Saturday, July 30, 2016

बुंदेलखंड की कमाई से भरती है मध्यप्रदेश की तिजोरी


- हेमंत पाल 

  बुंदेलखंड अलग राज्य न बने, इसके लिए मध्यप्रदेश हर संभव कोशिश करता  रहा है। एक तर्क ये भी दिया जाता है कि बिना आर्थिक सम्पन्नता के कोई नया राज्य कैसे बन सकता है? उस राज्य का खर्च कैसे चलेगा? केंद्र से कर्ज लेकर कोई नया राज्य कब तक स्थापना खर्च चलाएगा? जबकि, बुंदेलखंड की आर्थिक सम्पन्नता किसी से छुपी नहीं है! मध्यप्रदेश के जिन छ: जिलों को पृथक बुंदेलखंड में शामिल किए जाने की मांग हो रही है, वे भी खनिज संपदा के मामले में धनी हैं। अकेले पन्ना जिले से केंद्र सरकार को 700 करोड़ रुपए और मध्यप्रदेश सरकार को करीब 1400 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होता है। पन्ना पिछले 5000 सालों से हीरा खदानों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यहां अब तक करीब 40 हजार कैरेट हीरा निकाला जा चुका है, जबकि अनुमान है कि 14 लाख कैरेट के भंडार अभी मौजूद हैं।
  बुंदेलखंड के तालाबों की मछलियां कोलकाता में खूब बिकती हैं। यहां के जंगलों में मिलने वाला तेंदूपत्ता हरा सोना कहा जाता है। खजुराहो और दतिया जैसे पर्यटन स्थल सालभर लोगों को आकर्षित करते रहते हैं। बीना (सागर) में मध्यप्रदेश की संभवत: सबसे बड़ा उद्योग ‘तेल शोधक परियोजना’ तैयार है। इस पर करीब 6400 करोड़ रुपए व्यय हुए हैं। 60 लाख टन ली. क्षमता का यह तेल शोधक संयन्त्र भारत तथा ओमान सरकार के सहयोग से स्थापित हुआ है। अनुमान है कि दोनों राज्यों के बुंदेलखंड मिलकर लगभग 1000 करोड़ रुपए का राजस्व सरकार के खाते में जमा कराते हैं, लेकिन दुर्भाग्य इसका 10 फीसदी भी उस पर खर्च नहीं होता। यह ठीक वैसी स्थिति है जब छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश एक थे। छत्तीसगढ़ कमाता था और मध्यप्रदेश उसके हिस्से को डकारता था। अब मध्यप्रदेश नहीं चाहता कि बुंदेलखंड भी उससे मुंह मोड़ ले! यदि बुंदेलखंड अलग राज्य प्रांत बनता है, तो मध्यप्रदेश के हाथ से खजाना निकल जाएगा। कारखानों की बात छोड़ दी जाए, तो ज्यादातर खनिज संपदा का सरकार से ज्यादा माफिया दोहन कर रहा है। यह भी बुंदेलखंड के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण है।
  सन 1950 में जब बुंदेलखंड में व्यापक सर्वेक्षण का कार्य हुआ तो इसके काफी अच्छे नतीजे देखने को मिले। ग्रेनाइट, सिलिका, गैरिक, गोरा पत्थर, बाक्साइट, चूना, डोलोमाइट, फास्फोराइट, जिप्सम, ग्लैकोनाइट, लौह अयस्क आदि खनिजों का प्रचुर भंडार मौजूद है। जबकि, कहा ये जाता है कि बुंदेलखंड खनिज रहित है। लम्बे समय तक लोगों की यही धारणा रही कि हीरा को छोड़कर बुंदेलखंड खनिज के मामले में बंजर है। वास्तविकता ये है कि ये धरती लोहा, सोना, चाँदी, शीशा, हीरा और पन्ना से समृद्ध है। यहां हिनौता, मझगवां तथा छतरपुर जनपद के अंगोर नामक स्थान में भी हीरा मिलने की संभावना व्यक्त की गई है। ये सच चौंका सकता है कि अभी तक बुंदेलखंड में 40 हजार कैरेट से ज्यादा  हीरा निकाला जा चुका है! अभी भी 14 लाख कैरेट हीरे के भंडारों