काम रुकवाने का श्रेय लेने का काम शुरू हो गया। क्षेत्र के भाजपा विधायक महेंद्र हार्डिया के समर्थकों ने भी रातों-रात होर्डिंग लगवा दिए! उधर, कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने भी सरकार को झुकाने में खुद की उपलब्धि प्रचारित करना शुरू कर दिया! उनके फोटो वाले होर्डिंगों से पूरा इलाका अटा पड़ा है।
  देखा जाए तो वास्तव में ये जीत भाजपा नेताओं को छोड़कर सभी की है। क्योंकि, प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार हो, उसी पार्टी के नेता विपक्ष जैसी भूमिका निभाएं, ये बात किसी के गले नहीं उतर रही! आखिर इस जिला कोर्ट की बिल्डिंग बनवाने में किसका इंट्रेस्ट था, ये सवाल बार-बार उठ रहा है! क्या कारण था कि इंदौर के सभी भाजपा नेताओं को एक मुद्दे पर सरकार के सामने विरोध में आना पड़ा? सारा शहर एक पाले में था और सरकार सामने! सरकार झुकी, ये सही है! पर, आखिर सरकार भी जिद पर क्यों अड़ी? आंदोलन खत्म होने के बाद भी ये सवाल तो जिंदा हैं और आगे भी रहेंगे!      
  पिपलियाहाना तालाब महेंद्र हार्डिया के क्षेत्र में है। इसलिए सबसे पहले विरोध भी उनकी तरफ से उठा! हार्डिया के एक नजदीकी नेता और आईडीए संचालक राजेश उदावत ने तो करीब 5 साल पहले तत्कालीन कलेक्टर विवेक अग्रवाल के सामने भी इस तरह की किसी कार्रवाई का विरोध किया था! लेकिन, जमीन पर जिला कोर्ट का काम  शुरू होने के बाद लम्बे समय तक कोई भाजपा नेता तालाब बचाने आगे नहीं आया! सांसद होते हुए भी सुमित्रा महाजन ने शुरू में आंदोलन करने वालों का साथ नहीं दिया! जब देखा कि मामला काफी बढ़ चुका है, तब उन्होंने मुख्यमंत्री से बात की! इस बीच राऊ के कॉंग्रेसी विधायक जीतू पटवारी ने भी तालाब बचाने के लिए मुहिम चलाई! जैसा कि वे हमेशा करते आए हैं। इसके बाद ही भाजपा के सभी नेता सड़क पर आए। सामाजिक और आरटीआई कार्यकर्ता किशोर कोडवानी ने इस मुद्दे को बहुत गंभीरता ही उठाया! इसी का नतीजा था कि सरकार झुकना पड़ा! उन्होंने जल सत्याग्रह भी किया और मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद भी डटे रहे! उनका तर्क भी सही था कि सरकारी दफ्तरों में सिर्फ कागज चलता है! जब तक पीडब्ल्यूडी का पत्र नहीं देखूंगा यहाँ से नहीं हटूंगा! बाद में अफसरों के समझाने के बाद ही वे सशर्त जल सत्याग्रह ख़त्म करने को राजी हुए!
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