Friday, July 29, 2016

जीत के टॉनिक के बाद भी कांग्रेस थकी और मायूस

   मध्यप्रदेश में कांग्रेस कहाँ है? जहाँ उसे होना चाहिए वहाँ से तो नदारद ही है। विधानसभा में विपक्ष की सशक्त भूमिका निभाने के बजाए कांग्रेस दुबकी सी लगती है? ताकतवर भाजपा के सामने छोटी-बड़ी कोई भी जीत कांग्रेस को उत्साहित नहीं करती? इतनी थकी और मायूस पार्टी कैसे चुनाव में मुकाबला कर पाएगी? ये वो सवाल हैं जो हर वो व्यक्ति पूछ रहा है, जो राजनीति की तासीर को समझता है! क्योंकि, प्रदेश में बारह साल के भाजपा शासन के दौरान कभी नहीं लगा कि विपक्ष के रूप के कांग्रेस कहीं मौजूद है! अभी तक जो कांग्रेस दिखाई दे रही है वो अपने आकाओं के नाम से बंटी पार्टी है! कहीं दिग्विजय कांग्रेस है, कहीं कमलनाथ के लोग तो कहीं ज्योतिरादित्य के दरबारी! जो बचे हैं, वो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का बिल्ला लगाए घूम रहे हैं! जिस कांग्रेस को राजनीति के मोर्चे पर भाजपा के खिलाफ ख़म ठोंककर खड़ा होना था, वो प्रायोजित लड़ाई लड़ने में व्यस्त हैं! विपक्ष की जो भूमिका सामने आई वो मीडिया को दिखानेभर को है। 