खुदाई शेष है। कहा गया है कि हीरे की नई खोजी गई खदानों से भी इतना ही कच्चा हीरा मिल सकता हैं। नेशनल मिनरल डेवलमेन्ट कॉर्पोरेशन पन्ना द्वारा से 62 मीटर गहरी खुदाइ की जा चुकी है। जबकि, यहाँ छिछली खदानें बड़े भूखंड में फैली हैं। अकेले पन्ना में ही हीरे का वार्षिक उत्पादन 26 हजार कैरेट है! इससे राज्य सरकार को करोड़ों की रॉयल्टी सरकार को मिलती है। संभावित नई खदानों से आय वृद्धि की संभावना है।
   इसके अलावा यहाँ चूना पत्थर भी प्रचुर मात्रा में मौजूद है। बुंदेलखंड में वास्तु पत्थर के अक्षय भंडार उपलब्ध हैं। बालू पत्थर आदिकाल से अपने रंगों, समान कणों, सुगम उपलब्धता तथा स्थायित्व के लिए उत्तर भारत में वास्तु पत्थर के रुप में प्रसिद्ध है। यहाँ मिलने वाला ग्रेनाइट पत्थर भी अपनी कठोरता, रंग, अक्षयता तथा खूबसूरती के कारण अलंकरण पत्थर के रुप में लोकप्रिय है। जर्मनी, जापान, इटली में इसकी भारी मांग है। निर्माण कार्यों में उपयोग होने वाली रेत के भी यहां असीम भंडार हैं। कांच उद्योग में प्रयोग होने वाली बालू के भंडार इतने हैं कि पूरे देश की 80% मांग यहीं से पूरी हो सकती है। अनेक स्थानों में सिलिका की मात्रा 99.2% तक है। क्राकरी निर्माण में प्रयुक्त गोरा पत्थर भी कई स्थानों में मिलता है। इसका प्रयोग मृत्तिका शिल्प तथा दुर्गलनीय ईटों के उद्योगों में भी होता है। इसके ज्ञात भंडारों का आकलन 43 लाख टन किया गया है। अन्य भंडारों का सर्वेक्षण अभी होना है। 70 किमी से अधिक लम्बी उत्तर-पूर्व और दक्षिण पश्चिम संरेखित स्फटिक शैल भित्तियों से इनका अनुवांशिक संबंध बताया जाता है। विंध्य पर्वत पर पाई जाने वाली चट्टानों के नाम उसके आसपास के स्थान के नामों से प्रसिद्ध है। जैसे माण्डेर का चूना का पत्थर, गन्नौर गढ़ की चीपें, रीवा और पन्ना के चूने का पत्थर, विजयगढ़ की चीपें आदि।
  बुंदेलखंड में पाए जाने वाले खनिजों में फास्फोराइट, गैरिक जिप्सम, ग्लैकोनाइट, लौह अयस्क, अल्प मूल्य रत्न हैं। संभावित खनिजों की सूची में तांबा, सीसा, निकिल, टिन, टंगस्टन, चांदी, सोना आदि हैं। बुंदेलखंड के एक बड़े भू-भाग चौरई में ग्रेनाइट चट्टानें पाई जाती हैं। यह चट्टानें अधिकतर रेडियोधर्मी यूरेनियत युक्त होती हैं। इसकी मात्रा 30 ग्राम प्रति टन तक हो सकती है। ललितपुर में हुए सर्वेक्षण के द्वारा इस संभावना को बल मिला है। यहाँ एल्युमिनियम  भंडारों को भी पता चला है। बांदा और आसपास के क्षेत्रों में एल्यूमीनियम अयस्क बॉक्साइट का पता चला है। अनुमान है कि ये भंडार प्रति वर्ष एक लाख टन एल्यूमीनियम उत्पादन की क्षमात वाले कारखाने को कम से कम 35 वर्षों तक अयस्क प्रदान कर सकता है। छतरपुर में चूने के पत्थर प्रचुर मात्रा में हैं। अन्य स्थानों में सर्वेक्षण जारी है। बांदा जनपद में झोंका भट्टी के उपयुक्त गालक श्रेणी के डोलोमाइट का आंकलित निकाय लगभग 60 करोड़ टन से अधिक है। मृतिका शिल्प की उपयुक्त सफेद चिकनी मिट्टी के वृहद भंडार हैं। जो 5 लाख टन से अधिक है। बांदा के लखनपुर इलाके में यह 2 लाख टन से अधिक है।
सोना है, हीरा भी और पत्थर भी!
