Sunday, July 10, 2016

ग्लैमर के बहाने राजनीति का शगल


हेमंत पाल 

  ग्लैमर की दुनिया की एक तय उम्र होती है! खासकर अभिनेत्रियों के मामले में! ढलती उम्र के साथ वे दर्शकों की पसंद से बाहर हो जाती हैं! उनकी फिल्में पिटने लगती हैं, नई फ़िल्में मिलना बंद हो जाती हैं, मीडिया भी तवज्जो नहीं देता! लेकिन, कहा जाता है कि लोकप्रियता की चाह कभी कम नहीं होती! यही कारण है कि कुछ अभिनेत्रियां साख भुनाने के लिए राजनीति की तरफ मुड़ जाती हैं! लेकिन, सभी को मनचाही सफलता नहीं मिलती! वे चुनाव जीत भी जाती हैं, तो भी सत्ता में हिस्सेदारी का मौका नहीं मिलता! राजनीति में आने वाली हर अभिनेत्री की किस्मत स्मृति ईरानी जैसी नहीं होती, जो चुनाव हारकर भी मंत्री की कुर्सी पर नवाज दी जाती हैं! जबकि, स्मृति न तो कभी फिल्मों में काम किया और न उनके पास कोई बड़ी फैन फॉलोइंग थी! उनके खाते में एक सोप ऑपेरा और एक अधूरा सीरियल है! लेकिन, आज सत्ता के गलियारों में उनकी तूती बोलती है! भाजपा ने मथुरा से हेमामालिनी और चंडीगढ़ से किरण खेर को पार्टी का प्रत्याशी बनाया था! दोनों अभिनेत्रियां चुनाव भी जीतीं, पर स्मृति जैसी सत्ता का केंद्र नहीं बन सकीं! 
  फिल्म अभिनेत्रियों का राजनीति में आना भी एक तरह का फैशन की तरह है। करियर की ढलान पर अपनी लोकप्रियता को भुनाने के लिए राजनीति का दामन थामना सबसे आसान भी होता है। लेकिन, ज्यादातर अभिनेत्रियां सिर्फ शो-पीस तक सीमित हो जाती हैं! बीते जमाने की जानीमानी अभिनेत्री वैजयंती माला ने 1984 और 1989 में कांग्रेस के टिकट पर दक्षिण चेन्नई से चुनाव जीता! दक्षिण भारतीय फिल्मों की लेडी अमिताभ कही जानी वाली विजया शांति ने भी 2009 में तेलंगाना राष्ट्र समिति के टिकट पर आंध्रप्रदेश के मेडक संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीता। जयाप्रदा भी पहले समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीती, बाद में नई पार्टी किस्मत आजमाई तो हार गईं! अतीत पर नजर दौड़ाई जाए तो फिल्मों से राजनीति की और आने का सिलसिला दक्षिण भारत से शुरू हुआ! सच भी है कि उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत के फिल्मी सितारे राजनीति में बहुत ज्यादा अधिक सफल रहे है। जयललिता इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जो छठी बार मुख्यमंत्री हैं। 
  कांग्रेस में जब इंदिरा गांधी का युग समाप्त हुआ और राजीव गांधी ने कमान संभाली तो पहला दांव खेला अमिताभ बच्चन पर! उसके बाद जो हुआ, वो सबको पता है! अमिताभ के बरसों बाद समाजवादी पार्टी उदय हुआ! अमिताभ के मित्र अमर सिंह सामने आए और उसी वक़्त जया बच्चन ने राज्यसभा राह पकड़ी! तब से अभी तक जया कई बार राज्यसभा की सदस्य बनी पर सत्ता का केंद्र कभी नहीं बन सकीं! 90 के दशक में जब टीवी सीरियल 'रामायण' का प्रसारण हुआ तो इसके पात्र लोगों के दिलों में छा गए। घर-घर में पात्रों को पूजा जाने लगा! भाजपा को लगा कि ये कलाकारों को लोकप्रियता भुनाने का अच्छा मौका है! इसका राजनीतिक लाभ उठाया जा सकता है! भाजपा ने दीपिका चिखालिया (सीता) के साथ राम और रावण पर भी दांव लगाया! तीनों को लोकसभा का चुनाव लड़ाया और वे जीत भी गए! लेकिन, बाद में उनकी लोकप्रियता घटती चली गई! दीपिका तो परदे और राजनीति दोनों से गायब हो गई! 
  पूर्व मिस इंडिया और कुछ फिल्मों में काम कर चुकी नफीसा अली ने भी कांग्रेस के झंडे तले राजनीति में भूमिका निभाई! बाद में 2009 में समाजवादी पार्टी का दामन थामा। उन्हें समाजवादी पार्टी ने लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव भी लड़ाया, लेकिन लखनऊ की जनता को वे रास नहीं और चुनाव हार गई। ये तो उन अभिनेत्रियों जिक्र हुआ, जिन्होंने बकायदा राजनीति में उतरकर अपनी किस्मत आजमाई! ऐसी अभिनेत्रियों की भी कमी नहीं है जिन्हें उनकी कला खातिर राष्ट्रपति की तरफ से राज्यसभा नवाजा गया! नर्गिस, शबाना आजमी से लगाकर रेखा तक की ये फेहरिस्त काफी लम्बी है। लेकिन, जब भी अभिनेत्रियों के राजनीति में सफलता जिक्र होगा, स्मृति ईरानी को विस्मृत नहीं किया जा सकता! 
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