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हेमंत पाल 
  तीन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की लगातार हार के बाद भाजपा ने जश्न मनाया था कि कांग्रेस अब ख़त्म हो गई! भाजपा के लिए ऐसा करना जरुरी था! क्योंकि, उसे अपनी ताकत का अहसास हो गया था! लेकिन, इसके बावजूद कभी नहीं लगा कि कांग्रेस ने जवाबी हमला करते हुए भाजपा को अपनी ताकत दिखाई हो! संख्यात्मक मान से कांग्रेस के पास विधायक कम हों, लेकिन मुद्दे उठाने में कांग्रेस हमेशा छुपती और बचती ही रही! जबकि, इतिहास गवाह है कि एक वक्त लोकसभा में दो सीटों पर पहुंचकर भी भाजपा ने विपक्ष की कमी महससू नहीं होने दी थी। सीधी सी बात है, संख्या के बग़ैर भी विपक्ष अपनी मौजूदगी का अहसास करा सकता है। पर, क्या मध्यप्रदेश में कांग्रेस ऐसा कुछ कर पा रही है? प्रदेश में कांग्रेस की विपक्ष की भूमिका को लेकर पार्टी हाईकमान की ईमानदार समीक्षा जरुरी है। क्योंकि, कांग्रेस न तो हार से मायूस होती है न जीत से उत्साहित! गुटबाजी में बंटी, चापलूस नेताओं से घिरी, हवाबाज और कॉर्पोरेट कल्चर वाले समझौतावादी नेताओं को जबतक कांग्रेस किनारे नहीं करेगी, उसके फिर खड़े होने की उम्मीद बहुत कम है! 
    कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट के जरिए अपनी पार्टी के प्रभारी प्रतिपक्ष नेता बाला बच्चन को सिंहस्थ में हुए घोटाले को विधानसभा में उठाने की सलाह दी! उन्होंने कहा कि कांग्रेस विधायक दल को सिंहस्थ में हुए भ्रष्टाचार को विधानसभा में मजबूती से उठाना चाहिए। इसका सीधा सा आशय यही है कि उनको इस मुद्दे पर कांग्रेस की दलीलें कमजोर पड़ने अंदेशा होगा! इस मामले पर विधानसभा में जो हंगामा भी हुआ! पर, दिग्विजय सिंह की सलाह का एक मतलब ये भी है कि विधानसभा में कांग्रेस कोई भी मुद्दा ईमानदारी से नहीं उठा रही है! ये सच भी है। ऐसे कई मामले हैं, जिन पर सरकार को कांग्रेस कटघरे में खड़ा कर सकती थी, पर नहीं कर सकी!
  मध्यप्रदेश के लोग कांग्रेस को मिटते देखना नहीं चाहते! बल्कि, सशक्त विपक्ष के रूप में सरकार के सामने खड़ा देखना चाहते है! क्योंकि, यदि वास्तव में जनता ऐसा चाहती तो जो 50-55 विधायक सदन में नजर आ रहे हैं, वो भी नहीं होते! ये मुश्किल भी नहीं था! लेकिन, लोगों ने कांग्रेस को जो जिम्मेदारी दी थी, उसमें वो फेल ही रही! लोग भी कांग्रेस की लगातार हारों से खुश नहीं थे! उन्हें लगा कि इससे भाजपा में उच्श्रृंखलता आ रही है! ये सच भी था! यही कारण है कि झाबुआ लोकसभा की जीत के बाद जनता ने उसे कुछ निकायों में जीत का टॉनिक दे दिया! ये सब 'मिशन-2018' में संभलने के लिए ही है! इसके बावजूद कांग्रेस की आत्ममुग्धता में कोई कमी नहीं आई! इससे बड़ा आश्चर्य क्या होगा कि विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता लंबे समय से बीमार है, पर उसकी जगह किसी और को ये दायित्व नहीं सौंपा जा रहा! ये अकेली गलती नहीं है! बीते सालों में कांग्रेस ने भाजपा को पनपने का पूरा मौका दिया है। अब यदि पार्टी को अपनी गलतियां सुधारना है तो उसे अपनी ग़लतियों पर खुलकर बात करनी होगी। ईमानदार और युवा और ईमानदार नेताओं को सत्ता पक्ष के सामने खड़ा करना होगा! निर्वाचित प्रतिनिधियों में जान डालना होगी कि वे जनता में भरोसा अर्जित करें!  
  कागजों पर पार्टी अपने आपको कितना भी ताकतवर बताए, लेकिन सतह पर कांग्रेस की जड़ता टूटती नहीं दिखती! उसके दावों में राजनीतिक ख़ालीपन है। अच्छे भविष्य की कोई संभावना दिखाई नहीं देती! पिछले 12 सालों में प्रदेश में कांग्रेस ने हर नेता को मौका दिया! कोई भी पार्टी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा! कांग्रेस ऊपर से लेकर नीचे तक थकी नज़र आ रही है। यह मीडिया में बनी धारणा है या हकीकत कुछ और है? कांग्रेस कई बार हारी, टूटी और धूल झाड़कर फिर खड़ी हुई! अब भी खड़ी हो सकती है। पर उसके लिए आत्म शक्ति जरुरी है। राजनीति को ग़ौर से देखने पर लगता है कि कांग्रेस में कई स्तरों पर असंतोष पनप रहा हैं। लेकिन, इस असंतोष को को ठंडा करने के कोई प्रयास नहीं हो रहे! वास्तव में आज हर दल कांग्रेस जैसा हो गया है। देश की राजनीतिक हकीकत कांग्रेस कल्चर ही है। आज का राजनीतिक भारत कांग्रेस से कहीं ज्यादा 'कांग्रेस युक्त भारत' है। भाजपा में कई सांसद और विधायक कांग्रेस से ही आए हैं। यही कारण है कि दोनों पार्टियों के बीच सामंजस्य का पुल बन गया!  
   कांग्रेस के नेताओं के लिए इससे शर्मनाक क्या हो सकता है कि विधानसभा में कांग्रेस के सारे विधायक वो नहीं कर सके जो मंत्री पद से हटाए गए भाजपा के बाबूलाल गौर ने एक झटके में कर दिया! उन्होंने निकाय चुनाव में भाजपा की हार को जनता का मत करार दिया! मिट्टी मिले के मामले में भी गौर ने बचाव करने के बजाए सरकार पर सड़ा हुआ गेहूं बांटने का आरोप लगाया। उन्होंने विधानसभा में भोपाल और इंदौर में मेट्रो ट्रेन को लेकर सवाल उठाया था। संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाने पर उन्होंने नगरीय प्रशासन मंत्री को घेर लिया और कहा था कि यदि वे नगरीय प्रशासन मंत्री होते तो अब तक इंदौर-भोपाल में मेट्रो चल जाती! बजट पर सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए गौर ने कहा कि सरकार कर्ज लेकर घी पी रही है। उन्होंने सरकार की फिजूल खर्ची पर भी तल्ख टिप्पणी की और कहा कि सरकार 16 करोड़ रुपए की गाड़ी खरीद रही है, जो जरूरी नहीं! उन्होंने अनुपूरक बजट के प्रावधानों को लेकर भी सवाल उठाए। कहा कि इस साल जितने बजट (लगभग 1 लाख 50 हजार करोड़ रु.) का प्रस्ताव सरकार लेकर आ रही है, उसके बराबर तो प्रदेश पर कर्ज हो गया। गौर ने कोई नई बात नहीं की! पर क्या इतनी ही तल्खी से ये सवाल कांग्रेस नहीं उठा सकती थी? दरअसल, मध्यप्रदेश में आज स्थिति ये है कि कांग्रेस को कांग्रेस से ही लड़ना पड़ रहा है। हाल में मिली जीत से उसके पास एक बार फिर नया होने का मौका आया है। यदि अभी भी पार्टी नहीं संभली, तो एक दिन उसे फिर यू-टर्न लेना पड़ेगा! हो सकता है पिछले तीन चुनावों की तरह 2018 भी कांग्रेस के लिए न हो! पर, यदि है तो उसे अभी से साबित करके दिखाना होगा!  
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