  बुंदेलखंड में कई प्रकार के खनिज उपलब्ध हैं। चित्रकूट में बाक्साइट, झांसी, महोबा, ललितपुर में डायस्पोर, पायरोफाइलाइट, झांसी में सिलका सेंट, ग्रेनाइट, बांदा में पालिश, स्लेब और टायल इत्यादि खनिज मिलते हैं। बालू के भी बडे़ भंडार हैं। चित्रकूट के मानिकपुर में 84 लाख टन बाक्साइट उपलब्ध है। ललितपुर में लौह अयस्क जिसमें 30 प्रतिशत लोहा होता है भारी मात्रा में उपलब्ध है। झांसी के बड़ा गांव और मऊरानीपुर में अभ्रक पाया जाता है। बुंदेलखंड में सोना और चांदी भी मिलता है। ललितपुर की चट्टानों में प्रति एक टन खनिज में 2.78 ग्राम प्लेटियम, 2.2 ग्राम पैलेडियम, 7.74 ग्राम रेडियम और 3.4 ग्राम सोना तथा 3.61 ग्राम चांदी पाई जाती है। यहां की मिट्टी में और भी कई खनिज पाए जाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक बांदा जनपद के कालिंजर क्षेत्र में बागै नदी पर हीरे के संकेत मिले हैं। यहां किंबरलाइट द्वारा खोज जारी है। बुंदेलखंड विकास मंच महामंत्री श्री सिद्दीकी ने कहा है कि बुंदेलखंड में पाए जाने वाले खनिज तत्वों पर आधारित तमाम उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं। अभी भी यहां सरकारी सूचनाओं के मुताबिक 253 खनिज आधारित उद्योग हैं। झांसी और महोबा में 84-84, ललितपुर में 23 और चित्रकूट में 30 उद्योेग हैं, जो काफी कम हैं।
   लौह अयस्क के भंडार मानिकपुर कर्वी, बेरवार, बेरार, ललितपुर में अनुमानतः 10 करोड़ टन खनिज हैं। इसमें 35 से 67 प्रतिशत लौह प्राप्त हैं जो स्पंज आयरन के लिए उपयोगी है। सोनरई (ललितपुर) में 400 मीटर से 1000 मीटर लम्बे तथा 1 से 3 मीटर मोटे ताम्र अयस्क भंडार हैं, जिनमें 0.5 प्रतिशत तांबा है। शीशे के बालू, बरगढ़ (कर्वी) में अनुमानतः 5 करोड़ टन है जो विभिन्न स्तरीय है। नरैनी (बांदा) में स्वर्ण की प्राप्ति 2 ग्राम प्रति टन है। बॉक्साइट भण्डार बांदा में 83 टन अनुमानित है। सीसा अयस्क, गैलिना टीकमगढ़ जिले के बंधा बहादुरपुर तथा दतिया में पाए जाते हैं। इसके लिए टीकमगढ़ जिले में ग्रेनाइट पॉलिशिंग का कारखाना लगाया जा सकता है। दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर जिले में पायरोंफायलाइट, पोतनी मिट्टी औद्योगिक दृष्टि से उपयोगी है। एस्बेस्ट्स तथा निकिल सागर में मौजूद है। लौह अयस्क टीकमगढ़, छतरपुर, सागर जिले में प्राप्त हैं। ताम्र अयस्क के भण्डार छतरपुर, बॉक्साइट के भंडार पन्ना, सागर तथा मणि पत्थर दतिया में हैं। इसके बाद भी कोई ये कहे कि बुंदेलखंड में आत्मनिर्भरता की संभावना नहीं है, तो ये भ्रम है या साजिश!
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